ADVERTISEMENTREMOVE AD

म्यांमार में बरस रहीं गोलियां,बिन नेता कैसे सेना के खिलाफ खड़े लोग

अब तक 520 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है

Published
story-hero-img
छोटा
मध्यम
बड़ा

म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद से शुरू हुए प्रदर्शनों को 1 अप्रैल को दो महीने हो गए. सेना ने 1 फरवरी को स्टेट काउंसलर आंग सान सू ची और उनकी पार्टी NLD के कई नेताओं को हिरासत में ले लिया था. लोगों ने सैन्य शासन के विरोध में प्रदर्शन शुरू किए तो सेना बर्बरता से उन्हें कुचलने की कोशिश की. अब तक 520 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और सेना गोलियों से लेकर एयर स्ट्राइक सबका इस्तेमाल कर रही है. लेकिन इतनी क्रूरता के बाद भी प्रदर्शन जस के तस हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
ऐसा कैसे मुमकिन हो पा रहा है कि सेना के तमाम गोला-बारूद और ताकत के बावजूद लोग पीछे नहीं हट रहे हैं. इससे भी बड़ा सवाल है कि इन प्रदर्शनों का नेतृत्व कौन कर रहा है? दिलचस्प रूप से कोई नहीं. इसी वजह से ये प्रदर्शन इतने ज्यादा महत्वपूर्ण बन जाते हैं कि बिना किसी नेता या नेतृत्व के एक देश की सेना के खिलाफ खड़े हैं. वो सेना जो आज से 10 साल पहले तक म्यांमार पर राज करती थी.

कैसे आयोजित किए जा रहे प्रदर्शन?

म्यांमार में चल रहे प्रदर्शन ज्यादातर खुद ही हो रहे हैं. कहने का मतलब है कि लोग खुद ही सैन्य शासन के खिलाफ गुस्सा जाहिर करने के लिए हर दिन घर से बाहर निकल रहे हैं. 500 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है, सेना जनाजों तक पर एयर स्ट्राइक करने से नहीं कतरा रही है और कोई उम्मीद नहीं दिखती है, फिर भी लोग इस उम्मीद को छोड़ना नहीं चाहते हैं.

म्यांमार की मशहूर एक्टिविस्ट थिंजार शुनलेई ने एसोसिएटेड प्रेस (AP) से कहा, "ये आंदोलन बिना नेता का है. लोग खुद से सड़कों पर आ रहे हैं और अपनी मर्जी से."

म्यांमार में एक्टिविस्ट समूह, यूनियन और मानवाधिकार संगठन तख्तापलट के खिलाफ एक मजबूत विपक्ष बन कर खड़े हुए हैं. सू ची की पार्टी NLD के नेता भी इन प्रदर्शनों को आयोजित करने में भूमिका निभा रहे हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
तख्तापलट के कुछ समय बाद ही ‘Civil Disobedience Movement’ नाम से एक फेसबुक पेज बनाया गया था. इस पेज पर शांतिपूर्ण प्रदर्शनों के बारे में जानकारी दी जाने लगी. अब इस पेज के 3 लाख से ज्यादा फॉलोवर हैं और इससे जुड़े हैशटैग म्यांमार के ट्विटर यूजर काफी इस्तेमाल करते हैं.

स्वास्थ्य संबंधी कर्मचारियों ने विरोध जताने के लिए अपना तरीका ढूंढ लिया है. वो लाल रिबन बांध रहे हैं और अपने साथियों से सरकारी अस्पतालों और मेडिकल फैसिलिटी में काम नहीं करने की अपील कर रहे हैं.

सड़कों पर हो रहे प्रदर्शनों में यूनियनों, छात्र संगठनों और अलग-अलग पेशों से जुड़े समूहों की मौजूदगी देखी जा रही है. AP की रिपोर्ट कहती है कि म्यांमार के सबसे बड़े शहर यांगून के निवासी रात में विरोध जताने के लिए बर्तन बजाते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

महिलाएं ले रहीं बराबर की टक्कर

बेशुमार खतरों के बावजूद रोजाना हो रहे प्रदर्शनों में म्यांमार की महिलाएं बहादुरी से सैन्य ताकत का सामना कर रही हैं. महिलाओं की हिस्सेदारी इन प्रदर्शनों में इसलिए भी जरूरी है क्योंकि सेना ने जिस नेता से डर कर तख्तापलट किया है, वो भी एक महिला ही है. महिलाएं अब देश के भविष्य के लिए लड़ रही हैं.

म्यांमार का माहौल पितृसत्ता को बढ़ावा देने वाला रहा है और ऐसे में आंग सान सू ची ने उसका नेतृत्व अपने हाथों में लेकर सालों के दमन को खत्म कर दिया था.

ये दमन दोबारा न लौट पाए, इसके लिए महिलाएं हजारों की तादाद में रैलियों और धरनों में हिस्सा ले रही हैं. न्यू यॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, शिक्षकों की यूनियन से लेकर मेडिकल वर्कर्स तक के प्रदर्शनों में महिलाएं बढ़-चढ़कर सेना को ललकार रही हैं और आंदोलन में अपनी जान भी गंवा रही हैं.  

कन्फेडरशन ऑफ ट्रेड यूनियन म्यांमार की असिस्टेंट जनरल सेक्रेटार्ट मा संदर ने न्यू यॉर्क टाइम्स से कहा, "हम इस क्रांति में कुछ हीरो खो सकते हैं."

ADVERTISEMENTREMOVE AD

प्रदर्शन के शुरुआती हफ्तों में महिला मेडिकल वॉलंटियर के समूह सड़कों पर घूम-घूमकर घायलों का इलाज करते थे. महिलाओं ने सिविल डिसओबेडिएंस मूवमेंट को मजबूत सहारा दिया है.

म्यांमार प्रदर्शनों में महिलाओं की अहम भूमिका को सामने आना ही चाहिए. ये वो देश है, जहां पुरुष और महिलाओं के कमर से नीचे के कपड़े साथ नहीं धुले जाते हैं. ये वो देश है, जहां की सेना में कोई भी महिला अहम पद पर नहीं है और सेना पर आए-दिन गैंगरेप जैसे घिनौने आरोप लगते हैं. ऐसे में महिलाएं अगर सैन्य शासन के साथ-साथ दकियानूसी विचारधारा पर भी चोट कर रही हैं तो इसका दुनिया के कोने-कोने में पहुंचना जरूरी है.  

सेना के खिलाफ खड़ा हुआ यूथ

म्यांमार के जवान लोग इस आंदोलन का दूसरा मजबूत कंधा बनकर उभरे हैं. ये वो लोग हैं, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था और उदार राजनीति के साये में बड़े हुए हैं. इन लोगों ने निरंकुश सैन्य शासन नहीं देखा था, बस उसकी कहानियां सुनी थीं और अब जब वही समय दोबारा लाने की कोशिश की गईं, तो इन्होंने विद्रोह कर दिया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

20 से 30 साल की उम्र के जवानों का सत्तावादी शासकों और तंत्र के खिलाफ खड़े होने का इतिहास अब लंबा हो चला है. 2011 में अरब स्प्रिंग से लेकर हॉन्गकॉन्ग, रूस और बेलारूस तक में इसी वर्ग ने प्रदर्शनों में आगे खड़े होकर सत्ता से टक्कर ली है.

म्यांमार का आंदोलन सिर्फ महिलाओं और यूथ तक सीमित नहीं है. इस आंदोलन का कोई नेतृत्व नहीं कर रहा है, इसलिए हर गली-मोहल्ले से विद्रोह खड़ा हो रहा है.

सोशल मीडिया भी इस आंदोलन को बनाए रखने में बड़ी भूमिका अदा कर रहा है. आंदोलन और विद्रोह को दुनिया तक पहुंचाने में सोशल मीडिया का इस्तेमाल अरब स्प्रिंग में बखूबी किया गया था. म्यांमार में इसी को दोहराया जा रहा है. लोग सेना की बर्बरता, गोलीबारी, लाठीचार्ज का वीडियो सीधे फेसबुक और ट्विटर पर साझा कर रहे हैं.

म्यांमार के लोगों ने दशकों तक सैन्य शासन झेला है. लोकतांत्रिक व्यवस्था बनने के बाद लोगों में आजादी और रोजगार की उम्मीद जगी थी, जिसे सेना अब तोड़ना चाहती है. हालांकि, म्यांमार का लोकतंत्र महज 10 साल पुराना है और ये एक सपना लगता है, लेकिन लोग शायद इस सपने को खोना नहीं चाहते हैं. यही वो सपना है जो उन्हें हर दिन सड़कों पर जाने की ताकत दे रहा है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×