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म्यांमार:रिफ्यूजी को इनकार कर सकता है भारत?क्या है इंटरनेशनल कानून

भारत सरकार कह चुकी है कि उसने 1951 कन्वेंशन पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं

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म्यांमार में 1 फरवरी को हुए सैन्य तख्तापलट के बाद वहां के लोग बड़ी संख्या में पड़ोसी देशों (खासकर भारत और थाईलैंड) की तरफ जा रहे हैं. ये लोग देश में जारी सुरक्षाबलों की हिंसक कार्रवाइयों (जिनमें एयर स्ट्राइक भी शामिल हैं) से बचकर किसी सुरक्षित जगह पर रहने की कोशिश में हैं.

भारत का अब तक का रुख इन लोगों को शरण न देने वाला दिखा है. बात थाईलैंड की करें तो वहां से भी म्यांमार के हजारों लोगों को वापस भेजे जाने की खबरें आ रही हैं. वहीं, बांग्लादेश के कैंपों में रह रहे म्यांमार के रोहिंग्या शरणार्थी अपने देश लौटने को लेकर पहले से भी ज्यादा डरे हुए हैं. इस तरह एक शरणार्थी संकट धीरे-धीरे बड़ा रूप लेता जा रहा है.

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हमने नहीं किए 1951 कन्वेंशन पर हस्ताक्षर: भारत सरकार

भारत में भले ही मिजोरम म्यांमार के लोगों को शरण देने के पक्ष में दिख रहा हो, लेकिन केंद्रीय गृह मंत्रालय म्यांमार से सटे 4 राज्यों - मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश - को 'घुसपैठ' की घटनाओं को लेकर सतर्क करते हुए कह चुका है कि वे कानून के मुताबिक कार्रवाई करें.

हालांकि, फिर भी लंबा खुला बॉर्डर होने की वजह से लोग छिपकर भारत में आने में सफल हो रहे हैं. 

मिजोरम गृह विभाग के मुताबिक, 29 मार्च तक राज्य में म्यांमार के 1042 नागरिकों ने प्रवेश किया था. एक अधिकारी ने इस बात की जानकारी देते हुए आगे बताया, ''इनमें से ज्यादातर सीमावर्ती गांवों में रह रहे हैं और स्थानीय एनजीओ उनकी मदद रहे हैं, कुछ लोग अपने रिश्तेदारों के पास रह रहे हैं.''

न्यूज एजेंसी पीटीआई ने हाल ही में संबंधित अधिकारियों के हवाले से बताया था कि गृह मंत्रालय ने एक लेटर में म्यांमार से सटे 4 राज्यों को सीमा पार से सरकारी अधिकारियों और नागरिकों के 'अवैध प्रवेश' को लेकर आगाह किया था.

इसके अलावा केंद्र सरकार कह चुकी है कि उसने शरणार्थियों की स्थिति को लेकर 1951 कन्वेंशन और उसके 1967 प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं.

ऐसे में कई सवाल उठते रहे हैं, मसलन इस कन्वेंशन और उसके प्रोटोकॉल के मतलब क्या हैं? अगर इस पर किसी देश ने हस्ताक्षर नहीं किए तो क्या वो शरणार्थियों से जुड़े अंतरराष्ट्रीय नियमों के दायरे में नहीं आता? चलिए, एक-एक कर शरणार्थियों से जुड़े हर अहम सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं:

1951 रिफ्यूजी कन्वेंशन का मतलब क्या है?

दुनियाभर में शरणार्थियों के हितों की रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र की एक रिफ्यूजी एजेंसी है- UNHCR. इस एजेंसी ने अपनी वेबसाइट पर बताया है, ‘’1951 रिफ्यूजी कन्वेंशन और इसके 1967 प्रोटोकॉल प्रमुख कानूनी दस्तावेज हैं जो हमारे काम का आधार बनते हैं.’’

1951 कन्वेंशन को शरणार्थियों के हितों की रक्षा के लिए सही मायने में पहला अंतरराष्ट्रीय समझौता माना जाता है. इसने शरणार्थियों के लिए कुछ मूल मानवाधिकार तय किए हैं, जैसे कि शरणार्थियों के अधिकार कम से कम किसी देश में कानूनी रूप से रहने वाले विदेशी नागरिकों के बराबर तो होने ही चाहिए.

इस रिफ्यूजी कन्वेंशन ने शरणार्थी की परिभाषा भी तय की है.

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भारत सरकार कह चुकी है कि उसने 1951 कन्वेंशन पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं

कौन माना जाए शरणार्थी?

1951 कन्वेंशन का आर्टिकल 1 रिफ्यूजी को परिभाषित करता है. इसके मुताबिक किसी भी ऐसे व्यक्ति को शरणार्थी माना जाएगा, जो अपने देश से बाहर हो और इसलिए वापस लौटने को तैयार न हो कि उसकी नस्ल, धर्म, राष्ट्रीयता, किसी विशेष सामाजिक ग्रुप में सदस्यता या राजनीतिक राय के चलते उसके उत्पीड़न की आशंका हो.

हालांकि, कोई ऐसा व्यक्ति जिसने शरण चाहने वाले देश के बाहर कहीं शांति या मानवता के खिलाफ अपराध किया हो, कोई युद्ध अपराध या गंभीर गैर-राजनीतिक अपराध किया हो, वो कन्वेंशन के दायरे में नहीं आएगा.

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1967 प्रोटोकॉल का क्या मतलब है?

1967 प्रोटोकॉल 1951 कन्वेंशन के दायरे को बढ़ाने का काम करता है. यह प्रोटोकॉल उन जियोग्राफिकल और टाइम लिमिट्स को हटाता है, जो 1951 कन्वेंशन का हिस्सा थीं. दरअसल, इन लिमिट्स ने कन्वेंशन को, यूरोप में 1 जनवरी 1951 से पहले होने वाली घटनाओं के चलते शरणार्थी बने लोगों तक ही सीमित कर रखा था.

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क्या शरणार्थियों के लिए भी कोई बाध्यता होती है?

हां. कन्वेंशन के मुताबिक, शरणार्थियों को उस देश के कानून और नियमों का सम्मान करना होगा, जिसमें उन्हें शरण मिली हो.

भारत सरकार कह चुकी है कि उसने 1951 कन्वेंशन पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं
रोहिंग्या शरणार्थियों की एक तस्वीर
(फोटो: IANS)
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क्या कोई सैनिक भी शरणार्थी हो सकता है?

नहीं. कन्वेंशन के मुताबिक, शरणार्थी सिविलियन होता है. पूर्व सैनिक, फिर भी, शरणार्थी बनने के लिए क्वालीफाइ कर सकते हैं, लेकिन ऐसा व्यक्ति जिसका सैन्य गतिविधियों में हिस्सा लेना जारी हो, उसे शरण देने के लिए विचार नहीं किया जा सकता.

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क्या ऐसा देश जिसने 1951 कन्वेंशन पर हस्ताक्षर न किए हों, प्रोटेक्शन की मांग करने वाले व्यक्ति को स्वीकार करने से इनकार कर सकता है?

UNHCR की ओर से जारी किए गए 1951 कन्वेंशन और 1967 प्रोटोकॉल से संबंधित एक डॉक्युमेंट में इस सवाल के जवाब में कहा गया है, ‘’वापस न लौटाए जाने का सिद्धांत शरणार्थी की उस क्षेत्र में वापसी को प्रतिबंधित करता है जहां उसके जीवन या आजादी को खतरा हो, इसे व्यावहारिक अंतराष्ट्रीय कानून का एक नियम माना जाता है. यह सभी देशों के लिए बाध्यकारी है, भले ही वे 1951 कन्वेंशन या 1967 प्रोटोकॉल का हिस्सा हों या नहीं. प्रोटेक्शन चाहने वाले शरणार्थी को देश में घुसने से नहीं रोका जाना चाहिए, क्योंकि ऐसा करना उसको जबरन वापस भेजना माना जाएगा.’’

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क्या सिर्फ 1951 कन्वेंशन ही शरणार्थियों के अधिकारों की रक्षा करता है?

1951 कन्वेंशन 1967 प्रोटोकॉल के साथ शरणार्थियों की स्थिति और अधिकारों के संबंध में वैश्विक स्तर के लिए है. इसके अलावा अलग-अलग क्षेत्रों के लिए भी ऐसे कई कन्वेंशन और डिक्लरेशन हैं, जैसे कि शरणार्थियों को लेकर अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और यूरोपीय यूनियन में लागू होने वाले कानूनी आधार हैं.

इसके अलावा देश अपनी मानवाधिकार प्रतिबद्धताओं के जरिए भी शरणार्थियों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध माने जाते हैं.

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