नेपाल की संसद भंग कर दी गई है. प्रधानमंत्री केपी ओली शर्मा ने इसके लिए सिफारिश राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी के पास भेजी थी. राष्ट्रपति के इस सिफारिश को मंजूरी देने के बाद संसद भंग हो गई. लेकिन अब कई सवाल उठ रहे हैं कि आगे क्या होगा, ये हुआ क्यों और क्या ये कदम ठीक था?
इन सब सवालों के बीच नेपाल में मध्यवर्ती चुनावों की तारीख का ऐलान भी हो गया है. ये चुनाव अगले साल अप्रैल-मई में होंगे.
नेपाल में ऐसा क्यों हुआ?
नेपाल में विवाद दो पार्टियों के बीच नहीं है, बल्कि सत्ताधारी पार्टी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) में ही है. एनसीपी में दो धड़े बन गए हैं. एक है पीएम केपी शर्मा ओली का और दूसरा धड़ा है पूर्व पीएम पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' और माधव नेपाल का. प्रचंड एनसीपी के चेयरमैन भी हैं.
नेपाल में 2017 में चुनाव हुए थे और ओली की CPN-UML और प्रचंड की CPN (माओवादी सेंटर) पार्टियों के गठबंधन को बहुमत मिला था. फरवरी 2018 में केपी शर्मा ओली पीएम बने थे. मई 2018 में दोनों पार्टियों ने मिलकर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी बनाई थी.
कहा जाता है कि पार्टी में तय हुआ था कि ओली पूरे 5 साल के लिए बतौर प्रधानमंत्री देश का नेतृत्व संभालेंगे और प्रचंडा पार्टी को संभालेंगे. हालांकि, कुछ ही समय बाद ओली पर पार्टी के आदेशों को न मानने का आरोप लगने लगा. ओली और प्रचंड के बीच का तनाव इस साल खुलकर सामने आ गया था.
प्रचंड और माधव नेपाल का धड़ा ओली को कोरोना वायरस महामारी की हैंडलिंग को लेकर भी आड़े हाथों लेता रहा.
विवाद और भी ज्यादा तब बढ़ गया जब ओली ने हाल में एक अध्यादेश लागू करवाया, जिसके जरिए “कांस्टिट्यूशनल काउंसिल एक्ट” में बदलाव किए गए. नए संशोधन के मुताबिक, अगर काउंसिल के आधे से ज्यादा सदस्य मीटिंग में आने पर सहमति जताते हैं, तो इसकी बैठक बुलाई जा सकेगी.
बताया जा रहा है कि ऐसा कर ओली ने नेपाली संविधान में मौजूद "चेक एंड बैलेंस" की व्यवस्था को कमजोर किया था. इस संशोधन से कई अहम पदों पर नियुक्तियों में ओली का सीधा दखल हो गया था.
क्या संसद भंग करना संवैधानिक है?
संसद भंग होने के बाद ओली कैबिनेट के सात मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया है. ये सातों मंत्री प्रचंड-माधव नेपाल धड़े के सदस्य हैं. मंत्रियों ने अपने बयान में कहा कि 'हमने पीएम केपी शर्मा ओली के असंवैधानिक कदम को रोकने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो पाए.'
इस्तीफा देने वाले मंत्रियों के अलावा संवैधानिक एक्सपर्ट्स ने भी ओली के कदम को ;असंवैधानिक' बताया है.
नेपाल के संविधान के मुताबिक, बहुमत की सरकार के प्रधानमंत्री का संसद भंग करने की सिफारिश करने का कोई प्रावधान नहीं है. त्रिशंकु संसद की स्थिति में ही ऐसी सिफारिश की जा सकती है.
संवैधानिक एक्सपर्ट दिनेश त्रिपाठी का कहना है कि जब तक सरकार बनने की संभावना है, संसद भंग करने का कोई प्रावधान नहीं है. ऐसे में आशंका है कि ओली के इस कदम को कोर्ट में चुनौती मिल सकती है.
अब आगे क्या होगा?
संसद भंग होने की सिफारिश के साथ ही ओली की कैबिनेट ने राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी को मध्यवर्ती आम चुनाव कराने का प्रस्ताव भी भेजा था. राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी दे दी है.
राष्ट्रपति भवन की तरफ से जारी किए गए नोटिस के मुताबिक, 30 अप्रैल को पहले चरण के चुनाव होने और दूसरा चरण 10 मई को होगा.
ऐसी खबरें हैं कि प्रचंड और एनसीपी के कई वरिष्ठ नेता पीएम ओली के आवास पर उनसे मुलाकात करने जा सकते हैं. वहीं, विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस ने इमरजेंसी बैठक बुलाई है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)