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नेपाल:सत्ताधारी पार्टी में मतभेद के बीच चीनी राजदूत पर सवाल क्यों?

नेपाल के प्रधानमंत्री के कुर्सी जाने का खतरा और सत्ताधारी पार्टी NCP में दोफाड़ का खतरा बरकरार है.

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भारत-नेपाल सीमा विवाद से नेपाल की सत्ताधारी पार्टी में चल रही उठापटक तक एक चीनी शख्सियत जिसकी खूब चर्चा हुई है वो हैं- नेपाल में चीन की राजदूत हाओ यांकी. नेपाल के प्रधानमंत्री के कुर्सी जाने का खतरा और सत्ताधारी पार्टी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (NCP) में दोफाड़ का खतरा बरकरार है. काठमांडू पोस्ट के मुताबिक, ऐसे वक्त में हाओ यांकी की सत्ताधारी पार्टी के नेताओं और सरकारी अधिकारियों से मुलाकात के कारण राजनीतिक विश्लेषक और पूर्व डिप्लोमैट्स आशंका की स्थिति में हैं.

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पिछले हफ्ते में ही, राजदूत यांकी ने नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या भंडारी और एनसीपी के वरिष्ठ नेता माधव कुमार नेपाल से मुलाकात की. मंगलवार को उन्होंने देश के पूर्व प्रधानमंत्री और एनसीपी नेता झलनाथ खानाल से भी मीटिंग की जो ओली के गुट में बताए जा रहा हैं.

राष्ट्रपति से 3 जुलाई को हुई इस मुलाकात को राष्ट्रपति के सहयोगी एक ‘शिष्टाचार भेंट’ बता रहे हैं और ये भी कह रहे हैं कि राष्ट्रपति की राजदूत से मुलाकात को जबरदस्ती विवादों में घसीटा जा रहा है. लेकिन हाल-फिलहाल में जो घटनाक्रम देखने को मिले हैं, उससे इन मुलाकातों पर कई सवाल उठते हैं.

दरअसल, सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के 44 स्थायी सदस्यों में से 30 सदस्य ओली के बतौर प्रधानमंत्री इस्तीफे की मांग की है. इसमें पार्टी के चेयरमैन पुष्प कमल दहल समेत कई वरिष्ठ नेता शामिल हैं. दहल और ओली के बीच कई राउंड बातचीत भी बिना निष्कर्ष के खत्म हो गई और दोनों ही अपनी-अपनी बात से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं.

एनसीपी में ऐसे उठापटक के दौर में राष्ट्रपति भंडारी की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं. काठमांडू पोस्ट के मुताबिक, गुरुवार को भंडारी से मुलाकात के बाद ओली संसद में अपने विरोधियों के लिए और भी सख्त नजर आए. अब भंडारी के साथ चीनी राजदूत की मुलाकात भी सवाल पैदा कर रही है. मीडिया रिपोर्ट्स बताते हैं कि चीनी राजदूत, ओली सरकार को बचाए रखने की कोशिश करती दिख रही हैं, जिसे नेपाली राजनीति में 'दखल' के तौर पर भी देखा जा रहा है.

चीनी दूतावास ने क्या कहा?

वहीं नेपाल के चीनी दूतावास ने हाओ यांकी की बैठकों का बचाव किया है. काठमांडू पोस्ट से बातचीत में दूतावास ने कहा है कि चीन, सत्ताधारी एनसीपी को परेशानी में नहीं देखना चाहता है और नेताओं को अपने मतभेद सुलझाकर एकजुट रहना चाहिए.

विवाद आखिर है क्यों?

राजशाही खत्म होने के बाद साल 2015 में नेपाल में नया संविधान बना और लागू हुआ था.राजशाही के पतन के बाद नेपाल में हमेशा गठबंधन वाली सरकारें ही बनीं. इनके घटक दलों में हमेशा देशहित से ज्यादा पार्टी-हित की होड़ रही. 2015 से अबतक नेपाल में कई बार सत्ता अस्त-व्यस्त नजर आई और प्रधानमंत्री बदलते रहे.

इस बार जो संकट पैदा हुआ है, वो केपी शर्मा ओली और पूर्व प्रधानमंत्री और NCP के चेयरमैन के बीच का मतभेद नजर आता है. बीच में कई बार ऐसी खबरें आईं थी दोनों के बीच मतभेद है. इस पर मुहर तब लग गई जब केपी शर्मा ओली ने खुद ही सार्वजनिक तौर पर कह दिया कि उन्हें पद से हटाए जाने की साजिश रची जा रही है. अपनी ही पार्टी के चेयरमैन और नेताओं पर आरोप लगाए जाने और साजिश में भारत का 'एंगल' देने के बाद केपी शर्मा ओली की दिक्कतें और बढ़ गईं

खबरों के मुताबिक, नवंबर 2019 में पार्टी में ये तय हुआ था कि केपी शर्मा ओली पूरे 5 साल के लिए बतौर प्रधानमंत्री देश का नेतृत्व संभालेंगे और दहल एग्जीक्यूटिव चेयरमैन के तौर पर पार्टी को संभालेंगे. लेकिन ओली ने इस समझौते का पालन नहीं किया. हालिया, बातचीत में अब दहल ने मई 2018 के समझौते को दोबारा के लिए दबाव बनाया है, जिसके मुताबिक, दोनों ही नेता ढाई-ढाई साल तक सरकार का नेतृत्व करेंगे. अब दोनों ही अपनी-अपनी मांग से पीछे हटने को तैयार नहीं है. इसलिए पार्टी में टूट की आशंका बनी हुई है.

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