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इथियोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद को शांति का नोबेल पुरस्कार

साहित्य के नोबेल प्राइज के कुछ खास फैक्ट्स

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इथियोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद को शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया है. पीएम अबी अहमद को पड़ोसी मुल्क के साथ सीमा विवाद को सुलझाने के लिए उठाए गए कदमों के लिए नोबेल से सम्मानित किया गया है. शांति और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को लेकर अहमद को नोबेल मिला है. नोबेल कमेटी ने शुक्रवार को इसकी जानकारी दी है.

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साहित्य के नोबेल प्राइज के कुछ खास फैक्ट्स
इथियोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद को शांति का नोबेल पुरस्कार
(फोटो: ट्विटर)

नोबेल पुरस्कार जूरी ने बताया अबी को ‘‘शांति और अंतरराष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करने के प्रयासों के लिए और विशेष रूप से पड़ोसी इरिट्रिया के साथ सीमा संघर्ष को सुलझाने के निर्णायक पहल के लिए इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.’’

हैंडके को 2019 का साहित्य का नोबेल

एक दिन पहले 2019 के साहित्य का नोबेल प्राइज ऑस्ट्रियाई नॉवलिस्ट और स्क्रीन प्ले राइटर पीटर हंडके को दिया गया था. स्वीडिश अकादमी ने कहा कि हंडके ने “उस प्रभावशाली काम के लिए ये पुरस्कार जीता जो भाषाई सरलता के साथ इंसानी अनुभवों को टटोलती है.”

अकादमी ने कहा कि हंडके ने “दूसरे विश्वयुद्ध के बाद खुद को सबसे प्रभावशाली लेखकों में से एक के तौर पर स्थापित किया है.” उनके काम नए तरीकों की खोज की इच्छा से भरे हैं.

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साहित्य के नोबेल प्राइज के कुछ खास फैक्ट्स

  • साल 1901 से 2019 के बीच साहित्य का नोबेल प्राइज कुल 112 बार 116 लोगों को दिया गया.
  • साल 1901 से 2017 के बीच साहित्य का नोबेल प्राइज जीतने वाले लोगों की औसत आयु 65 साल
  • अब तक 14 महिलाओं को इस कैटेगरी में नोबेल प्राइज दिया गया है
  • डोरिस लेसिंग इस कैटेगरी में नोबेल प्राइज जीतने वाले सबसे उम्रदराज शख्स हैं, डोरिस ने 88 साल की उम्र में ये प्राइज जीता
  • अब तक दो लोगों ने ये प्राइज लेने से मना कर दिया था

2018 में नोबेल प्राइज का ऐलान क्यों नहीं हुआ था?

2018 में साहित्य के नोबेल प्राइज का ऐलान नहीं हुआ था. उस वक्त अकादमी विवादों में घिर गई थी जब अकादमी से जुड़े जीन-क्लाउड अर्नाल्ड को रेप के मामले में जेल हुई. अकादमी के सदस्य इस बात को लेकर दो फाड़ थे कि उनके साथ अपने संबंधों को किस तरह बैन किया जाए. इस विवाद ने इसके 18 सदस्यों के बीच योजनाओं, हितों के टकराव, उत्पीड़न को उजागर कर दिया. इन सदस्यों को लंबे समय तक देश की संस्कृति के अभिभावकों के तौर पर देखा जाता था.

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