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Pak: पेशावर में पुलिस वाले क्यों अपनी ही सरकार के खिलाफ ‘बगावत’ कर रहे हैं?

Pakistan Terrorism: जुलाई 2019 के बाद से जनवरी सबसे घातक महीना रहा, अकेले पेशावर मस्जिद ब्लास्ट में 100 से अधिक मरे

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पाकिस्तान में निजाम बदला लेकिन आर्थिक चुनौतियों के साथ-साथ आतंकवाद का जख्म (Pakistan Terrorism and Economic crisis) कम होने की जगह वह नासूर में तब्दील हो गया है. पाकिस्तान में आतंकवादियों का दुस्साहस इतना बढ़ गया है कि अब वे खुद वहां के सुरक्षकर्मियों और पुलिस को ही निशाना बना रहे हैं.

आपको पहले पाकिस्तान में बढ़ते आतंकवाद के बारे में बताते हैं और यह समझने की कोशिश करते हैं कि पेशावर कैसे 1980 के दशक से ही आतंकी हिंसा का फ्रंटलाइन बना हुआ है, वहां की पुलिस सड़क पर विरोध करने के लिए मजबूर क्यों हो गयी है?

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जुलाई 2019 के बाद से पाकिस्तान में जनवरी 'सबसे घातक' महीना

जनवरी 2023 पाकिस्तान का सबसे घातक महीना रहा है. देश भर में कम से कम 44 आतंकी हमलों में 139 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 134 लोगों की जान चली गई और 254 अन्य घायल हो गए. डॉन न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, इस्लामाबाद स्थित थिंक-टैंक पाकिस्तान इंस्टीट्यूट फॉर कॉन्फ्लिक्ट एंड सिक्योरिटी स्टडीज (PICSS) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों से नए साल में जारी आतंकवादी हमलों के पैटर्न का पता चलता है, जिसमें खैबर पख्तूनख्वा सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों में से एक है.

जनवरी में आतंकी घटनाओं की संख्या में थोड़ी कमी आई, लेकिन मौतों में 139 प्रतिशत की वृद्धि हुई, मुख्य रूप से जनवरी में पेशावर की एक मस्जिद में हुए आत्मघाती विस्फोट में 101 लोग मारे गए. जनवरी में, दो आत्मघाती बम विस्फोट एक पेशावर में और दूसरा खैबर कबायली जिले में दर्ज किए गए.

दूसरी तरफ सुरक्षा बलों ने कम से कम 52 संदिग्ध आतंकवादियों को गिरफ्तार कर कई हमलों को नाकाम कर दिया और 40 संदिग्धों को मार डाला, जिनमें से ज्यादातर खैबर पख्तूनख्वा में थे. डॉन न्यूज ने थिंक-टैंक के हवाले से कहा कि खैबर पख्तूनख्वा में न केवल आतंकवादी हमले 17 से बढ़कर 27 हो गए, बल्कि इससे होने वाली मौतें भी दिसंबर 2022 की तुलना में 17 से बढ़कर 116 हो गईं.

पेशावर 1980 के दशक से ही आतंकी हिंसा का फ्रंटलाइन

पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल पर तालिबानी हमले को 7 साल गुजर गए हैं जिसमें 131 स्कूली बच्चों सहित कुल 141 की मौत हुई थी. इस नरसंहार के बाद भी पेशावर समेत पूरे पाकिस्तान ने एक साथ मिलकर आतंक के खिलाफ आवाज उठाई थी कि 'अब और नहीं'. लेकिन सिर्फ साल बदले पेशावर में आतंकी हिंसा नहीं रुकी. पेशावर के आम लोग एक भयानक, हिंसक संघर्ष के फ्रंटलाइन पर बने हुए हैं जिसमें उनके विरोधी भी अस्पष्ट रहते हैं, बदलते रहते हैं.

पेशावर 1980 के दशक में अमेरिका और सऊदी समर्थित 'जिहाद' का मैदान बना, और फिर 21वीं सदी के पहले दो दशकों के दौरान 'आतंकवाद के खिलाफ युद्ध' का मैदान बना रहा. लेकिन इसका खामियाजा यहां के आम लोगों ने उठाया है.

पाकिस्तान के सरकारों ने दोनों युगों में अमेरिका से दसियों अरब की सैन्य सहायता प्राप्त की लेकिन इसमें मोहरे बने पेशावर के आम लोग. पेशावर के साथ-साथ अन्य प्रमुख बॉर्डर एरिया अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच सभी प्रकार के सामानों के सीमा पार व्यापार के केंद्र हैं, जिनमें ड्रग्स-हथियार भी शामिल है. यही कारण है कि यह हमेशा पाकिस्तानी सरकारों के रणनीतिक और आर्थिक फैसलों के नतीजों और के प्रति संवेदनशील रहा है.

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पेशावर में खुद पुलिस सड़क पर विरोध कर रही 

पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के विभिन्न हिस्सों में पुलिस ने मस्जिद विस्फोट की निंदा करने के लिए विरोध मार्च निकाला है. डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, पेशावर प्रेस क्लब के बाहर बुधवार को 24 से अधिक वर्दीधारी पुलिसकर्मी एक अभूतपूर्व कदम के तहत एकत्र हुए और शांति के लिए नारे लगाए. उन्होंने पेशावर में पुलिस लाइन में मस्जिद में हुए विस्फोट की स्वतंत्र जांच की मांग की. इसका वीडियो भी सोशल मिडिया में सामने आया है.

अलग-अलग नारों वाली तख्तियां लिए पुलिसकर्मियों ने कहा कि वे खैबर पख्तूनख्वा पुलिस के साथ हुए अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना चाहते हैं. पुलिसकर्मियों ने कहा कि उनका विरोध 'सिस्टम' के खिलाफ था और वे प्रांत में बिगड़ती कानून-व्यवस्था की स्थिति के कारण सड़कों पर उतरने और आतंकवादी हमलों के पीड़ितों के लिए न्याय की मांग करने के लिए मजबूर हैं.

डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, मरदान में पुलिसकर्मी स्थानीय प्रेस क्लब के बाहर इकट्ठा हुए और कानून लागू करने वालों की सुरक्षा के लिए प्रभावी कदम उठाने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया।

उन्होंने कहा कि पुलिस आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अग्रिम पंक्ति के बल के रूप में लड़ रही है और अनगिनत बलिदान दिए हैं. पुलिसकर्मियों ने अत्यधिक सुरक्षा वाले और संवेदनशील इलाके में विस्फोट पर सवाल उठाया. उन्होंने घटना की न्यायिक जांच की भी मांग की है. इसी तरह स्वाबी में पुलिसकर्मी जिला मुख्यालय के बाहर जमा हुए.

डॉन में इस्लामाबाद के कायद-ए-आजम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आसिम सज्जाद अख्तर ने लिखा है कि "पाकिस्तान में निश्चित रूप से बहुत सारा पैसा घूम रहा है. जो लोग अवैध तरीके से सबसे ज्यादा पैसा बनाते हैं, वे ही कानून और सिक्योरिटी की कहानियां सुनाते हैं, भले ही वे मासूमों के जीवन की रक्षा करने में पूरी तरह से विफल रहे हों. एक दिन आएगा जब पेशावर और अन्य लंबे समय से पीड़ित युद्ध क्षेत्रों के लोग उनसे हिसाब लेंगे."

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