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पाकिस्तान में लाहौर हाईकोर्ट ने रद्द किया 'देशद्रोह कानून',भारत में क्या स्थिति?

Sedition law Ends in Pakistan: लाहौर हाई कोर्ट ने "देशद्रोह कानून" को मनमाना बताते हुए खारिज कर दिया है.

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लाहौर (Lahore) हाई कोर्ट (High Court) ने 30 मार्च को पाकिस्तान में "देशद्रोह कानून" (Sedition Law) को रद्द कर दिया. अदालत ने इसे मनमाना बताते हुए खारिज कर दिया है. न्यायमूर्ति शाहिद करीम ने पाकिस्तान दंड संहिता (PPC) की धारा 124ए को रद्द करने की मांग वाली याचिकाओं की सुनवाई करते हुए यह फैसला दिया है.

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याचिकाओं में दावा किया गया था कि सरकार द्वारा कानून का दुरुपयोग अपने प्रतिद्वंद्वियों को विफल करने किया जा रहा था.

याचिका में क्या कहा गया?

हारून फारूक द्वारा दायर की गई एक याचिका में कहा गया है कि कानून का "पाकिस्तान में अंधाधुंध इस्तेमाल" शोषण के एक उपकरण के रूप में किया गया है, जिसका इस्तेमाल फ्री स्पीच और अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाने के लिए किया जाता है, जिसे पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत चुनौती दी गई है.

इसमें कहा गया, "पाकिस्तान दंड संहिता 1860 की धारा 124-ए एक अवैध सीमा है और संवैधानिक रूप से स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति और विभिन्न अन्य संवैधानिक स्वतंत्रता (सामान्य रूप से) के संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकार के कानूनी और वैध अभ्यास पर बैन है."

कौन हैं जस्टिस करीम?

जस्टिस करीम वही जज हैं, जिन्होंने 2019 में पूर्व तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ (Pervez Musharraf) को मौत की सजा सुनाई थी.

भारत में क्यों स्थगित है "देशद्रोह" कानून?

भारत में पिछले साल सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने "देशद्रोह कानून" को एक अंतरिम आदेश के तहत फिलहाल स्थगित कर दिया है. मई 2022 में, सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि IPC की धारा 124ए के तहत कार्यवाही, जो देशद्रोह को अपराध बनाती हैं, को तब तक स्थगित रखा जाए जब तक कि इस कानून की समीक्षा करने की सरकार की कवायद पूरी नहीं हो जाती.

अदालत ने यह फैसला केंद्र सरकार द्वारा एक हलफनामा दायर करने के बाद आया था, जिसमें कहा गया है कि उसने प्रावधान की फिर से जांच करने और उस पर पुनर्विचार करने का फैसला किया है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में सरकारों से कहा कि जब तक सरकार की कवायद पूरी नहीं हो जाती, तब तक प्रावधान के तहत सभी लंबित कार्यवाही में जांच जारी न रखें या कठोर कदम न उठाएं.

कोर्ट ने कहा कि अगर इस तरह के मामले दर्ज किए जाने चाहिए, तो पक्षकार अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र हैं और अदालत को जल्द से जल्द इसका निपटान करना होगा. अदालत के अंतरिम आदेश में कहा गया है, 'इस प्रावधान को स्थगित रखना उचित होगा.'

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