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"मोदी विरोध, भारत विरोध नहीं": PM मोदी के दौरे का विरोध करने वाले कौन लोग हैं?

PM के अमेरिका दौरे का विरोध करने वाले कई संगठनों के लोगों ने द क्विंट से बात की और विरोध के मकसद का खुलासा किया.

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“यहां मुद्दा भारत नहीं, नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) हैं. हम सभी चाहते हैं कि भारत अमेरिका का पार्टनर बने, लेकिन समस्या मोदी का पुराना इतिहास और उनकी हरकते हैं.'' अमेरिका में भारतीय प्रधानमंत्री के USA दौरे के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शन के प्रमुख आयोजकों में से एक ने नाम ना छापने की शर्त पर द क्विंट से ये बातें कहीं. 

जब से प्रधानमंत्री मोदी ने आधिकारिक तौर पर अमेरिका की अपनी पहली राजकीय यात्रा की घोषणा की है, तब से अमेरिका में भारतीय और गैर-भारतीय सिविल राइट्स ग्रुप्स ने  मोदी के शासन में कथित तौर पर "मानवाधिकारों के उल्लंघन, असहमति के दमन और विशेष रूप से धार्मिक अल्पसंख्यकों खासकर मुस्लिम और ईसाई के उत्पीड़न" के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की योजनाएं बनाई है.  

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अपनी तीन दिवसीय राजकीय यात्रा के दौरान, मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ बातचीत करेंगे. उनके सम्मान में प्राइवेट और स्टेट डिनर है. उपराष्ट्रपति कमला हैरिस और अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के ज्वाइंट लंच में भी मोदी आमंत्रित हैं.   

वो अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करने वाले हैं. बड़े पैमाने पर प्रवासी भारतीयों के कार्यक्रम आयोजित किए जाने की भी उम्मीद है.  इससे पहले, न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर मोदी के नेतृत्व में समारोह मनाया गया.   

एक्टिविस्ट और विरोध करने वाले एक प्रमुख शख्सियत स्कॉट वेबर ने द क्विंट को बताया कि,  "मैं इसलिए विरोध नहीं कर रहा हूं क्योंकि मैं हिंदुओं से नफरत करता हूं, या मैं दक्षिण एशियाई लोगों से नफरत करता हूं, या मैं भूरे लोगों से नफरत करता हूं, बल्कि मैं फासीवाद से नफरत करता हूं, मैं उस राष्ट्रवाद से नफरत करता हूं जो हो रहा है, और चूंकि यह एक धार्मिक राष्ट्रवाद है, मेरा मानना ​​है कि यह भारत को और अधिक धर्मतन्त्र बना रहा है." 

विभिन्न विरोध प्रदर्शनों के प्रमुख आयोजकों के साथ कई फोन कॉल के दौरान, जिनमें से कईयों ने हमसे अनुरोध किया कि उनके नाम ना छापे जाएं क्योंकि उन्हें धमकियां मिलने का डर है.  क्विंट ने पीएम मोदी की "ऐतिहासिक" अमेरिका यात्रा का विरोध करने का मकसद पता लगाया.

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विरोध प्रदर्शन के पीछे क्या वजह है?

भारतीय प्रधानमंत्री के खिलाफ विरोध प्रदर्शन, चाहे उनकी मौजूदा यात्रा के दौरान हो या पिछली विदेशी यात्राओं के दौरान, विवाद का विषय बना रहा है.  हालांकि भारतीय विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने अमेरिका के साथ भारत के "सकारात्मक हितों" के बारे में बताते हुए इन विरोध प्रदर्शनों को तवज्जो नहीं दिया.  लेकिन विरोध करने वाले भारतीय और विदेशी इस पर असंतोष जताते हैं. 

एक दूसरे शख्स ने बताया कि “इसे कहने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि अमेरिकी भारत के साथ रिश्ते बनाना चाहते हैं. हम शीत युद्ध की मानसिकता से उभरना चाहते हैं.  वास्तव में चाहते हैं कि यह रिश्ता कारगर हो. लेकिन यह उन शर्तों पर होना चाहिए जिनके साथ हम रह सकें. भारत के लोकतंत्र को मोदी के हाथों खंडित किया जाना एक ऐसी बात है जो हमें बर्दाश्त नहीं. 
आउटरीच और मोबिलाइजेशन संभालने वाले एक भारतीय-अमेरिकी आयोजक ने द क्विंट को बताया

जब भी प्रधानमंत्री की विदेश यात्राएं होती हैं तो भारत के "आंतरिक मामलों" में हस्तक्षेप करने की कोशिश करने वाली विदेशी संस्थाओं का काउंटर नैरेटिव काफी आम हैं. एक तरह से इन दौरों को आलोचनात्मक प्रतिक्रियाएं मिलती हैं. लेकिन विरोध और प्रदर्शनकारी जो हैं उनमें से अधिकांश हिंदू हैं.

वो अपनी बात रखते हुए जोड़ते हैं, "मै भारतीय हूं. मैं एक हिंदू हूं. मैं प्रधानमंत्री का वोट बैंक हूं लेकिन मैं भारत में अल्पसंख्यक समूहों के साथ क्रूर व्यवहार को बर्दाश्त नहीं कर सकता. अगर अमेरिका में मेरे साथ वैसा ही व्यवहार किया जाता जैसा भारत में मुसलमानों के साथ किया जाता है, तो मैं बिना कुछ सोचे-समझे घर वापस भाग जाऊंगा.  यह असहनीय है. ”

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हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स नामक संगठन ने बाइडेन को लिखे एक खुले पत्र में भी इसी तरह की भावनाएं व्यक्त की . इसमें बाइडेन से अनुरोध किया गया थी कि  मोदी की यात्रा के दौरान "मानवाधिकारों और लोकतंत्र पर भारत सरकार के बढ़ते हमलों के खिलाफ कदम उठाने" के लिए नसीहत दी जाए.

संगठन के पॉलिसी डायरेक्टर रिया चक्रवर्ती ने द क्विंट से कहा  : “विशेष रूप से वाशिंगटन और न्यूयॉर्क में बहुत गुस्सा है, क्योंकि ये वे स्थान हैं जहां बाइडेन प्रशासन मोदी को बढ़ावा दे रहा है.” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पीएम मोदी संयुक्त राष्ट्र में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस समारोह का उपयोग "ओम-वॉशिंग" के लिए कर रहे हैं - जो कि "व्हाइटवॉशिंग" पर आधारित है.

चक्रवर्ती ने बताया कि सांस्कृतिक हिंदू धर्म - योग, ध्यान और माइंडफुलनेस जैसी गतिविधियों के माध्यम से - पश्चिम में हजारों प्रशंसकों और अनुयायियों का एक बड़ा "सॉफ्ट पावर" है, और मोदी "उस सॉफ्ट पावर का फायदा उठा रहे हैं. “. वो आगे कहती हैं, यह वास्तव में उनके लिए भारत वापस जाकर अपनी पीठ खुद थपथपाने का मौका देने जैसा है. वो सांस्कृतिक सॉफ्ट पावर पैदा करने की छवि गढ़ सकते हैं,, वापस भारत जाकर उनको यह कहने का मौका देता है, 'देखो... मैं वह व्यक्ति हूं जिसने हिंदू धर्म को विश्व मंच पर रखा है,' भले ही उन्होंने वास्तव में हिंदू राष्ट्रवाद को विश्व मंच पर रखा है.

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आखिर अमेरिकी क्यों प्रधानमंत्री मोदी के दौरे का विरोध कर रहे हैं?

न्यूयॉर्क स्थित एक अमेरिकी कार्यकर्ता और विरोध समन्वयक ने नाम न छापने की शर्त पर द क्विंट से बात की और कहा, "अमेरिकी होने के नाते हमें जो पता चल रहा है वो यह है कि हमें गलत चीजें बताई जा रही है."

“उन्होंने कहा, "अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न, प्रेस पर सख्ती, हाइपर और अंधराष्ट्रवाद - ये सभी एक ऐसे लोकतंत्र के संकेत हैं जो कहीं सफल नहीं हुआ है. ".

आयोजकों ने इस तथ्य पर भी अपना असंतोष जताया कि मानवाधिकारों के उल्लंघन पर सवाल उठाए जाने के बावजूद, बाइडेन प्रशासन ने "केवल इस बारे में निजी तौर पर ही एक दूसरे से बातचीत की है कि दोनों देश की सरकारें इस मोर्चे पर क्या सुधार कर सकती हैं".

एक आयोजक ने आगे कहा, "हमें ऐसे प्रशासन की ओर से भारतीय लोकतंत्र में इस तरह की अनदेखी को देखना मंजूर नहीं है जो अमेरिका में तो लोकतंत्र और कानून के शासन की रक्षा करने के लिए काफी कड़ा रहा है. "

हालांकि, प्रधानमंत्री के खिलाफ विरोध करने वालों को न केवल न्यूयॉर्क और वाशिंगटन में मोदी समर्थक रैलियों से बल्कि आयोजकों के गठबंधन के भीतर से भी विरोध का सामना करना पड़ रहा है. द क्विंट के साथ फोन पर बातचीत में एक ऐसे ही व्यक्ति ने कहा:

“बेशक, यहां तक कि जो समूह पीएम मोदी की यात्रा के खिलाफ हैं, उनकी विचारधारा में कुछ बारीकियां हैं. कुछ लोगों ने बाहर जाकर अपने विरोध प्रदर्शनों के जरिए शोर मचाने का फैसला किया है, जो कि 'पुराने स्कूल' का नजरिया है. दूसरे लोग उन्हें इस पर समझाने और जागरूक करने की कोशिश कर रहे हैं.

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पहले जो कई खास अमेरिकी लोगों का सर्किल होता था, जो मोदी के कार्यक्रमों में शामिल होते थे, ने अब अपना नाम भारतीय PM के साथ जोड़ना बंद कर दिया है.
द क्विंट के साथ एक फोन कॉल के दौरान, एक्टिविस्ट स्कॉट वेबर ने दावा किया

वेबर ने कहा कि, यह इस बात का प्रमाण है कि आखिर "नरेंद्र मोदी कौन हैं और वो  किन संगठनों का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसकी वास्तविकता के प्रति अमेरिका में लोग अपनी आंखें खोल रहे हैं."

"मोदी समर्थकों का जोश उतना कहीं नहीं था जितने मैडिसन स्क्वायर गार्डन या 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम में उन्हें देखने आई भीड़ की थी. ऐसा इसलिए है क्योंकि लोग अब इस बात को समझ रहे हैं कि मोदी भारत में क्या कर रहे हैं."  

वेबर ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि मोदी की यात्रा और उनकी सरकार के खिलाफ किए गए दावों से अमेरिका को कोई सरोकार नहीं है. उन्होंने कहा, "जब आपको बीजेपी के खिलाफ बोलने पर देशद्रोह के आरोप में जेल में डाला जा सकता है, तो एक अमेरिकी होने के नाते यह मेरी चिंता है कि  अमेरिका ऐसी सरकार और उसके प्रतिनिधियों के साथ अपना रिश्ता ना बढ़ाए."

विरोध प्रदर्शन करने वाले समूह के एक सदस्य ने कहा, "सच कहूं तो, (मोदी समर्थक रैलियां आयोजित करने वाले समूहों के बारे में), वे दूसरी पीढ़ी के अप्रवासियों के बजाय बड़े पैमाने पर पहली पीढ़ी के अप्रवासी हैं. यह पुरानी मानसिकता है, वही जो उन मुद्दों को कायम रखती है जो भारत को दिक्कत में डालता है. "
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योजना क्या है?

विभिन्न राष्ट्रीयताओं और धार्मिक पृष्ठभूमि वाले लगभग 18 संगठन एक गठबंधन बनाने के लिए एक साथ आए हैं.  ये विरोध प्रदर्शनों, रैलियों, जागरूकता कार्यक्रम, प्रशिक्षण, सभाओं और वार्ता की एक श्रृंखला आयोजित करने की योजना बना रहे हैं. भाग लेने वाले कुछ संगठनों में भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद, पीस एक्शन, वेटरन्स फॉर पीस और बेथेस्डा अफ्रीकी कब्रिस्तान गठबंधन शामिल हैं.

मोदी की अमेरिका यात्रा के तीसरे दिन और राष्ट्रपति बाइडेन के साथ उनकी निर्धारित बैठक में, कई समूह व्हाइट हाउस के पास इकट्ठा होने की योजना बना रहे हैं. इसके अतिरिक्त, न्यूयॉर्क में एक और कार्यक्रम की योजना बनाई गई है, जिसमें "हाउडी डेमोक्रेसी" नामक एक नाटक दिखाया जाएगा.  टेक्सॉस में 2019 के "हाउडी मोदी!" कार्यक्रम में मोदी और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक साथ नजर आए थे और उसी से प्रेरित ये इवेंट लगते हैं.

कथित तौर पर यह नाटक दर्शकों को शामिल करने और लोकतंत्र के आसपास चर्चा को बढ़ावा देने का प्रयास करता है.

इसके अलावा, एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच जैसे प्रमुख संगठन भी बीबीसी की एक डॉक्यूमेंट्री प्रदर्शित करने की योजना बना रहे हैं, जिसमें 2002 के दंगों के दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी की कथित भूमिका की जांच के बारे में बात की जाएगी. मानवाधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित चिंताओं को उजागर किया जाएगा.

विभिन्न विचारधाराओं वाले अधिकार समूहों के विरोध प्रदर्शनों के अलावा, मोदी की यात्रा को 60 से अधिक अमेरिकी सांसदों के प्रतिरोध का भी सामना करना पड़ा है, जिन्होंने एक पत्र लिखकर राष्ट्रपति बाइडेन से मोदी के साथ मानवाधिकार के मुद्दों को उठाने का आग्रह किया था.

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