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Sputnik पर डींगे हांकने वाला रूस मुसीबत में, मौत और केस दोनों बढ़े, भारत ले सबक

Russia की गलतियां-टीके पर ध्यान नहीं, लॉकडाउन में लापरवाही और महामारी में भी विरोधियों को कुचलने पर जोर

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पिछले साल रूस (Russia) ने कोविड 19 (Covid 19) के खिलाफ जंग में अपनी सफलता के गुणगान गाए थे. लॉकडाउन (Lockdown) से दूरी बनाते हुए स्वदेशी वैक्सीन स्पूतनिक वी (Sputnik V) की जमकर तारीफ की, लेकिन आज के दौर में रूस कोविड से होने वाली मौतों और हर दिन आने वाले मामलों के नए रिकॉर्ड्स को देख रहा है. आइए जानते हैं रूस में क्या हुआ और भारत को इससे क्या सबक लेने की जरूरत है.

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पहले एक नजर रूस में कोविड के प्रकोप पर :

इस समय रूस में कोविड महामारी खतरनाक तरीके से बढ़ रही है. रूस के डॉक्टरों ने इसे खतरनाक और चेतावनी भरा संकेत माना है. दैनिक मामलों की बात करें तो रूस में पिछले कुछ दिनों से लगभग 25000 कोविड केस हर दिन देखने को मिल रहे हैं. वहीं कोविड से होने वाली मौतों की बात करें तो औतसन 670 मौतें प्रतिदिन देखने को मिल रही हैं.

इस साल जून की शुरुआत से ही रूस में कोविड के मामले बढ़ने लगे थे. शुरुआत में 9000 केस प्रतिदिन आ रहे थे जो अब बढ़कर 23 हजार और 25000 तक पहुंच गए हैं. पहली बार वहां एक दिन में होने वाली मौतों का सर्वाधिक आंकड़ा (700 से 726 मौतें) देखने को मिला.

इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार हाल ही में रूस में एक दिन में 25766 मामले दर्ज किए गए हैं. ये आंकड़ा जनवरी के बाद अबतक का सर्वाधिक रहा है. रूस की सरकार इसके लिए डेल्टा वैरिएंट को दोषी मानी रही है. रूस की पब्लिक हेल्थ एजेंसी का कहना है कि इन हालातों की वजह डेल्टा वैरिएंट है.

रूस में ऐसे हालात की वजह क्या है?

रूस में कोविड महामारी बढ़ने की प्रमुख वजह डेल्टा वैरिएंट और वैक्सीनेशन की विफलता को माना जा रहा है. मॉस्को के मेयर सर्गेई सोबयानिन (Sergei Sobyanin) ने कुछ दिनों पहले कहा था कि उनके यहां आने वाले कुल मामलों में से 89.3 फीसदी में डेल्टा वैरिएंट पाया गया है. यह स्ट्रेन काफी खतरनाक है. वहीं दूसरी वजह वैक्सीन फेल्यिर है. रूस पिछले साल ही घरेलू वैक्सीन स्पूतनिक वी (Sputnik V) को लॉन्च कर दुनिया का पहला ऐसा देश बना था, जिसने कोरोना वैक्सीन का निर्माण किया हो. लेकिन यह आश्चर्य की बात है कि रूस के लोग ही वहां की वैक्सीन के लिए तैयार नहीं हैं.

आखिर रूस में क्यों नहीं लगावा रहे हैं वैक्सीन?

न्यूज पोर्टल द बेल (The Bell) के मुताबिक रूस के लोग कई वजह से वैक्सीन के प्रति इच्छा नहीं जता रहे हैं. जैसे वैक्सीन के प्रति लोगों के मन में संदेह है. वहीं टीवी में महीनों से लगातार प्रचारित किया जा रहा है कि कोरोना को मात दे दी गई है, ऐसे में लोगों को लगता है कि जब बीमारी को हर दिया गया है तो वैक्सीन क्यों लगवाएं? वहीं अपर्याप्त परीक्षण के डर की वजह से भी लोग वैक्सीन नहीं लगवा रहे हैं.

ऑफर भी नहीं लुभा पा रहा

रूस में वैक्सीनेशन को बढ़ावा देने के लिए वहां लॉटरी सिस्टम चलाया जा रहा है. मॉस्को में यदि लोग वैक्सीनेशन कराते हैं तो उनके पास कार और अपार्टमेंट जीतने तक का मौका रहता है. वहीं जो वैक्सीनेटेड नहीं है उनको रूटीन मेडिकल केयर नहीं मिलती है.

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कामगार विरोध में

रूस में 60 फीसदी कामगारों के लिए वैक्सीनेशन जरूरी है, लेकिन यहां भी दो धाराएं देखने को मिलती है. जहां कुछ संस्थाओं का मानना है कि उनके कर्मचारी वैक्सीन लगवाने के इच्छुक हैं वहीं डोडो पिज्जा के प्रमुख का कहना है कि उनके 70 फीसदी कर्मचारी वैक्सीनेशन के खिलाफ हैं. यदि उन्हें एक डोज के लिए भी बाध्य किया जाता है तो उनकी नौकरी छोड़ने की संभावना है.

माइग्रेंट वर्कर

रूस में कई प्रवासी कामगार हॉस्पिटैल्टी क्षेत्र में काम करते हैं, लेकिन वहां के नियमों के मुताबिक वे वैक्सीन लगवाने के पात्र नहीं हैं. ऐसे में कुछ जगह केवल कुल कामगारों में से केवल 40 फीसदी प्रवासी वर्कर को रखा जा रहा है. जबकि वहां के व्यवसायियों का मानना है कि वे अपने यहां बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिकों को रखते हैं.

फर्जी सर्टिफिकेट की जुगाड़

फोर्ब्स और बाजा जैसे मीडिया प्लेटफार्म में इस खबर की गहन पड़ताल की गई कि किस तरह रूस में ब्लैक मार्केट द्वारा फर्जी वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट बांटा जा रहा है और डॉक्टर अपना टारगेट पूरा करने के लिए मुफ्त में फर्जी सर्टिफिकेट बांट रहे हैं. हालांकि इस तरह की रिपोर्ट्स के बाद वहां ऐसे मामलों पर नकेल कसने की बात कही गई है.

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अक्टूबर तक 60 फीसदी आबादी को टीका देने में विफल रहेगा रूस

एक ओर रूस में कोविड के दैनिक मामले और मौतें लगातार बढ़ रही हैं. वहीं दूसरी ओर लोग वैक्सीनेशन कराने से कतरा रहे हैं. ऐसे में जून के आखिरी में क्रेमलिन की ओर से कहा गया है कि वैक्सीन शॉट्स की सुस्त मांग के चलते पतझड़ तक रूस अपनी 60 फीसदी आबादी को कोविड-19 टीका देने के मामले में विफल हो जाएगा. वहीं बीबीसी की एक खबर में कहा गया है कि टीकों की कमी वजह से रूस में टीकाकरण कमजोर पड़ गया है.

स्नैपशॉट

वर्तमान में क्या है स्थिति :

  • रूस में कोविड के कुल मामले 56 लाख 64 हजार 200 को पार कर गए है.

  • अभी तक 1 लाख 39 हजार 150 से ज्यादा मौतें हो चुकी है.

  • कुल 4 करोड़ 55 लाख 70 हजार 930 से ज्यादा वैक्सीन की डोज लगाई जा चुकी है.

  • 1 करोड़ 85 लाख 14 हजार 790 से अधिक लोग पूरी तरह से वैक्सीनेटेड हैं.

  • महज 12.6 फीसदी आबादी का पूर्ण टीकाकरण हुआ है.

स्रोत : ourworldindata.org

वैक्सीन के प्रति उदासीनता के बीच बूस्टर डोज

रूस में लगभग महज 12.6 फीसदी आबादी को वैक्सीन लगी है. इससे पता चलता है कि वहां वैक्सीनेशन के प्रति कितनी उदासीनता है. वहीं अब तेजी से बढ़ते कोविड-19 के मामलों के बीच रूस में वैक्सीन की बूस्टर डोज देना शुरू कर दिया गया है. स्वास्थ्य अधिकारियों ने उन लोगों को कोविड-19 वैक्सीन की बूस्टर डोज देने की शुरुआत की है, जो संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं या जिनके टीकाकरण को छह महीने पूरे हो चुके हैं.

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रूस कोविड की वर्तमान हालत से बच सकता था!

इन तमाम आंकड़ों के देखने और समझने के बाद सवाल आता है कि क्या रूस इस स्थिति से बच सकता था? ऐसे में कुछ बातें थीं जो सरकार और जनता दोनों को समझनी हैं. एक साल पहले रूस की सरकार ने आंशिक लॉकडाउन को हटा लिया था. तब राष्ट्रपति पुतिन ने इसे “एक हॉलीडे” कहा था. उन्होंने पैसा बचाने और लोकप्रियता बढ़ाने की उम्मीद से ये किया था. ऐसे में लोकप्रियता में इजाफा तो हुआ लेकिन इसके साथ-साथ संक्रमण का खतरा भी था.

पिछले साल अक्टूबर के बाद जब कोरोना की दूसरी लहर ने यूरोप में कहर दिखाया था. तब क्रेमलिन की ओर से लॉकडाउन के दौरान लोगों और व्यवसायों को सपोर्ट करने के लिए कुछ भी पैसा खर्च नहीं किया गया. लोगों को उनके हाल में ही जोखिमों के बीच छोड़ दिया गया.

द इकनॉमिस्ट द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक फरवरी 2021 तब रूस कोविड मृत्यु दर के मामले में दुनिया भर में अग्रणी था. उस समय वहां 4 लाख 60 हजार से ज्यादा मौतें हुई थीं जो सामान्य आंकड़ों की तुलना में काफी ज्यादा था. वहीं आधिकारिक आंकड़ों में मौतों की कुल संख्या 85 हजार से अधिक थी. ऐसे में सरकार तमाम पाबंदियों को हटाकर और फर्जी आंकड़े प्रस्तुत करके सुरक्षा की झूठी भावना पैदा करने में कामयाब रही.

लेवाडा सेंटर के स्वतंत्र सर्वेक्षणकर्ता डेनिस वोल्कोव का कहना है कि ये सब तब हुआ जब लोगों को टीकाकरण के लिए प्रेरित करने का आग्रह किया जाना चाहिए था. मौतों के चौंकाने वाले आंकड़ों के बावजूद फरवरी में 57 फीसदी लोग वायरस की पकड़ में आने को लेकर चिंतित नहीं थे. वहीं दो तिहाई लोगों ने टीकाकरण के विचार को खारिज कर दिया.
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रूसी सरकार ने और क्या गलत किया

जब सरकार की प्राथमिकता टीकाकरण होनी चाहिए थी, तब रूस की सरकार विरोधियों को कुचलने का काम कर रही थी. सबसे प्रमुख विपक्षी अलेक्सी नवलनी को जेल में डाल डालने का काम कर रही थी.

  • सड़कों में विरोध प्रदर्शन करने वालों को पकड़ रही थी.

  • क्रीमिया विलय की सातवीं वर्षगांठ पर मॉस्को के स्टेडियम में 80 हजार लोगों को भरा गया.

  • स्पूतनिक को बड़े ही धूमधाम से लॉन्च किया गया, लेकिन जन सामान्य ने इसे खारिज कर दिया.

  • यूरो 2020 के दौरान सेंट पीटर्सबर्ग शहर कोरोना के डेल्टा वेरिएंट से काफी प्रभावित हुआ है.

भारत को क्या सीख लेने की जरूरत है

रूस में जिस तरह से कोविड के मामले और मौतें में इजाफा हो रहा है, उससे भारत को भी सबक लेने की जरूरत है. हमें वैक्सीनेशन पर पूरा जोर देने की जरूरत है. डोज की कमी पर विशेष ध्यान देना है. लोगों और बिजनेस को सपोर्ट करने की जरूरत है. वैरिएंट के बदलते स्वरूप के अनुसार तैयारियों को ठोस तरीके से देखने की जरूरत है. टीकाकरण में जितनी देरी होगी संक्रमण का खतरा उतना ही बना रहेगा. अनावश्य ढील से बचना होगा. भीड़-भाड पर नकेल कसनी होगी. सरकार को बूस्टर डोज और फर्जी काेविड रिपोर्ट व फेक वैक्सीनेशन पर भी ध्यान देना होगा. जिस तरह रूस में पाबंदियों में ढील देने से मामले बढ़े हैं, वैसा ही भारत में हो सकता है. हाल ही मसूरी और अन्य पर्यटक स्थलों में काफी भीड़ देखी गई है वहां कोविड प्रोटोकाल का पालन भी नहीं देखने को मिला. इससे तीसरी लहर की संभावना बन सकती है.

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