Singapore to end ban on gay sex: सिंगापुर ने आखिरकार उस कानून को खत्म करने का फैसला किया है जो पुरुषों के बीच समलैंगिक यौन संबंधों पर प्रतिबंध लगाता है. सिंगापुर का यह निर्णय सालों के वाद-विवाद और LGBTQ समुदायों के संघर्षपूर्ण आंदोलन के बाद आया है. सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सीन लूंग ने नेशनल टीवी पर अंग्रेजों की गुलामी के काल के 377A कानून को निरस्त करने की घोषणा कर दी है.
बता दें धारा समलैंगिक संबंधों की विरोधी ब्रिटिश धारा 377A सबसे पहले भारत में लागू की गई थी, इसके बाद ही इसे ब्रिटेन के दूसरे उपनिवेशों में लागू किया गया था.
समलैंगिकता पर अपने लंबे समय के विरोध को उलटते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका मानना है कि सिंगापुर सहमति के साथ समलैंगिक पुरुषों के बीच सेक्स के विचार को स्वीकार करने और कानून को रद्द करने के लिए तैयार है, जिसे धारा 377 A के रूप में जाना जाता है.
समलैंगिक अधिकारों के पैरवीकार एक्टिविस्टों ने दशकों से यह तर्क देते हुए इस कानून का विरोध किया है कि यह समलैंगिक पुरुषों को कलंकित करता है और भेदभाव को बढ़ावा देता है.
खास बात है कि सिंगापुर में साल 1938 में ब्रिटिश शासन के दौरान बनाया गया कानून महिलाओं पर लागू नहीं होता है.
क्या अब भी गे मैरिज को मान्यता नहीं मिलेगी?
LGBTQ अधिकार समूहों के एक गठबंधन ने इसे "कठिन जीत और डर पर प्यार की जीत" कहते हुए पूर्ण समानता की दिशा में पहला कदम बताया है. इसके बावजूद उन्हें डर है कि सिंगापुर में अब भी गे मैरिज को कानूनी मान्यता नहीं मिलेगी.
तीन अलग-अलग भाषाओं में भाषण देते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि वह सिंगापुर में विवाह की परिभाषा को सुरक्षित करने के लिए एक संवैधानिक संशोधन का प्रस्ताव करेंगे, जो केवल एक पुरुष और एक महिला के बीच विवाह को मान्यता देता है.
"मैं सभी को आश्वस्त करता हूं कि इस मुद्दे से निपटने में, सरकार परिवारों को समाज के बुनियादी ढांचे के रूप में बनाए रखना जारी रखेगी.. हम परिवार और विवाह पर अपनी नीतियों को अपरिवर्तित रखेंगे और हमारे समाज के प्रचलित मानदंडों और सामाजिक मूल्यों को बनाए रखेंगे"सिंगापुर के प्रधानमंत्री
पीएम ने यह भी कहा कि "हर समूह को यह स्वीकार करना चाहिए कि उसे वह सब कुछ नहीं मिल सकता जो वह चाहता है क्योंकि यह संभव नहीं है.. हमें आपसी सम्मान और विश्वास बनाए रखना चाहिए जो हमने सालों की मेहनत से बनाया है."
धारा 377: इस ब्रिटिश रूढ़िवादी बोझ को भारत भी उतार चुका है
समलैंगिक संबंध विरोधी धारा- 377 के संस्करण वाला सिंगापुर एकमात्र पुराना ब्रिटिश उपनिवेश नहीं है. आज भी यह कानून एशिया, अफ्रीका और ओशिनिया के उन कई हिस्सों में मौजूद है जहां कभी ब्रिटेन ने औपनिवेशिक काल में शासन किया था.
भारतीय दंड संहिता (IPC) में धारा 377 19 वीं शताब्दी में भारत में औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार द्वारा पेश की गई थी. यह कानून "किसी भी पुरुष, महिला या जानवर के साथ अप्राकृतिक शारीरिक संबंध" को गैरकानूनी और दंडनीय बनाता था.
यह जल्द ही भारत के बाहर कम से कम अन्य 39 उपनिवेशों में भी फैल गया जहां ब्रिटिश हुकूमत थी. इसका कारण था कि अंग्रेजों ने भारतीय दंड संहिता का इस्तेमाल अन्य क्षेत्रों में आपराधिक कानून कोड को बनाने के आधार के रूप में किया था.
केन्या, मलेशिया और म्यांमार जैसे कई पूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों में अभी भी 377 का कुछ संस्करण है. यानी यहां होमोसेक्सुअलिटी/समलैंगिकता गैरकानूनी है.
एक ऐतिहासिक फैसले में, 6 सितंबर, 2018 को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 377 को असंवैधानिक करार दिया और निजी तौर पर सहमत वयस्कों के बीच समलैंगिक यौन संबंध को कानूनी बताया. SC ने फैसला सुनाया कि सहमति से वयस्क समलैंगिक यौन संबंध अपराध नहीं है क्योकि सेक्सुअल ओरिएंटेशन स्वाभाविक है और लोगों का इस पर कोई नियंत्रण नहीं है.
हाल के वर्षों में एशिया के अन्य हिस्सों ने भी समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के लिए कदम बढ़ाया है. 2019 में ताइवान ऐसा करने वाला पहला क्षेत्र बन गया, और जून 2022 में थाईलैंड ने भी सेम-सेक्स मैरिज को अनुमति देने वाले मसौदा कानून को मंजूरी दी. भूटान ने पिछले साल समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया.
यूके के NGO ह्यूमन डिग्निटी ट्रस्ट के अनुसार, ऐसे 70 क्षेत्राधिकार/देश हैं जहां समलैंगिकता गैरकानूनी है, जिनमें से अधिकांश स्पष्ट रूप से पुरुषों के बीच यौन संबंध को अपराध मानते हैं. उनमें से लगभग आधे ब्रिटेन के उपनिवेश रह चुके हैं. पूर्व ब्रिटिश उपनिवेश जहां 377 विभिन्न रूपों में मौजूद हैं, उनमें मलेशिया, ब्रुनेई, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और म्यांमार शामिल हैं.
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