पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को देशद्रोह के मामले में एक स्पेशल कोर्ट की 3 जजों की बेंच ने मौत की सजा सुनाई है. बता दें कि पेशावर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस वकार अहमद की अगुवाई वाली इस बेंच ने 17 दिसंबर को मुशर्रफ को यह सजा सुनाई है.
मुशर्रफ के खिलाफ देशद्रोह के आरोप 2007 में संविधान निलंबित करने और आपातकाल घोषित करने की वजह से लगाए गए.
न्यूज एजेंसी आईएएनएस के मुताबिक, मुशर्रफ पर दिसंबर 2013 में देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया था. उन्हें 31 मार्च 2014 को दोषी ठहराया गया और अभियोजन पक्ष ने उसी साल सितंबर में विशेष अदालत के सामने सबूत पेश किए थे.
हालांकि अपीलीय मंचों पर मुकदमा चलने की वजह से मामला टलता गया और मुशर्रफ ने मार्च, 2016 में पाकिस्तान छोड़ दिया. मुशर्रफ इलाज के नाम पर दुबई गए थे. वह सुरक्षा और स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर तब से पाकिस्तान लौटे नहीं हैं.
अपने खिलाफ दर्ज देशद्रोह के मामले पर हाल ही में मुशर्रफ ने कहा था, “यह केस मेरी नजर में बिल्कुल बेबुनियाद है. गद्दारी तो छोड़ें, मैंने इस मुल्क के लिए जंगें लड़ी हैं और दस साल तक इसकी सेवा की है.”
इस्लामाबाद स्थित स्पेशल कोर्ट ने मुशर्रफ को निर्देश दिया था कि वह देशद्रोह मामले में 5 दिसंबर को अपना बयान दर्ज कराएं.
स्पेशल कोर्ट ने मुशर्रफ को कई बार तलब किया था लेकिन वह पेश नहीं हुए थे. कोर्ट ने 19 नवंबर को मामले की सुनवाई पूरी कर ली थी और कहा था कि वो 28 नवंबर को फैसला सुनाएगा. इसके बाद ना केवल मुशर्रफ बल्कि पाकिस्तान की इमरान सरकार ने भी इस्लामाबाद हाई कोर्ट का रुख किया था और स्पेशल कोर्ट को फैसला सुनाने से रोकने की अपील की थी. इनका कहना था कि अस्वस्थ होने के कारण मुशर्रफ मामले में अपना पक्ष नहीं रख सके हैं, उन्हें पक्ष रखने दिया जाए. इस पर इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने स्पेशल कोर्ट को फैसला सुनाने से रुकने और मामले की सुनवाई 5 दिसंबर से करने को कहा था.
आईएएनएस के मुताबिक, स्पेशल कोर्ट ने कहा था कि वो सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को ही मानेगा और हाई कोर्ट के निर्देश उसके लिए मायने नहीं रखते. मगर स्पेशल कोर्ट ने मुशर्रफ को 5 दिसंबर को अपना पक्ष रिकॉर्ड कराने का आदेश दिया था.
5 दिसंबर को सरकार की अभियोजन टीम स्पेशल कोर्ट के सामने पेश हुई थी. इसके बाद स्पेशल कोर्ट ने कहा था कि वो 17 दिसंबर को इस मामले में फैसला सुनाएगा.
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