दुनिया के सबसे गरीब देशों में शुमार सूडान (Sudan) की राजधानी खार्तूम में पिछले कुछ दिनों से सेना (army) और अर्धसैनिक बलों (RSF) के बीच भयंकर लड़ाई जारी है. दो जनरलों (अब्देल फतह अल बुरहान और मोहम्मद हमदान दागलो) की वजह से चल रहे इस संघर्ष में अब तक लगभग 200 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 1800 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. खार्तूम और सूडान के दूसरे शहरों के घनी आबादी वाले इलाके में चल रहे संघर्ष में आसमान से हवाई हमलों के साथ ही सड़कों पर टैंकों से हमला हो रहा है और भारी हथियारों से गोलीबारी हो रही है. यहां ऐसे हालात बन चुके हैं कि लोग अपने घरों में छिपे हुए हैं. आइए विस्तार से जानते हैं यहां के पूरे घटनाक्रम को...
कैसे हैं सूडान के हालात?
सूडान के अलग-अलग इलाकों में यह संघर्ष फैल रहा है. बीबीसी की रिपोर्ट में डॉक्टरों का कहना है कि खार्तूम के अस्पतालों में हालात बेहद मुश्किल हो गए हैं. संघर्ष के चलते स्वास्थ्यकर्मी घायलों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. खार्तूम के स्थानीय निवासी लगातार चलती गोलियों और धमाकों की आवाजों से डरे हुए हैं. वहां के लोग किसी भी जगह अपनी सुरक्षा को लेकर आश्वस्त नहीं हैं.
भारतीय दूतावास ने भी सूडान में रह रहे सभी भारतीयों को घर के अंदर रहने की सलाह दी है.
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार शहर के बीचों-बीच स्थित सेना मुख्यालय के आसपास गोलियों की आवाज सुनी गई हैं.
3 UN स्टाफ की मौत के बाद, WFP ने अपना खाद्य सहायता अभियान स्थगित कर दिया है.
यूएन प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है कि “मैं सूडान में भड़की इस लड़ाई की कड़ी भर्त्सना करता हूं और त्वरित समर्थन बलों (RSF) व सूडानी सशस्त्र बलों (SAF) के नेताओं से लड़ाई तत्काल बन्द करने, शान्ति बहाल करने, और इस संकट को हल करने के लिए बातचीत शुरू करने की अपील करता हूं.”
देश को कौन चला रहा है?
अक्टूबर 2021 में एक तख्तापलट के बाद से देश को सार्वभौम परिषद के जरिए सेना चला रही है. आर्मी चीफ जनरल अब्देल फतह अल बुरहान इस सार्वभौम परिषद के प्रमुख हैं जबकि जनरल मोहम्मद हमदान दागलो इस परिषद के उपाध्यक्ष हैं.
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में तख्तापलट से दो साल पहले सूडान पर शासन कर रहे उमर अल-बशीर की सरकार को सत्ता से हटा दिया गया था और एक अंतरिम सरकार अस्तित्व में आई थी. अंतरिम सरकार बनने के बाद से सेना और नागरिक सरकार में तकरार की स्थिति बनी थी, जिसके बाद 2021 में ही तख्तापलट हुआ.
कैसे शुरु हुआ हालिया संघर्ष?
हालिया संघर्ष की मुख्य वजह सेना और अर्धसैनिक बल RSF का विलय है. न्यूज रिपोर्ट्स के अनुसार यह संघर्ष नागरिक सरकार को सत्ता हस्तांतरित करने की मांग को लेकर शुरू हुआ है. अक्टूबर 2021 में देश में हुए तख्तापलट के बाद बनी अंतरिम सरकार और सेना के बीच लगातार टकराव होता रहा है.
2021 के तख्तापलट के बाद सूडान की सत्ता पर काबिज होने वाले दो जनरलों के बीच चल रही वर्चस्व की लड़ाई की वजह से सूडान का मौजूदा हाल हो रहा है. ये दो जनरल हैं- सूडान के आर्मी चीफ अब्देल फतह अल बुरहान और उनके डिप्टी मोहम्मद हमदान दागलो. दागलो सूडान की ताकतवर अर्धसैनिक बल रैपिड सपोर्ट फोर्सेज यानी RSF के प्रमुख हैं.
RSF प्रमुख ने कहा है कि सेना के सभी ठिकानों पर कब्जा होने तक उनकी लड़ाई चलती रहेगी. वहीं सेना ने बातचीत की किसी संभावना को नकारते हुए कहा है कि अर्धसैनिक बल RSF के भंग होने तक उनकी कार्रवाई जारी रहेगी.
क्यों हुआ मतभेद? अब क्या हो रहा है?
RSF का गठन पूर्व तानाशाह राष्ट्रपति ओमर अल बशीर के शासनकाल के दौरान 2013 में हुआ था. इसमें ज्यादातर जंजावीड मिलिशिया के लोग थे. इन्हें बशीर की सरकार ने गैरअरब जातीय अल्पसंख्यकों के खिलाफ दशक भर पहले इस्तेमाल किया था.
2021 में दोनों जनरलों ने साथ मिलकर तख्तपलट किया था और उस समय जो करार हुआ था उसमें RSF को सेना में शामिल करने की बात कही गई थी. लेकिन अब इसी RSF को नियमित सेना में शामिल करने को लेकर दोनों जनरलों के बीच मतभेद हो गया है, जिसकी वजह से दोनों आपस में भिड़ गये हैं. जनरल दागलो का कहना है कि 2021 का तख्तापलट एक गलती थी.
दोनों जनरल एक दूसरे पर लड़ाई शुरू करने और देश के प्रमुख ठिकानों पर अपने नियंत्रण के दावों के साथ खुद को ज्यादा मजबूत बताने में जुटे हुए हैं. इन ठिकानों में एयरपोर्ट और राष्ट्रपति भवन भी शामिल हैं.
RSF का ट्रैक रिकॉर्ड खराब रहा है. इस पर मानवाधिकारों के उल्लंघन के कई आरोप हैं, जिसमें जून 2019 का नरसंहार भी शामिल है. उस नरसंहार में करीब 120 प्रदर्शनकारियों को मार डाला गया था.
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार सेना और अर्धसैनिक बल के बीच ये तनाव कई सालों से चल रहा है. गोलीबारी और विस्फोट के बाद हालात मुश्किल हो गए हैं. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार RSF ने कहा कि सेना के साथ संघर्ष शुरू होने के बाद उन्होंने बीते शनिवार को राष्ट्रपति भवन, सेना प्रमुख के आवास और खार्तूम अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर कब्जा कर लिया है.
कुछ दिनों पहले RSF ने कहा था कि खार्तूम स्थित उनके एक शिविर पर हमला किया गया है. जबकि सेना का कहना है कि RSF के लड़ाके सैन्य मुख्यालय पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं.
समाचार एजेंसी AFP के मुताबिक सेना प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल नबील अब्दुल्ला ने कहा है कि "RSF के लड़ाकों ने खार्तूम और सूडान के आस-पास कई सैन्य शिविरों पर हमला किया है. लड़ाई जारी है और सेना देश की सुरक्षा के लिए अपने कर्तव्य का पालन कर रही है." वहीं जनरल बुरहान का कहना है कि वो सिर्फ चुनी हुई सरकार को ही सत्ता सौंपेंगे. इन दोनों जनरलों ने ही सूडान में एक सैन्य तख्तापलट किया था, लेकिन तख्तापलट के दो साल से भी कम समय में दोनों जनरलों के बीच ही विवाद बढ़ गया है. सेना प्रमुख जनरल बुरहान ने कहा है कि सेना किसी निर्वाचित सरकार को ही सत्ता का पूर्ण हस्तांतरण करेगी.
आजादी के बाद से ही संघर्ष देखता आ रहा है सूडान
आजादी के बाद से ही सूडान लगातार गृहयुद्धों, तख्तापलट और विद्रोह में घिरा रहा है. पिछले पांच दशकों में सूडान ने कई गृह युद्ध देखे हैं, जिससे बड़े पैमाने पर यहां मौत और भुखमरी जैसी समस्याएं देखने को मिली हैं.
जनवरी 1956 में सूडान आजाद हो गया था, लेकिन उससे पहले अप्रैल 1955 में वहां उत्तर और दक्षिण में गृह युद्ध शुरू हो गया. 1969 में पहले सैन्य तख्तापलट के बाद जाफर मुहम्मद निमेरी 1969 से 1985 तक देश के राष्ट्रपति रहे. 1986 में सादिक अल महदी प्रधानमंत्री बने, लेकिन 1989 में ब्रिगेडियर ओमर हसन अल-बशीर ने उनका तख्तापलट कर दिया और वह अप्रैल 2019 तक देश के राष्ट्रपति रहे.
2019 में तीन दशक तक सूडान की सत्ता में रहने वाले राष्ट्रपति ओमर अल-बशीर का तख्तापलट हो गया था. तब तत्कालीन रक्षा मंत्री इब्न औफ ने अपने बयान में कहा था कि देश कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार और अन्याय का शिकार था.
ओमर अल बशीर के शासन काल में सूडान ने भयंकर गृहयुद्ध झेला था. अंतरराष्ट्रीय अदालत की ओर से जारी गिरफ्तारी वारंट के बावजूद बशीर ने 2010 और 2015 का चुनाव जीता.
2019 में बशीर के सत्ता से हटने के बाद सूडान में सेना के सपोर्ट से एक लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना की गई थी. लेकिन 2021 में इन दोनों जनरलों ने तख्तापलट कर नागरिक शासन की तरफ बढ़ते कदमों पर विराम लगा दिया था.
सूडान में अधिकतर समय सैन्य शासन रहा और इसका प्रमुख कारण वहां कई तरह के जनजातीय समूहों का होना भी है. इस कारण यहां कई राजनीतिक पार्टियां बनीं और वह आपस में लड़ती रहीं.
ओमर अल-बशीर उत्तर और दक्षिण को एकसाथ रखने के नारे के साथ सत्ता में आए थे. लेकिन उन पर दक्षिण सूडान और पश्चिमी सूडान के दारफूर में नरसंहार कराने के आरोप लगे. दारफूर में लगभग तीन लाख लोगों के मारे जाने का अनुमान लगाया जाता है. इसके लिए अंतरराष्ट्रीय आपाराधिक न्यायालय ने अल-बशीर को युद्ध अपराधी घोषित किया हुआ है.
1956 में स्वतंत्रता के बाद से सूडान छह तख्तापलट और तख्तापलट के 10 असफल प्रयासों का गवाह रहा है.
सूडान के आम लोग दशकों से कुशासन के शिकार रहे हैं.
सेना की तरफ लोगों ने क्यों देखा?
दीपक वोहरा जोकि सूडान में भारत के राजदूत रह चुके हैं, उन्होंने बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहा है कि सूडान में सत्ता परिवर्तन होते रहे लेकिन उत्तर और दक्षिण के बीच गृह युद्ध ज्यों का त्यों चलता रहा. सूडान के लोग दुनिया की ओर देख रहे थे कि वहां तरक्की हो रही है लेकिन यहां पर कुछ नहीं हो रहा. इसलिए इन्होंने सेना पर भरोसा किया और सेना ने वहां विकास भी किया.
दीपक वोहरा ने यह भी कहा है कि सूडान में दो-तीन बार यह हुआ है कि जब वहां के लोग सैन्य शासन से तंग आते हैं तो सौरा (क्रांति) का नारा लगाते हैं. अल-बशीर 30 साल तक पावर में रहे और उन्होंने सोचा कि वह इसे नियंत्रित करके रखेंगे लेकिन उन्हीं की सेना के लोगों ने उन्हें हटा दिया.
अब आगे क्या? दुनिया के बाकी देशों का इस पर क्या कहना है?
सूडान में 2021 में हुए तख्तापलट के बाद अमेरिका ने सूडान को मिलने वाली 70 करोड़ डॉलर की सहायता रोक दी थी. उसके बाद सड़कों पर लोगों का जमकर विरोध प्रदर्शन हुआ था.
इस लड़ाई से सूडान और कमजोर हो सकता है. इसके कारण देश में अशांति बढ़ सकती है. अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ, कई देशों ने इस समस्या को हल करने के लिए संघर्ष विराम लागू करने और बातचीत करने की अपील की है. अमेरिकी राजदूत जॉन गॉडफ्रे ने ट्वीट कर वरिष्ठ सैन्य नेताओं से तत्काल प्रभाव से लड़ाई बंद करने के लिए कहा है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार रूसी दूतावास ने भी दोनों पक्षों से संघर्ष रोकने के लिए कहा है.
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