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सीरिया में 5 लाख लोगों का हत्यारा कौन? क्यों छिड़ा है गृह युद्ध?

पिछले 10 सालों में गृह युद्ध ताकत के संघर्ष में बदल चुका है

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लेखिका जैस्मीन वर्गा ने 2019 में अपनी किताब 'Other Words for Home' में लिखा था, "जो लोग सीरिया के शहरों में हैं, उन्हें नहीं पता किसकी तरफ खड़ा होना है. वो सिर्फ चाहते हैं कि हिंसा बंद हो जाए. अब किसी को नहीं पता कौनसा पक्ष सही है." सीरिया में गृह युद्ध को 10 साल हो गए हैं और वहां की परिस्थिति को इससे अच्छी लाइन में नहीं समझा जा सकता है.

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हालांकि, अगर सीरिया में 10 सालों से चल रही हिंसा को एक लाइन में समझाना हो तो कह सकते हैं - 'एक जिद्दी तानाशाह राष्ट्रपति पद से हटने से इनकार कर रहा है.' अगर विस्तार में समझाना हो तो संप्रदायवाद, दूसरे देशों की दखलंदाजी, पश्चिम की अनिच्छा और राष्ट्रपति बशर अल-असद की निर्दयता पर रोशनी डालनी पड़ेगी.

लेकिन कितने भी शब्दों में सीरियन गृह युद्ध को बयां कर लीजिए, उससे सीरिया पर जो गुजरी है उसका अंदाजा भी नहीं लगा पाएंगे. पिछले 10 सालों में 5 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. लगभग 4 लाख मौतें तो सही से दर्ज हैं और 2 लाख से ज्यादा लोगों का कुछ अता-पता नहीं है. पर शुरुआत कहां से हुई थी? 

जहां से अधिकतर मिडिल ईस्ट संकट शुरू हुआ था- अरब स्प्रिंग....

बशर अल-असद को राष्ट्रपति पद और ताकत अपने पिता हाफिज अल-असद से विरासत में मिली थी. साल 2000 में तत्कालीन राष्ट्रपति हाफिज की मौत हो गई थी. बशर को सीरिया का सर्वोच्च पद किस्मत से मिला था क्योंकि उन्होंने इसकी कभी चाहत नहीं रखी थी. बड़े भाई बसील की मौत के बाद उन्हें लंदन से वापस बुलाकर हाफिज ने राजनीति में झोंक दिया.

मेडिसिन पढ़ने वाले बशर ने आधुनिकता की वकालत की और 17 जुलाई 2000 को अपने पिता की अचानक मौत के बाद राष्ट्रपति बन गए. लोगों को उम्मीद थी कि बशर अपने पिता की तरह क्रूर शासक नहीं होंगे क्योंकि वो लोगों से सीरिया को बदलने की मदद मांग रहे थे. हालांकि, ऐसा कुछ हुआ नहीं और खुफिया पुलिस का शासन और तानाशाही बेसबब चलती रही.  

साल 2011 में पूरी अरब दुनिया में खलबली मची हुई थी. मिस्र, यमन, ट्यूनीशिया से लेकर इराक, सीरिया तक में लोग सड़कों पर थे. सबकी एक ही मांग थी. तानाशाही से लोकतंत्र की तरफ बढ़ा जाए, आर्थिक सुधर किए जाएं, नौकरियां बढ़ें और तानाशाह सत्ता छोड़ें. मिस्र में होस्नी मुबारक, यमन में अली अब्दुल्लाह सालेह, ट्यूनीशिया में अबिदीन बेन अली ने गद्दी छोड़ दीं. लेकिन बशर अल-असद कोई मुबारक या सालेह नहीं थे.

मार्च 2011 तक सीरिया में भी प्रदर्शन शुरू हो चुके थे. फिर डेरा शहर में कई बच्चों को सरकार ने हिरासत में ले लिया. उन्होंने दीवार पर लिख दिया था - ‘डॉक्टर अब तुम्हारा समय है.’ एक 13 साल के बच्चे की टॉर्चर की वजह से मौत भी हो गई थी. प्रदर्शन तेज हुए तो असद ने बात करने की बजाय पुलिस को विद्रोह दबाने के लिए गोली चलाने का आदेश दे दिया था.  

विद्रोहियों ने हथियार उठा लिए और उनका साथ देने के लिए सीरिया की सेना के काफी अफसरों ने बगावत कर दी. जुलाई 2011 में सेना से अलग हुए लोगों ने फ्री सीरियन आर्मी बना ली और इसी के साथ गृह युद्ध की नींव डल गई. देश में अस्थिरता और सरकार के प्रति गुस्से का फायदा उठाते हुए इस्लामिक स्टेट ने भी सीरिया में अपने पांव जमा लिए हैं. हालांकि, मिडिल ईस्ट के बाकी संकटों की तरह सीरिया के गृह युद्ध को इस स्थिति में पहुंचाने में बाकी देशों का बहुत बड़ा हाथ है.

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गृह युद्ध ताकत के संघर्ष में बदला

बशर अल-असद इतने सालों तक अगर सीरिया में टिके हैं तो उसकी वजह उन्हें रूस और ईरान से मिलने वाला समर्थन है. 2011 में विरोध-प्रदर्शनों के बाद ही पश्चिमी देशों ने असद से राष्ट्रपति पद छोड़ने की अपील की थी. पर असद के पास व्लादिमीर पुतिन और ईरान का साथ था.

रूस के लिए बशर मिडिल ईस्ट में सबसे करीबी सहयोगी हैं. रूस का सीरिया में एक नेवल और एक मिलिट्री एयरबेस है. पुतिन कभी नहीं चाहेंगे कि असद के हाथों से सीरिया का शासन चला जाए. इसके लिए उन्होंने असद की भरपूर मदद की है. रूस 2015 से सीरिया में एयरस्ट्राइक्स कर रहा है और वो अपना टारगेट ‘आतंकियों’ को कहती है. लेकिन आंकड़े बताते हैं कि रूस ने विद्रोह को दबाने में असद की मदद की है और उन्होंने सीरियन लोगों पर हमले तक किए हैं.  

ईरान का भी सीरिया में रूस जैसा ही हित है. वो भी मिडिल ईस्ट में अपने सहयोगी को नहीं खोना चाहता है. ईरान प्रॉक्सी युद्ध के लिए जाना जाता है और सीरिया के लिए उसने लेबनान से मिलिटेंट संगठन हिजबुल्लाह की मदद तक मुहैया कराई है. ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने असद की सेना को इंटेलिजेंस और हथियारों की मदद दी है. हिजबुल्लाह तक पहुंच बनाए रखने के लिए भी ईरान को सीरिया की जरूरत है.

तुर्की भी सीरियन गृह युद्ध में अलग-अलग धड़ों को अपना समर्थन देता है. तुर्की मुख्य रूप से कुर्दिश फोर्सेज के खिलाफ लड़ता है. अमेरिका की अगुवाई वाले गठबंधन में रहते हुए तुर्की ने इस्लामिक स्टेट के ठिकानों पर एयरस्ट्राइक्स भी की है. तुर्की का कहना है सीरिया के कुर्दिश लड़कों का संबंध कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (PKK) से है, जिसके साथ उसने कई दशकों तक लड़ाई लड़ी है.

सीरिया में असद के अभी तक तानाशाही चलाने के पीछे अगर रूस और ईरान हैं तो इस गृह युद्ध को निर्याणक मोड़ तक न पहुंचाने में अमेरिका और पश्चिमी देश भी जिम्मेदार हैं. अमेरिका ने सीरिया के कई नरम विद्रोही दलों को हथियार और वित्तीय मदद दी है. अमेरिकी एयरस्ट्राइक्स ने कभी भी बशर अल-असद की सेना को सीधे तौर पर निशाना नहीं बनाया है.  

अमेरिका की लड़ाई मुख्य रूप से इस्लामिक स्टेट से रही है. मिडिल ईस्ट एक्सपर्ट्स कहते हैं कि अमेरिका असद की सेना के साथ सीधी लड़ाई इसलिए नहीं करता है क्योंकि इसका नतीजा रूस के साथ तनाव हो सकता है. 2017 के दिसंबर में तत्कालीन यूएस राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सीरिया से अमेरिकी सेना वापस बुलाने का ऐलान कर दिया था.

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अभी सीरिया में क्या स्थिति है?

सीरिया के अधिकतर बड़े शहरों पर अब असद की सेना का नियंत्रण है. फिर भी देश के बड़े हिस्से अभी भी विद्रोहियों, जिहादी आतंकी और सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज के कब्जे में हैं.

उत्तर-पश्चिम सीरिया का इदलिब अभी भी एक बड़ा शहर बचा है जो असद के नियंत्रण से बाहर है. मार्च 2020 में रूस और तुर्की की मदद से इदलिब को वापस लेने के सैन्य कैंपेन में सीजफायर का ऐलान हुआ था. उसके बाद से हालात थोड़े सामान्य हैं.  

वहीं, देश के उत्तर-पूर्व में तुर्की अपने सहयोगी विद्रोहियों के साथ SDF से लड़ रहा है. तुर्की को शिकायत है कि इस इलाके में कुर्दिश फोर्सेज का बोलबाला है जो उसे गंवारा नहीं है. हालांकि, SDF ने तुर्की का हमला रोकने के लिए असद की सेना के साथ समझौता किया है. इसके बाद से कुर्दिश इलाकों में सीरियन सेना की मौजूदगी बढ़ गई है.

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युद्ध ने मिडिल ईस्ट को कैसे प्रभावित किया?

ये सीरिया का गृह युद्ध ही था, जिसकी वजह से इस्लामिक स्टेट (ISIS) को दुनिया का सबसे खूंखार आतंकी संगठन बनने का मौका मिला था. 2014 में इस्लामिक स्टेट ने पूर्वी सीरिया के शहर रक्का पर कब्जा कर लिया था. इसके बाद ही IS ने इराक के मोसुल की तरफ कूच किया था.

सीरियन गृह युद्ध ने ईरान को अपना वर्चस्व बढ़ाने का मौका दिया. ईरान के समर्थन से बशर-अल असद सत्ता में बने रहे. सीरिया मुख्य रूप से सुन्नी मुस्लिमों का देश है, जबकि असद परिवार अल्पसंख्यक अलावी समुदाय से ताल्लुक रखता है. ऐसे में ईरान का एक सुन्नी बहुल देश में अपना प्रभाव बढ़ाना मिडिल ईस्ट के बाकी सुन्नी देशों को फूटी आंख नहीं सुहाता है. इराक और सीरिया जैसे देशों में चल रहे प्रॉक्सी युद्ध इन्हीं सबका नतीजा है.

रुस मिडिल ईस्ट में ‘बिग ब्रदर’ बन चुका है. उसने सालों तक अमेरिका को इस क्षेत्र के लिए फैसले लेते देखा है. अब ये काम रूस करता है. अमेरिका का प्रभाव सऊदी अरब और UAE तक ही सीमित हो गया है. सीरियन गृह युद्ध पर रूस का क्या प्रभाव है, इसके लिए ब्रिटेन के पूर्व विदेश मंत्री फिलिप हैमंड का बयान देख सकते हैं. 2016 में हैमंड ने कहा था, “इस गृह पर सिर्फ एक आदमी है जो सीरिया का गृह युद्ध एक फोन कॉल पर खत्म करा सकता है, वो मिस्टर पुतिन हैं.” 
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10 साल के गृह युद्ध ने सीरिया को कैसे बदला?

यूके स्थित मॉनिटरिंग ग्रुप सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स (SOHR) ने दिसंबर 2020 तक 387,118 मौतें दर्ज की थी. इनमें 116,911 सीरिया के नागरिक थे. इस आंकड़े में वो 205,300 लोग शामिल नहीं हैं, जो लापता हैं और मृत समझे जाते हैं.

करीब 88,000 नागरिकों के सरकारी जेलों में टॉर्चर से मौत हो चुकी है. UNICEF के मुताबिक, लगभग 12,000 बच्चों की या तो मौत हुई है या वो गंभीर रूप से घायल हैं.

एक दूसरे मॉनिटरिंग ग्रुप वायोलेशंस डॉक्यूमेंटेशन सेंटर की रिपोर्ट कहती है कि दिसंबर 2020 तक सीरिया में 226,374 युद्ध-संबंधी मौतें हो चुकी हैं. असद सरकार 1.5 लाख से ज्यादा मौतों की जिम्मेदार है.  

SOHR के मुताबिक, 21 लाख से ज्यादा नागरिक गृह युद्ध की वजह से किसी तरह की चोट या स्थायी विकलांगता का शिकार हो चुके हैं.

1 करोड़ लोग अपने घरों को छोड़ चुके हैं. 60 लाख से ज्यादा सीरिया में ही शरणार्थियों की जिंदगी जी रहे हैं. ये लोग अपने घरों से दूर कैंपों में रह रहे हैं. 50 लाख से ज्यादा दूसरे देशों में शरणार्थी बन चुके हैं. सीरिया के पड़ोसी लेबनान, जॉर्डन और तुर्की ने सबसे ज्यादा शरणार्थियों को पनाह दी है.

10 लाख सीरियन शरणार्थी बच्चे अपने घरों से दूर पैदा हुए हैं. यूनाइटेड नेशंस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी 2021 तक 1 करोड़ से ज्यादा लोगों को सीरिया में किसी न किसी तरह की मानवीय मदद की जरूरत है. 1.2 करोड़ से ज्यादा लोग हर दिन खाना ढूंढने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और करीब 5 लाख बच्चे बुरी तरह कुपोषित हैं.  

सीरिया ने 2011 में जो चाहा था और जो उसे हासिल हुआ है, वो लेखिका वेंडी पर्लमैन की किताब 'We Crossed a Bridge and It Trembled: Voices from Syria' का एक किरदार कुछ यूं बयां करता है, "हमें पता है आजादी की एक कीमत होती है. लेकिन हमने शायद आजादी और लोकतंत्र से ज्यादा कीमत चुकाई है. आजादी की हमेशा कीमत होती है. लेकिन इतनी भी नहीं."

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