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तुर्की की अदालत ने ‘प्रेस की स्वतंत्रता’ के मामले में मिसाल पेश की

संवैधानिक अदालत ने फैसला सुनाया कि सरकारी खुफिया जानकारी का खुलासा करने पर पत्रकारों की गिरफ्तारी गलत.

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‘प्रेस की स्वतंत्रता’ और ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ के लिए भारत में ही नहीं, बल्कि कई अन्य देशों में भी संघर्ष चल रहा है. तुर्की उन्हीं देशों में से एक है.

शुक्रवार सुबह तुर्की की एक संवैधानिक अदालत ने यह फैसला सुनाया कि सरकारी खुफिया जानकारी का खुलासा करने के लिए जिन दो पत्रकारों को पिछले तीन महीनों से जेल में बंद करके रखा गया है, वह पत्रकारों के अधिकारों का उल्लंघन है.

आपको बता दें कि तुर्की की इस अदालत ने आज अपना फैसला सुनाते हुए इन दोनों पत्रकारों को रिहा कर दिया. इस मामले को अब तक तुर्की का सबसे विवादास्पद मामला कहा जा रहा था.

चिहान संवाद समिति और जम्हूरियत समाचार पत्र ने बताया कि इस समाचार पत्र के प्रधान संपादक कान दुंदर और अंकारा में इसके ब्यूरो चीफ अर्देम गुल इस्तांबुल के बाहरी इलाके में स्थित सिलिवरी जेल से बाहर आए, जहां उनके समर्थकों और परिजन ने उनका स्वागत किया.

ये पत्रकार उस रिपोर्ट से जुड़े मामले में नवंबर से हिरासत में थे, जिसमें आरोप लगाया गया था कि राष्ट्रपति रेसेप तैयेप एरदोगान की सरकार ने सीरिया में इस्लामवादियों को समुद्र के रास्ते हथियार भेजने की कोशिश की.

उनके खिलाफ 25 मार्च से मुकदमा शुरु होना था और वे 93 दिनों तक जेल में रहे.

चिहान ने दुंदर के हवाले से कहा, ‘मेरा मानना है कि यह एक बहुत ऐतिहासिक निर्णय है.’ उन्होंने कहा,‘संवैधानिक अदालत का यह निर्णय केवल हमारे लिए नहीं है. यह हमारे साथ उन सभी सहकर्मियों, प्रेस की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी पर लागू होता है.’

उन्होंने इस संयोग का जिक्र किया कि उन्हें 26 फरवरी को एरदोगान के जन्म दिवस पर रिहा किया गया.

गुल ने कहा,

यह वह रिपोर्ट नहीं है, जिसके बारे में मैं कहूं कि ‘काश, मैंने यह नहीं लिखी होती.’ यह एक ऐसी रिपोर्ट है, जिसके बारे में मैं कहना चाहता हूं कि मैं काश इसे जारी रख पाउं.

अदालत ने अपनी वेबसाइट पर एक बयान में कहा कि संवैधानिक अदालत ने फैसला सुनाया है कि इस मामले में उनकी ‘निजी स्वतंत्रता एवं सुरक्षा के अधिकारों का उल्लंघन किया गया’.

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