अमेरिका के केंद्रीय बैंक यानी फेडरल रिजर्व (US Fed) ने लगातार छठी बैठक में ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया है. फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (FOMC) की दो दिवसीय बैठक के बाद इस फैसले की घोषणा की गई. वॉल स्ट्रीट के अनुमानों के मुताबिक ही बेंचमार्क ब्याज दरों को 5.25 प्रतिशत-5.50 प्रतिशत पर रखा गया है.
यह फैसला बेहद अहम हो सकता है क्योंकि इस साल की शुरुआत में ज्यादातर विश्लेषकों ने अपनी 1 मई की बैठक में फेड दर में कटौती और 2024 में कुल तीन बार दरों में कटौती की भविष्यवाणी की थी.
ब्याज दर-निर्धारण पैनल ने 1 मई को साल की अपनी तीसरी नीति-निर्धारण बैठक में सर्वसम्मति से नीतिगत दर को 23 साल के उच्च स्तर पर रखते हुए वोटिंग किया है.
अमेरिकी श्रम विभाग के श्रम सांख्यिकी ब्यूरो द्वारा 10 अप्रैल को जारी आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में माह-दर-माह 0.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई और साल-दर-साल 3.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो वॉल स्ट्रीट की उम्मीदों से अधिक थी.
लेकिन अमेरिकी फेडरल बैंक के फैसले की आंच भारत या बाकी के दूसरे देशों की केंद्रीय बैंकों तक आ सकती है?
भारत पर क्या प्रभाव?
अमेरिका में दरों में कटौती का तीन-आयामी प्रभाव हो सकता है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जब भी फेडरल रिजर्व अपनी नीतिगत दरों में कटौती करता है, तब दो देशों की ब्याज दरों के बीच का अंतर बढ़ सकता है. ऐसे में भारत जैसे देशों के लिए मुद्रा के जरिए व्यापार करना आसान हो जाता है.
इस तरह भारत जैसे देशों को मुद्रा व्यापार के लिए अधिक आकर्षक बना सकता है. अमेरिका में दर जितनी कम होगी, जब तक कि बाकी देशों की दरों में कटौती का चक्र शुरू नहीं हो जाता है.
बता दें, 5 अप्रैल को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति ने रेपो दर को लगातार सातवीं बार 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा था जबकि वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में खुदरा मुद्रास्फीति के चार प्रतिशत के अहम स्तर से नीचे आने की संभावना का संकेत दिया गया था. इससे इस साल के अंत में दर में कटौती की उम्मीद बढ़ गई है लेकिन सभी संभावनाओं में यह तभी हो सकता है जब यूएस फेडरल रिजर्व अपनी बेंचमार्क दरों में कटौती करे.
आरबीआई जैसे अन्य केंद्रीय बैंकों की तरह ही यूएस फेडरल रिजर्व मौद्रिक नीति का संचालन करता है, यह अर्थव्यवस्था में ऋण की उपलब्धता और लागत को नियंत्रित करने के लिए मुख्य रूप से नीतिगत तरीकों के इस्तेमाल से रोजगार और मुद्रास्फीति को प्रभावित करता है.
फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति का प्राथमिक उपकरण संघीय निधि दर है, जिसमें परिवर्तन अन्य ब्याज दरों को प्रभावित करते हैं - जो बदले में घरों और व्यवसायों के लिए उधार लेने की लागत के साथ-साथ व्यापक वित्तीय स्थितियों को प्रभावित करते हैं.
जब किसी अर्थव्यवस्था में ब्याज दरें कम हो जाती हैं तो उधार लेना सस्ता हो जाता है; इसलिए परिवारों को अधिक सामान और सेवाएं खरीदने के लिए अधिक इच्छुक और व्यवसायों को अपने विस्तार के लिए, उपकरण खरीदने या नई परियोजनाओं में निवेश करने के लिए उधार लेने में मदद मिलती है.
वस्तुओं और सेवाओं की अगर मांग बढ़ती है तो इससे वेतन बढ़ता है. भले ही मुद्रास्फीति और रोजगार के साथ मौद्रिक नीति का संबंध प्रत्यक्ष या तत्काल नहीं है, मौद्रिक नीति बेलगाम कीमतों को रोकने या विकास गति को रोकने में एक अहम भूमिका निभाती है.
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