अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (US President Joe Biden) ने मंगलवार, 9 अगस्त को अमेरिका के सेमीकंडक्टर निर्माताओं और उससे जुड़े रिसर्च के लिए 52.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर के सब्सिडी देने वाले बिल- CHIPS and Science Act- पर हस्ताक्षर कर दिया. इसको चीन का मुकाबला करने के लिए अमेरिका का ऐतिहासिक प्रयास बताया जा रहा है. जो बाइडेन ने व्हाइट हाउस में इस कानून पर हस्ताक्षर करते हुए इसे "पीढ़ियों में होने वाला निवेश बताया" है. उन्होंने दावा किया कि "माइक्रोचिप इंडस्ट्री का भविष्य अमेरिका में बनने जा रहा है"
आइये इस आर्टिकल में हम आपको बताते हैं कि इस नए कानून से जो बाइडेन सेमीकंडक्टर टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अमेरिका को कहां ले जाने का सपना देख रहे हैं और अभी भी किस तरह चीन-ताइवान अमेरिका से इस मामले भी कहीं आगे है?
CHIPS and Science Act से अमेरिका क्या हासिल करना चाहता है? इसमें क्या-क्या है?
अमेरिकी सेमीकंडक्टर कंपनियों ने अरबों डॉलर के निवेश की घोषणा शुरू कर दी है. Qualcomm ने 2028 तक सेमीकंडक्टर की खरीदारी पर कुल 7.4 बिलियन डॉलर खर्च करने के लिए प्रतिबद्धता जाहिर की है. Qualcomm ने सोमवार को GlobalFoundries से अतिरिक्त 4.2 बिलियन डॉलर मूल्य के सेमीकंडक्टर चिप्स खरीदने पर सहमत व्यक्त की है.
चीन से बढ़ते तनाव के बीच और पहले भी अमेरिका सेमीकंडक्टर चिप्स की निरंतर कमी ने जूझता रहा है. इसने वाहनों, बंदूकों, वाशिंग मशीन और वीडियो गेम के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर्स को प्रभावित किया है. चूंकि चिप्स की कमी कार निर्माताओं को प्रभावित कर रही है, चिप्स के ही इंतजार में हजारों कारें और ट्रक अमेरिका के दक्षिण-पूर्व मिशिगन में ठप पड़ी हैं.
यह नया कानून चिप बनाने में निवेश करने वाली कंपनियों के लिए 25 प्रतिशत इन्वेस्टमेंट टैक्स क्रेडिट (टैक्स में छूट) भी प्रदान करता है, जिसकी सरकार पर अनुमानित कीमत 24 अरब डॉलर की होगी.
साथ ही रिपब्लिकन और कट्टर चीन विरोधी सांसदों द्वारा मांगे गए महत्वपूर्ण प्रतिबंध को भी कानून में शामिल किया गया है- जिन कंपनियों को इस कानून द्वारा सहायता प्राप्त होगी वे चीन में सेमीकंडक्टर के अपने निर्माण को नहीं बढ़ाएंगे.
दूसरी तरफ चीन ने लॉबिंग के जरिए अमेरिका के इस सेमीकंडक्टर कानून का विरोध किया है. वाशिंगटन में मौजूद चीनी दूतावास ने कहा कि चीन इसका कड़ा विरोध करता है और यह कदम "शीत युद्ध की मानसिकता" की याद दिलाता है.
कई अमेरिकी सांसदों ने कहा है कि वे आमतौर पर प्राइवेट कंपनियों के लिए भारी सब्सिडी का समर्थन नहीं करते हैं, लेकिन उनका मानना है कि चीन और यूरोपीय यूनियन अपनी चिप कंपनियों को अरबों डॉलर का प्रोत्साहन दे रहे हैं.
चीन-ताइवान अमेरिका से कितना आगे?
सवाल है कि चीन ने सेमीकंडक्टर चिप्स बनाने के अपने प्रयास में इतनी लंबी छलांग कैसे लगाई है कि अमेरिका तक सहम गया है? चीन में बने चिप्स सर्किट मानव बाल की तुलना में लगभग 10,000 गुना पतले तक भी हैं और चीन ताइवान में बनने वाले चिप्स को चुनौती पेश कर रहा है.
चीन में सबसे उन्नत सेमीकंडक्टर चिप्स बनाने का अभियान "मेड इन चाइना 2025" कार्यक्रम का हिस्सा है. चीन का यह प्रयास 2015 में शुरू हुआ था.
बता दें कि ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी सबसे उन्नत सेमीकंडक्टर चिप्स का लगभग 90 प्रतिशत उत्पादन करती है. ताइवान यह चिप्स चीन और अमेरिका दोनों को बेचता है. लेकिन अब अमेरिका भी जानता है कि इन चिप्स के लिए ताइवान पर निर्भरता अस्थिर और असुरक्षित है.
इसका कारण है कि अमेरिका के रक्षा विभाग को भी सबसे उन्नत सेमीकंडक्टर चिप्स की आवश्यकता है - न केवल F-35 जैसे फाइटर जेट्स के लिए, बल्कि आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस जैसी टेक्नोलॉजी के लिए भी जो एक दिन युद्ध के मैदान की प्रकृति को बदल सकते हैं. सेमीकंडक्टर जैसी टेक्नोलॉजी ने आज के समय में सैन्य और कमर्शियल टेक्नोलॉजी के बीच के पुराने भेद को काफी हद तक मिटा दिया है.
क्या ताइवान से सेमीकंडक्टर टेक्नोलॉजी चुरा रहा चीन?
न्यूयोर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग इंटरनेशनल कॉरपोरेशन द्वारा बनाई गई नई चीनी चिप का पहला असेसमेंट, TechInsights नामक एक फर्म के शोधकर्ताओं ने किया था. चीन में निर्मित इस चिप को रिवर्स-इंजीनियरिंग करने के बाद, उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि इसमें सर्किटरी का उपयोग किया गया था जो केवल सात नैनोमीटर चौड़ा था जबकि हाल ही में 2020 तक, चीनी निर्माता 40 नैनोमीटर से नीचे आने के लिए संघर्ष कर रहे थे.
विशेषज्ञों का कहना है कि क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग के लिए बनाई गई यह चिप, ताइवान सेमीकंडक्टर पर आधारित हो सकती है या उसी से चोरी की हुई हो सकती है. अभी के लिए, ताइवान सेमीकंडक्टर बनाने की दुनिया में सबसे बड़ा निर्माता बना हुआ है.
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