G7 सात देशों का एक अनौपचारिक समूह है. अनौपचारिक कहने का मतलब है कि NATO की तरह इसका कोई कानूनी या वैधानिक आधार नहीं है. इस समूह के सातों देश मिल कर दुनिया की लगभग 40 फीसदी जीडीपी और 10 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं. ये सात देश हैं- ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, कनाडा और यूएस.
1998 में रूस भी जुड़ा था और G8 बन गया था. लेकिन 2014 में क्रीमिया पर कब्जा करने के बाद रूस को बाहर कर दिया गया.
चीन की इकनॉमी अमेरिका के बाद सबसे बड़ी है और आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा, लेकिन फिर भी वो इस समूह का हिस्सा नहीं है. इसकी वजह प्रति व्यक्ति कम संपत्ति का होना है. चीन को उन मायनों में आधुनिक अर्थव्यवस्था नहीं माना जाता, जैसे बाकी G7 देश हैं.
G7 करते क्या हैं?
G7 देश हर साल एक समिट करते हैं. इसमें इंटरनेशनल सिक्योरिटी से लेकर वैश्विक इकनॉमी सरीखे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की जाती है. इस साल के समिट में कोरोनावायरस महामारी और वैक्सीन का मुद्दा प्रमुख रहा.
पूरे साल G7 देशों के मंत्री और अधिकारी आपस में मिलते हैं, बैठकें करते हैं, समझौतों पर साइन करते हैं और साझा बयान भी देते हैं.
G7 बैठकों की अध्यक्षता सातों देशों को हर साल बारी-बारी से मिलती है. जिस देश को अध्यक्षता मिलती है, उस साल का समिट वहीं होता है. इस साल यूके को अध्यक्षता मिली थी और समिट इंग्लैंड के कॉर्नवेल में हो रहा है.
क्या G7 के पास कोई ताकत है?
इस समूह का कोई कानूनी आधार नहीं है. G7 समिट में होने वाले वादों और समझौतों को उसके सदस्य देशों की सांसदों को पास करना होता है.
G7 कोई कानून नहीं बना सकते क्योंकि इसके सभी देशों की लोकतांत्रिक प्रक्रिया अलग-अलग है और एक साझा कानून सब पर लागू नहीं हो सकता है.
G7 असल में कोऑर्डिनेशन के लिए एक स्टेज की तरह काम करता है. यहां जरूरी और महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा कर रोडमैप तैयार किया जा सकता है.
G7 का इतिहास क्या है?
इसकी शुरुआत 1975 में हुई थी, जब कनाडा के अलावा समूह के बाकी देशों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में आई मंदी के दौरान बैठक की थी. मंदी की स्थिति OPEC के तेल उत्पादन में कमी लाने की वजह से हुई थी.
ऊर्जा संकट बढ़ता देखकर अमेरिकी ट्रेजरी सेक्रेटरी जॉर्ज शुल्ट्ज ने दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को एक स्टेज पर बुलाकर वैश्विक स्थिति पर चर्चा करना मुनासिब समझा. इस समिट के बाद देशों ने हर साल मिलने का फैसला किया और एक साल बाद कनाडा को भी शामिल कर लिया गया.
G7 की बैठकों में यूरोपियन यूनियन को भी आमंत्रित किया जाता है. हर साल कई देशों को भी हिस्सा लेने के लिए निमंत्रण भेजा जाता है. हालांकि, इस समूह को अप्रासंगिक कहा जाने लगा है क्योंकि इसमें चीन और भारत जैसे बड़े देश शामिल नहीं हैं.
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