अब से हजारों साल पहले हड़प्पा सभ्यता (Harappan Civilization) के पतन का एक कारण मलेरिया (Malaria) को भी माना जाता है. इसका जिक्र 2700 ईसा पूर्व में चीन के इतिहास में किया गया है, उस वक्त चीन में इस बीमारी को दलदली बुखार कहा जाता था. बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक 323 ईसा पूर्व में मेसिडोनिया (Macedonia) लौटते वक्त हुई सिकंदर (Alexander) की मौत का कारण भी मलेरिया था.
मतलब दुनिया जीतने वाले सिकंदर को मलेरिया ने मारा. इसी तरह अलग-अलग वक्त में अलग-अलग सभ्यताओं के लिए मलेरिया खतरा बनता रहा. सदियों तक मलेरिया से हारने के बाद लगता है इंसानों ने उसपर मुकम्मल जीत की तरफ एक बड़ा कदम बढ़ा दिया है, और मलेरिया की वैक्सीन (malaria vaccine) का ट्रायल हो रहा है.
नया क्या हुआ है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने दुनिया की पहली मलेरिया वैक्सीन के बच्चों पर व्यापक इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है. WHO ने इसे विज्ञान, बच्चों के स्वास्थ्य और मलेरिया नियंत्रण के लिए बड़ी उपलब्धि करार दिया है. घाना, केन्या और मालावी में 2019 में शुरू हुए पायलट प्रॉजेक्ट के नतीजों के बाद RTS, S/AS01 मलेरिया वैक्सीन अब अफ्रीका के बच्चों को भी बड़े पैमाने पर लगाई जाएगी.
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, ये टीका 6 साल पहले प्रभावी साबित हुआ था और घाना, केन्या जैसी जगहों पर इसका परीक्षण किया गया. जिसके बाद अब मलेरिया के इस टीके को अफ्रीका के बच्चों को लगाया जाएगा, जहां इस बीमारी का सबसे ज्यादा प्रकोप है.
करीब 130 साल की मेहनत के बाद वैज्ञानिकों ने मलेरिया की वैक्सीन बनाई है, जिसकी सफलता से फायदे को ऐसे समझिए कि साल 2019 में मलेरिया से अफ्रीका में 1 लाख 60 हजार बच्चों की मौत हुई थी. अफ्रीका के बच्चों को अब ये वैक्सीन लगाई जाएगी, जिसके लिए WHO ने मंजूरी दे दी है.
समाचार एजेंसी एएफपी ने बताया कि मलेरिया एक वर्ष में 4,00,000 से अधिक लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार है, जिसमें ज्यादातर अफ्रीकी बच्चे शामिल हैं.
कितनी प्रभावी होगी वैक्सीन?
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक WHO ने कहा कि ये टीका 40 प्रतिशत प्रभावी है, लेकिन ये भी एक बड़ी सफलता है. क्योंकि ये टीका भविष्य में ज्यादा प्रभावी टीकों के लिए रास्ता बनाएगा.
मलेरिया की बेसिक जानकारी
मलेरिया मादा मच्छर एनाफिलीज के काटने से फैलता है. इस मच्छर में प्लास्मोडियम नाम का परजीवी (प्रोटोजोआ) पाया जाता है जिसके कारण मच्छर के काटने से ये रक्त में कई गुणा बढ़ता है और फिर इंसान के शरीर को बीमार कर देता है.
मलेरिया के लक्षण
मलेरिया से ग्रसित व्यक्ति को बुखार, कंपकंपी लगना, पसीना आना, तेज सिरदर्द, शरीर में टूटन के साथ जी मिचलाने और उल्टी होने तक के लक्षण आते हैं. इसमें रोगी को बार-बार बुखार आता है. लेकिन ये लक्षण आने के बावजूद इसमें मरीज को प्रोटोजोआ का पता लगाना बहुत जरूरी होता है. मादा एनाफिलीज में सिर्फ एक नहीं बल्कि करीब आठ तरह के प्रोटोजोआ होते हैं.
मलेरिया की वैक्सीन इतनी बड़ी कामयाबी क्यों?
साल 1880 में मलेरिया का सबसे पहला अध्ययन चार्ल्स लुई अल्फोंस लैवेरिन (Charles Louis Alphonse Laverin) नामक वैज्ञानिक ने किया, लेकिन यहां तक भी इस बीमारी का नाम मलेरिया नहीं था. अलग-अलग जगहों पर इस बीमारी को अलग-अलग नाम से पुकारा जाता था. और ये क्यों होती है इसका पता भी किसी को नहीं था.
इसके बाद ब्रिटिश सेना (British Army) के एक डॉक्टर रोनाल्ड रॉस (जिनका काम था सेना में बीमार होने वाले सैनिकों की देखभाल) ने पाया कि सैनिक बाकी बीमारियों से तो ठीक हो जाते हैं लेकिन एक बीमारी है जो काफी सैनिकों को मार देती है.
इस पर उन्होंने 1881 से 1888 तक सेना के बीच रहकर रिसर्च की. और 1889 में उन्होंने थ्योरी बनाई कि ये बीमारी मच्छर के द्वारा फैलती है, बाद में उन्होंने अपनी इस थ्योरी को सिद्ध भी किया, लेकिन इसका इलाज नहीं ढूंढ पाये. अब मानव जाति ने उस मलेरिया का टीका बना लिया है, जो सदियों से काल मनुष्य के लिए काल बना हुआ था.
मलेरिया शब्द कहां से आया?
मलेरिया सदियों से इंसानी सभ्यता को परेशान कर रहा है, ये शब्द इटेलियन भाषा के माला एरिया से निकला है. जिसका हिंदी में अर्थ होता है ‘बुरी हवा’.
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