कोई इलाका प्रदूषित है या नहीं? WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) ने इसकी परिभाषा बदल दी है. 2005 के बाद पहली बार WHO एयर क्वॉलिटी गाइडलाइन को संशोधित किया है. नई परिभाषा को मानें तो साल के ज्यादातर समय पूरा भारत ही प्रदूषण में जी रहा है. दुनिया का आलम ये है कि हर साल 70 लाख लोग प्रदूषण के कारण मर रहे हैं. तय मानकों के से 17 गुना ज्यादा प्रदूषण के साथ दिल्ली देश और एशिया में सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर है.
नई गाइडलाइंस में क्या है?
पहले 24 घंटे की अवधि में 25 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर PM 2.5 को सुरक्षित माना जाता था, WHO ने अब कहा है कि 15 माइक्रोग्राम से अधिक की एकाग्रता यानि कंसंट्रेशन सुरक्षित नहीं है.
इसी तरह PM10 के मानक को 50 माइक्रोग्राम से घटाकर 45 किया गया है.
क्या है WHO की चेतावनी?
WHO ने इसे लेकर चेतावनी जारी की है कि वायु प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है. खासकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में. इसलिए जरूरत है कि जल्द से जल्द प्रदूषण को कम करने के लिए कार्रवाई की जाए. नई गाइडलाइन का पालन कर लोग खुद को वायु प्रदूषण से होने वाले गंभीर परिणामों से बचा सकते हैं और सरकारें भी इन गाइडलाइंस का इस्तेमाल कर सकती हैं.
कितने देशों ने WHO की 2005 वाली गाइडलाइंस का पालन किया?
गैर सरकारी संस्थान ग्रीनपीस ने बताया कि दुनियाभर के अधिकतम शहरों ने WHO की 2005 में जारी की गई गाइडलाइंस का उल्लंघन किया था. ग्रीनपीस ने कहा कि आईक्यूएयर (IQair) के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल दुनिया के 100 सबसे अधिक आबादी वाले शहरों में से 79 में जहां सालाना औसत पीएम 2.5 वायु प्रदूषण स्तर था, उन देशों ने 2005 की गाइडलाइंस का उल्लंघन किया था. अगर इन गाइडलाइंस को और सख्त कर दें, तो ऐसे 92 देश हो जाएंगे जो गाइडलाइन का उल्लंघन करते हैं.
कहां कितना प्रदूषण बढ़ा?
WHO के मुताबिक एशिया के देश सबसे ज्यादा खतरे में हैं. इनमें भी दिल्ली में 17 गुना प्रदूषण और बढ़ गया है. वहीं पाकिस्तान के लाहौर में 16 गुना, ढाका में 15 गुना और चीन के शहर झेंगझाउ में 10 गुना प्रदूषण बढ़ा है. यह नोट किया गया कि दुनिया के 10 सबसे बड़े शहरों में से आठ में PM 2.5 का डेटा उपलब्ध ही नहीं था.
बढ़ता प्रदूषण आपको किस तरह से प्रभावित कर सकता है?
WHO के साइंटिस्ट बताते हैं कि PM 2.5 स्तर का कण अगर आपके फेफड़ों में जाता है तो वह आपको बुरी तरह प्रभावित कर सकता ह. यही नहीं वह आपके खून में उतरकर कई तरह की रेसपिरेटरी समस्याओं को खड़ा कर सकता है.
बच्चों में यह फेफड़ों की वृद्धि और उसके काम में कमी ला सकता है. रेसपिरेटरी और गंभीर अस्थमा की समस्याओं को भी पैदा कर सकता है. वयस्कों में हृदय रोग और स्ट्रोक. वहीं वायु प्रदूषण के कारण समय से पहले मौत के सबसे आम कारण देखे जाते हैं.
WHO तो यहां तक बताता है कि डाइबिटिज और न्यूरोडीजेनेरेटिव स्थितियों जैसे अन्य प्रभावों के भी साक्ष्य सामने आ रहे हैं.
एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं?
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए पुणे स्थित रेसपिरेटरी डिसीज एक्सपर्ट, डॉ संदीप साल्वी, जो ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी का हिस्सा हैं, वो कहते हैं कि भारत की 95 प्रतिशत से अधिक आबादी पहले से ही उन क्षेत्रों में रहती है, जहां प्रदूषण का स्तर WHO के 2005 के मानदंडों से अधिक था.
WHO के 2005 के मानदंडों की तुलना में भारत के अपने राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक ठीक नहीं हैं. पिछले कुछ सालों में, सरकार 2017 के आधार पर कुछ शहरों में 2024 तक वायु प्रदूषण को 20-30 प्रतिशत तक कम करने की योजना पर काम कर रही है.
WHO ने बताया कि अगर देश अपने नए वायु गुणवत्ता मानकों का पालन करते हैं तो 80 प्रतिशत मौतों को रोका जा सकता है. यहां तक कि 2005 के मानकों को हासिल करने से भी 48 प्रतिशत मौतें रोकी जा सकेंगी.
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