यूपी में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) को टारगेट कर ट्वीट किया है. सीएम ने ट्वीट में समाजवादी पार्टी को हिंदू विरोधी साबित करते हुए लिखा है कि मुजफ्फरनगर दंगों (Muzaffarnagar Riots) में हिंदुओं को बंदूकों से भूना गया था, जिसमें 60 से ज्यादा हिंदू मारे गए और 1,500 से ज्यादा को जेल में बंद कर दिया गया था.
बता दें कि 2013 के अगस्त सितंबर महीने में यूपी के मुजफ्फरनगर में दंगा हुआ था जिसमें कई जानें गई थीं. इस दौरान यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और अखिलेश यादव प्रदेश के सीएम थे.
हालांकि, जब हमने इस दावे की जांच करने के लिए इतिहास को खंगाला तो सच कुछ और ही निकला. ऐसी कोई रिपोर्ट गृह मंत्रालय की ओर से पेश ही नहीं की गई थी, जिसके आधार पर धर्म के आधार पर ये बताया जा सके कि कितने हिंदू और मुस्लिमों की मौत हुई थी. हालांकि कुछ अलग-अलग न्यूज रिपोर्ट्स में इस बारे में बताया गया है कि इस दंगे में करीब 42 मुस्लिमों और 20 हिंदुओं की जान गई थी.
सीएम योगी ने ट्वीट कर लिखा, ''मुजफ्फरनगर दंगे में हिंदुओं को बंदूकों से भूना गया था। 60 से अधिक हिंदू मारे गए थे और 1,500 से अधिक जेल में बंद किए गए थे। गांव के गांव खाली हो गए थे। सपा की यही 'पहचान' है।''
कब शुरू हुआ था दंगा?
मुजफ्फरनगर दंगे की शुरुआत 27 अगस्त 2013 को जानसठ कोतवाली क्षेत्र के गांव कवाल से हुई. गांव में कथित तौर पर जाट समुदाय की एक लड़की से छेड़छाड़ करने वाले मुस्लिम युवक को लड़की के ममेरे भाइयों गौरव और सचिन ने मुस्लिम युवक को पीट-पीटकर मार डाला. जवाबी हिंसा में मुस्लिमों ने दोनों युवकों की जान ले ली. इसके बाद, दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी महापंचायत बुलाई और इसके बाद हिंसा शुरू हो गई जिसने बड़ा रूप ले लिया.
इस दौरान राज्य के सीएम अखिलेश यादव थे. हमें कई ऐसी रिपोर्ट्स मिलीं, जिनमें मरने वालों की संख्या 62 बताई गई है. हालांकि, हमें ऐसा कोई भी सरकारी आंकड़ा नहीं मिला जिसमें मरने वाले हिंदुओं और मुस्लिमों की संख्या अलग-अलग बताई गई हो.
क्या कहना है न्यूज रिपोर्ट्स का?
हमने दंगे से संबंधित गृह मंत्रालय की रिपोर्ट सर्च करने की कोशिश की. कीवर्ड सर्च करने पर हमें 9 जनवरी 2014 की Indian Express की एक रिपोर्ट मिली. जिसकी हेडलाइन थी, ''मुजफ्फरनगर हिंसा पर उत्तर प्रदेश सरकार की रिपोर्ट साझा करने से गृह मंत्रालय का इनकार''
रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र सरकार ने यूपी के राज्यपाल और राज्य सरकार द्वारा भेजी गई रिपोर्ट को साझा करने से इसलिए इनकार कर दिया, क्योंकि इससे जांच में बाधा पहुंच सकती है. आरटीआई के तहत पूछे गए सवाल के जवाब में गृह मंत्रालय ने कहा-
‘एक लड़की से छेड़छाड़ के बाद 27 अगस्त, 2013 को कवाल में हुई घटना में तीन लोग मारे गए थे. इसके बाद, मुजफ्फरनगर और उससे सटे जिलों में सांप्रदायिक दंगे फैले। राज्य सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक 62 लोग इस हिंसा में मारे गए, जबकि 98 लोग घायल हो गए थे। आरटीआई अधिनियम, 2005 के तहत रिपोर्ट की प्रतियां दी नहीं जा सकती हैं.’
हमें गृह मंत्रालय की ऑफिशियल वेबसाइट पर भी मारे गए लोगों की संख्या के बारे में कोई जानकारी धर्म के आधार पर नहीं मिली.
2 अक्टूबर 2021 को क्विंट पर पब्लिश एक रिपोर्ट में भी इस दंगे में मारे गए कुल लोगों की संख्या 62 बताई गई है. रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि 60,000 से ज्यादा लोग बेघर हुए थे और 500 से ज्यादा FIR, रेप, हत्या और दंगे से जुड़े मामलों को लेकर दर्ज की गई थीं.
हालांकि, इस रिपोर्ट में भी ये संख्या धर्म के आधार पर नहीं बताई गई. पूरी बात का निष्कर्ष ये है कि इस दंगे में मारे गए लोग सिर्फ हिंदू समुदाय से नहीं, बल्कि दोनों समुदायों से थे.
कितने लोगों को हुई थी जेल?
8 फरवरी 2019 की FirstPost की रिपोर्ट के मुताबिक,रिपोर्ट में अभियोजन पक्ष के वकील की ओर से दिए गए ऑफिशियल आंकड़ों के हवाले से लिखा गया था कि 2013 के दंगों के बाद 6,000 से ज्यादा मामले दर्ज हुए थे. दंगों में कथित भूमिका के लिए 1480 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था.
सचिन और गौरव की हत्या के मामले में मुजम्मिल मुज्जसिम, फुरकान, नदीम, जांगीर, अफजल और इकबाल को दोषी करार दिया. जिनमें से 5 पहले से ही जेल में थे और बाकी की जमानत रद्द कर दी गई है.
7 सितंबर 2021 को The Hindu पर भी पब्लिश एक आर्टिकल के मुताबिक 1480 लोगों को जेल भेजा गया था. रिपोर्ट में आगे ये भी बताया गया है कि:
2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद, हिंसा से जुड़े हत्या, बलात्कार, डकैती और आगजनी से जुड़े 97 मामलों में आरोपी 1,117 लोगों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया है
रिपोर्ट के मुताबिक, यूपी सरकार ने दंगों से संबंधित 77 मामलों को वापस लेने का फैसला किया है. लेकिन, कोर्ट ने सिर्फ एक मामले को वापस लेने की अनुमति दी जो 12 बीजेपी नेताओं के खिलाफ था. इन नेताओं में सुरेश राणा, संगीत सोम, भारतेंदु सिंह और साध्वी प्राची शामिल हैं.
क्या कहता है उस साल जारी हुआ केंद्र सरकार का डेटा
हालांकि, सरकार ने मुजफ्फरनगर में हुई हिंसा में धर्म के आधार पर मरने वालों की संख्या नहीं जारी की थी, लेकिन 2013 में ही पहली बार केंद्र सरकार ने दंगों में मारे गए लोगों की संख्या धर्म के आधार पर बताई थी. इस डेटा के मुताबिक साल 2013 में देश भर में हुए सांप्रदायिक हिंसा के मामलों में 107 लोग मारे गए थे. इनमें से 66 मुस्लिम थे और 41 हिंदू.
इस डेटा में ये भी बताया गया था कि उस साल सांप्रदायिक हिंसा की वजह से सबसे ज्यादा लोग यूपी में मारे गए थे. इनमें से 42 मुस्लिम और 20 हिंदू थे.
इस डेटा के मुताबिक, जिस साल मुजफ्फरनगर दंगे हुए उसी साल पूरे यूपी में मरने वाले मुस्लिमों की संख्या, हिंदुओं की संख्या से दोगुनी थी.
इसलिए, आंकड़े सीएम योगी के इस दावे को सपोर्ट नहीं करते कि मुजफ्फरनर दंगों में 60 से ज्यादा हिंदू मारे गए थे.
इसके अलावा, स्टोरी में ऊपर जेल में बंद किए गए लोगों की संख्या के जो आंकड़े हैं, वो भी सीएम योगी के उस दावे को सपोर्ट नहीं करते कि मुजफ्फरनगर दंगों में 1500 हिंदुओं को जेल में डाला गया था. क्योंकि, आंकड़ों के मुताबिक 1480 कुल लोगों को जेल में डाला गया था, जिनमें से वो 7 मुस्लिम भी थे जिन्हें सजा सुनाई गई है.
क्या कहना है मुजफ्फरनगर दंगों पर डॉक्युमेंट्री बनाने वाले फिल्म मेकर नकुल सिंह साहनी का?
क्विंट ने मुजफ्फरनगर दंगों पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘मुजफ्फरनगर बाकी है’ बनाने वाले फिल्ममेकर नकुल सिंह साहनी से बात की. उन्होंने कहा कि दंगे के घावों को भरने के लिए, दोनों समुदायों के लोग साथ में आ रहे हैं. और एक-दूसरे से माफी मांग रहे हैं. वो उसे भूलना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि
सरकार का काम है समाज में दूरियां कम करने का. उन्हें साथ में लाने का. लेकिन यहां उल्टा हो रहा है. समाज खुद से साथ आ रहा है, लेकिन राज्य सरकार ऐसे दावों से उन घावों को कुरेद कर दूरियां बढ़ा रही है. और अगर सीएम कह रहे हैं कि 60 हिंदू मारे गए हैं, तो आप सरकार में हैं आप डेटा दीजिए कि किस आधार पर आप ये कह रहे हैं. सबको पता है कि ये फैक्ट नहीं है.फिल्ममेकर, नकुल सिंह साहनी
साहनी ने आगे कहा कि ऑफिशियल आंंकड़ों के हिसाब से 62 लोग मरे थे, जिनमें से हिंदू कम और मुस्लिम ज्यादा थे. लेकिन सबसे ज्यादा जरूरी ये है कि इस समाज के लोग साथ आ रहे हैं, तो सरकार को इनकी दूरियां नहीं बढ़ानी चाहिए, बल्कि उन्हें तो इस कदम की सराहना करनी चाहिए.
हिंसा हमेशा विध्वंस लाती है. ये स्टोरी करने का हमारा मकसद ये दिखाना कतई नहीं है कि हिंदू कम और मुस्लिम ज्यादा मारे गए थे. बल्कि, इसलिए हमने इस दावे की जांच करने की कोशिश की, ताकि ये बताया जा सके कि जिस बारे में कोई ऑफिशियल आंकड़ा ही नहीं है वो दावा कैसे किया जा सकता है और इस तरह के बयान और दावेसमाज के लिए खतरनाक हो सकते हैं.
(नोट: हमने सीएम योगी के दावे से जुड़ी जानकारी के लिए मुजफ्फरनगर डीएम से भी संपर्क किया है. जवाब आने पर स्टोरी को अपडेट किया जाएगा.)
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