लोकसभा चुनावों के पहले दिल्ली में यूपी भवन में तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने एक कार्यकर्ता को पैर छूने से रोका, तो उस कार्यकर्ता ने कहा- आप ब्राह्मण हैं और हमारे अध्यक्ष भी. लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने जवाब दिया- मैं हिंदू हूं, बस.
उस समय लोकसभा का चुनाव चढ़ाव पर था और किसी को ये कल्पना भी नहीं थी कि भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में इस तरह का चमत्कार करने जा रही है.
दरअसल, भारतीय जनता पार्टी ने गैर जाटव छोड़ सभी दलित जातियों और गैर यादव छोड़ सभी पिछड़ी जातियों को अपने पाले में लाने की मुहिम चुपचाप चला रखी थी. यही वजह रही कि जब उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को अप्रत्याशित तौर पर 42 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले. अब ये कोई रहस्य नहीं है कि मायावती की अपनी जाति के लोगों को छोड़कर काफी दलितों और मुलायम सिंह यादव की जाति के लोगों को छोड़कर काफी पिछड़ों ने भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में लोकसभा में मतदान किया.
यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी किसी भी हाल में लोकसभा 2014 में साथ आई दूसरी दलित और पिछड़ी जातियों को किसी भी हाल में छूटने नहीं देना चाहती.
गैर जाटव दलितों का भी भारतीय जनता पार्टी पर भरोसा बेहतर है. इसका उदाहरण देखने को तब मिला, जब पूरे प्रदेश में चालीस हजार सफाईकर्मियों की नौकरी निकली. आरक्षण व्यवस्था के आधार पर निकली सफाईकर्मियों की नौकरी में सबसे ज्यादा किसी का हक मारा जा रहा है, तो वो दलितों में खासकर वाल्मीकि समाज के लोगों का. और इनकी लड़ाई लड़ने के लिए आगे आए हैं यूपी बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और मेरठ से विधायक लक्ष्मीकांत बाजपेयी.
बाजपेयी ने नगर विकास मंत्री आजम खान को चिट्ठी लिखकर सफाई कर्मचारियों की भर्ती में ढेर सारी विसंगतियां गिनाई हैं और इसे दूर करने को कहा है. बाजपेयी का कहना है कि सबसे पहले तो जो लोग पहले से लंबे समय से संविदा पर काम कर रहे हैं. उनका हक मारा जा रहा है. शासनादेश के मुताबिक, 18-40 साल के लोग ही इसमें आवेदन कर पाए हैं. आखिर जो लोग बरसों से ये काम कर रहे हैं और उनकी उम्र 40 साल से ज्यादा हो गई है, अब वो कहां जाएंगे.
चुनाव देखकर वाल्मीकि समाज को लुभाने में जुटी बीजेपी
अब विधानसभा चुनाव नजदीक देखकर वाल्मीकि समाज को अपने पाले में बनाए रखने के लिए बीजेपी के लिए ये राजनीति का अच्छा मौका दिखता है. लेकिन, बाजपेयी जिस गंभीर समस्या की तरफ इशारा करते हैं, वो अनायास नहीं है. मेरठ नगर निगम में सफाईकर्मी के लिए 80000 लोगों ने आवेदन किया है और इसमें से करीब 55000 सामान्य जातियों के लोग हैं. वजह ये कि सफाईकर्मी को महीने के 15,000 रुपये से ज्यादा मिलेंगे. पहले से संविदा पर काम कर रहे सफाईकर्मियों से बात करने पर आसानी से पता चल जाता है कि आरक्षण कैसे वाल्मीकि समाज के अच्छे दिन की राह में रोड़ा बना हुआ है.
2006 में विनेश विद्यार्थी को मेरठ नगर निगम में संविदा पर सफाईकर्मी का काम मिला, तो उम्मीद यही थी कि एक दिन वो नियमित कर्मचारी के तौर पर अच्छी तनख्वाह और सरकारी नौकरी में मिलने वाली हर सुविधा का लाभ उठा पाएंगे. लेकिन, एक दशक बाद जब राज्य सरकार ने 40000 सफाईकर्मियों के लिए भर्ती निकाली, तो विनेश अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं. इसीलिए सफाईकर्मियों की भर्ती में आरक्षण का वो विरोध कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश सफाई कर्मचारी संघ के प्रदेश सचिव विनेश विद्यार्थी बताते हैं कि 2006 में जब उन्होंने काम शुरू किया था, तो सिर्फ वाल्मीकि समाज के ही लोग सफाई के काम में थे.
संविदा पर काम करने वाले सफाईकर्मियों को नियमित करने की लड़ाई वो लंबे समय से लड़ रहे हैं. लेकिन, इस लड़ाई का परिणाम ये हुआ कि सरकार ने संविदा की नौकरी ही खत्म कर दी. सितंबर 2015 के बाद विनेश मेरठ नगर निगम के संविदा सफाईकर्मी भी नहीं रह गए और अक्टूबर 2015 में जब फिर से मेरठ नगर निगम में विनेश ने काम किया, तो उनके और नगर निगम के बीच में एक कंपनी थी. दरअसल संविदा पर सफाईकर्मी रखने के बजाए प्रदेश सरकार ने हर नगर निगम को आउटसोर्सिंग करने को कह दिया.
इसका सीधा सा मतलब ये हुआ कि अब सफाईकर्मी किसी कंपनी के जरिए वही काम कर रहे थे. और इस संविदा से ठेके पर कराए जा रहे काम का कितना बड़ा नुकसान दलितों में भी वाल्मीकि समाज के लोगों को झेलना पड़ा, इसे कुछ आंकड़ों से आसानी से समझा जा सकता है.
विनेश विद्यार्थी ने 2006 में 1928 रुपये महीने पर सफाई का काम शुरू किया था. उसके बाद विनेश को 3030 रुपये महीने मिलने लगे और बाद में आउटसोर्सिंग कंपनी के जरिए अंतिम तनख्वाह महीने की 7106 रुपये रही. अब इसमें समझने वाली बात ये है कि जब विनेश को 7106 रुपये महीने मिल रहे हैं, उस समय तक शासनादेश के जरिए सफाईकर्मियों की महीने की तनख्वाह 13380 रुपये हो चुकी थी. विनेश जैसे 2215 ऐसे लोग हैं जो, संविदा पर मेरठ नगर निगम में पिछले कई बरस से काम पर लगे थे. 4 जुलाई को जब सरकार ने मेरठ में 2355 नियुक्तियां निकालीं और उसमें पहले से काम कर रहे लोगों को वरीयता देने की बात कही, तो इन लोगों को उम्मीद की किरण नजर आई. लेकिन, इन 2355 में अनुसूचित जाति के लोगों के लिए सिर्फ 495 पद देखकर इनकी सारी उम्मीद धरी की धरी रह गई.
सफाई के काम का तौर-तरीका भी बदला है
दरअसल आधुनिकीकरण से सफाई का स्वरूप बदला है, काम बेहतर हुआ तो दूसरी जातियां भी सफाई के काम में आना चाहती हैं. क्योंकि, मशीन से सफाई बढ़ रही है.
ये आरक्षण का दूसरा पहलू है. सफाईकर्मी पिछले कई दिन से मेरठ नगर निगम के दरवाजे पर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं. उनका कहना है कि आरक्षण दिया जाए. लेकिन पहले जो लोग काम करते आ रहे हैं, उनको नियमित किया जाए. उसके बाद ही दूसरे लोगों को ये मौका दिया जाए. एक और सफाई कर्मचारी नेता राजू धवन कहते हैं कि दरअसल हमारे पास तो न के बराबर मौके हैं और अब इसमें भी अच्छे दिन आने लगे, तो दूसरी जातियों के लोग आरक्षण का सहारा लेकर रोड़ा बन रहे हैं.
अलग-अलग समय पर आई ढेर सारी रिपोर्ट का हवाला देते हुए ये लोग कहते हैं कि दरअसल वाल्मीकि समाज को आरक्षण का कोई लाभ अनुसूचित जाति का होने के नाते नहीं मिला. हां, आज आरक्षण की वजह से वाल्मीकि समाज के परिवार में बेहतरी की एक गुंजाइश जरूर खत्म होती दिख रही है.
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