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यूपी में किस राह चलेंगे योगी, धीरे-धीरे हटेगा पर्दा

योगी का मुख्यमंत्री चुना जाना अप्रत्याशित है और इससे कुछ दूसरी गंभीर समस्याएं भी खड़ी हुई हैं.

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योगी आदित्यनाथ को यूपी का मुख्यमंत्री बनाने के ऐलान के बाद दो तरह के रिएक्शन दिखे. कुछ लोगों को इससे हैरानी हुई, तो कुछ इससे खुश थे. जो हैरान थे, उनका मानना है कि नए मुख्यमंत्री मुसलमानों के पीछे पड़ जाएंगे. जो खुश हैं, उन्हें लगता है कि लंबे समय के बाद यूपी में हिंदुओं की सुनी जाएगी.

बीजेपी की तरफ से इन पर दो तरह के जवाब आए हैं. पहले में कहा गया कि योगी को पार्टी ने चुना है, न कि आरएसएस ने. यह बयान इसलिए दिया गया, क्योंकि ऐसी अफवाह थी कि मुख्यमंत्री चुनने के मामले में आरएसएस ने नरेंद्र मोदी और अमित शाह की नहीं चलने दी या दोनों नए विधायकों को कंट्रोल नहीं कर पा रहे थे.

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दूसरा बयान इसलिए दिया गया, ताकि जिन लोगों को मुसलमानों के भविष्य की चिंता है, उसे दूर किया जाए. बीजेपी ने इस पर कहा कि योगी पार्टी के चुनावी घोषणापत्र के मुताबिक राजकाज चलाएंगे. मेनिफेस्टो में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के साथ विकास की बात कही गई है.

कहने का मतलब यह कि पुलिस कोई भेदभाव नहीं करेगी. घोषणापत्र में सड़कों, बिजली, रसोई गैस की उपलब्धता बढ़ाने और राज्य सरकार के स्कूलों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के सही रख-रखाव का वादा किया गया है.

पार्टी के अंदरूनी सूत्र भी एक बात कह रहे हैं. उनके मुताबिक,

राज्य में दो उपमुख्यमंत्री इसलिए नियुक्त किए गए हैं, ताकि योगी को कंट्रोल किया जा सके. इससे यह मैसेज दिया गया कि यूपी सरकार पीएमओ की निगरानी में काम करेगी.

सरकार पर नियंत्रण दो उपमुख्यमंत्रियों के जरिये रखा जाएगा, जो प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल प्राइवेट सेक्रेटरी नृपेन मिश्रा के संपर्क में रहेंगे.



योगी का मुख्यमंत्री चुना जाना अप्रत्याशित है और इससे कुछ दूसरी गंभीर समस्याएं भी खड़ी हुई हैं.
केशव प्रसाद मौर्य, योगी आदित्यनाथ, दिनेश शर्मा और वेंकैया नायडू (फोटो: PTI)
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सच के लिए करना होगा थोड़ा इंतजार

जब इस तरह के मामलों में विचारधारा का सवाल आता है, जिससे समझौता नहीं किया जा सकता या बात बिना तजुर्बे वाले लोकप्रिय नेता की होती है, तो सच शुरू में सामने नहीं आता. जब सरकार आधा टर्म पूरा करने के करीब आती है, तभी इससे परदा हटता है. यूपी के साथ ऐसा ही है.

बीजेपी को 2019 लोकसभा चुनाव में मुसलमानों के वोट चाहिए, कम से कम इस कौम की महिलाओं के वोटों की तो दरकार उसे होगी ही. इसलिए ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर ध्यान दिया जाएगा.

इसलिए यूपी की नई सरकार से न सिर्फ डिवेलपमेंट पर ध्यान दिए जाने चाहिए, बल्कि सामाजिक योजनाओं के मामले में फेरबदल की उम्मीद भी की जानी चाहिए. दरअसल, राज्य की जनता ने इसी के लिए वोट किया है. यह अभी देखना है कि इनमें किस तरह के बदलाव लाए जाते हैं. इसमें पीएमओ का रोल निर्णायक होगा.

तब तक पूरे देश को इंतजार करना होगा. यह उम्मीद करनी चाहिए कि नए मुख्यमंत्री राजधर्म को देखते हुए मुसलमानों को लेकर अपना रवैया सही रखेंगे. साथ ही, केंद्र सरकार भी उन्हें सही रास्ते पर बनाए रखेगा. आखिरकार कांग्रेस, एसपी और बीएसपी जो कर रही थी, योगी उसका बिल्कुल उलटा नहीं कर सकते.

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दिक्कतें और भी हैं

योगी का मुख्यमंत्री चुना जाना अप्रत्याशित है और इससे कुछ दूसरी गंभीर समस्याएं भी खड़ी हुई हैं. इसमें एक तो तुरंत सामने आएगी और दूसरी 2018 तक.

पहली समस्या बीजेपी और पीएमओ के उन पर कंट्रोल से खड़ी होगी. दरअसल, कोई बॉस नहीं चाहता कि दूसरा उसे बताए कि क्या करना है और क्या नहीं. योगी भी इस मामले में अपवाद नहीं होंगे. इसलिए आने वाले महीनों में टकराव होना तय है.

दूसरी समस्या ऐसी है, जिसका पूरे देश पर असर पड़ सकता है. अगर भारत पर उस तरह से शासन किया जाएगा, जैसा आएसएस चाहता है, तो उस दिशा में कितनी तेजी से बढ़ा जा सकता है?

यूपी बदलाव की शुरुआत करने के लिए आदर्श राज्य है, भले ही उसका जो भी चेहरा सामने आए. यह बदलाव धीरे-धीरे होना चाहिए या 2019 चुनाव में हिंदू वोटों को आकर्षित करने के लिए अचानक होना चाहिए? इस मामले में अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए कदम उठाने जैसी चीजें हो सकती हैं.

आर्थिक मुद्दों को लेकर कोई मतभेद नहीं है. हालांकि सामाजिक नीतियों को लेकर संघ परिवार के अंदर से मतभेद सामने आ सकते हैं. बीजेपी को आज देश में जो समर्थन मिल रहा है, उसमें कई ऐसे लोग शामिल हैं, जो आरएसएस के सोशल एजेंडा से सहमत नहीं हैं. बीजेपी को इस बात का ध्यान रखना होगा. एक अंतरराष्ट्रीय पहलू भी है.

बराक ओबामा 2014 की भारत यात्रा से जब लौट रहे थे, तब उन्होंने कहा था कि पश्चिम भारत से सहिष्णु होने की उम्मीद करता है. उनका इशारा अल्पसंख्यकों की तरफ था. बीजेपी को यह बात योगी को समझानी होगी.

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(लेखक आर्थिक-राजनीतिक मुद्दों पर लिखने वाले वरिष्ठ स्तंभकार हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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