भारतीय जनता पार्टी के सांसदों को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए प्रस्तावक के तौर पर दस्तखत करने के लिए मुख्तार अब्बास नकवी के यहां जाना था. कमाल की बात ये थी कि उनमें से किसी को भी नहीं पता था कि दिल्ली और संवैधानिक तौर पर देश की सबसे ऊंची रायसीना हिल्स पर विराजने के लिए वे लोग किसके नाम पर मुहर लगाने जा रहे हैं.
ज्यादातर सांसद लालकृष्ण आडवाणी के ही पक्ष में सहानुभूति रख रहे थे. लेकिन, राष्ट्रपति बनाने के लिए सांसदों की सहानुभूति नहीं, उनके मतों की जरूरत थी. और वो मत पार्टी के तय उम्मीदवार के ही पक्ष में जाना तय था.
सांसद मुख्तार अब्बास नकवी के घर पहुंच रहे थे और ठीक उसी समय 11 अशोक रोड पर बीजेपी मुख्यालय में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने बताया कि रामनाथ कोविंद एनडीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार होंगे. बिहार के राज्यपाल को राष्ट्रपति बनाने की नरेंद्र मोदी और अमित शाह की इस योजना की जानकारी किसी को नहीं थी.
भारतीय राजनीति नरेंद्र मोदी और अमित शाह को आगे कैसे याद करेगी? एक मंजे हुए राजनीतिक जोड़ी के तौर पर? भारतीय जनता पार्टी को देश की चक्रवर्ती पार्टी बनाने के तौर पर? हिंदू एकता के एजेंडे को आगे बढ़ाने वाले नेता के तौर पर?
अगर इतिहास में आज मुझे इस जोड़ी को दर्ज करने को कहा जाए, तो मैं इस जोड़ी को इन सारे जवाबों के मिश्रण के तौर पर याद करूंगा. 31 मई को अमित शाह गुजरात के छोटा उदयपुर विधानसभा में बूथ कार्यकर्ताओं के साथ थे. छोटा उदयपुर में अमित शाह बतौर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ, विस्तारक के तौर पर थे.
अमित शाह की महत्वाकांक्षी विस्तारक योजना के तहत गुजरात में 48,000 विस्तारकों को राज्य के सभी 48,000 बूथों पर जाना था. इसी के तहत छोटा उदयपुर विधानसभा के बूथ पर अमित शाह लोगों के दरवाजे पहुंचे.
गुजरात का किला मजबूत करने की तैयारी
छोटा उदयपुर विधानसभा में अमित शाह का विस्तारक के तौर पर जाना इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वहां से कांग्रेस का विधायक 8 बार से चुना जा रहा है. आदिवासी बहुल इस इलाके में कांग्रेस की अभी भी मजबूत पकड़ है. अमित शाह सबसे कठिन काम खुद चुनते हैं. इसी कठिन काम चुनने में जब उन्होंने उत्तर प्रदेश चुना था, तो वहीं रामनाथ कोविंद भी उन्हें मिले थे.
अमित शाह ने कहा, ''नरेंद्र मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री रहते बीजेपी ने 120 सीटें जीतीं. अब मोदी जी प्रधानमंत्री हैं, इसलिए हम 150 सीटें जीतेंगे.”
लेकिन, ये अमित शाह को भी अच्छे से पता है कि गुजरात में राजनीतिक तौर पर हालात इधर बहुत बिगड़े हैं. इसलिए मोदी के मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बन जाने भर से बीजेपी को गुजरात में 150 सीटें नहीं मिलने वाली.
हार्दिक पटेल पहले से ही पूरे राज्य में पाटीदारों को लगातार ये समझाने में लगे हुए हैं कि बीजेपी पाटीदारों का भला नहीं कर रही. लेकिन, पाटीदारों में बीजेपी के गहरे धंसे होने से हार्दिक पटेल बहुत कामयाब नहीं हो पा रहे हैं. लेकिन, गुजरात में दलितों का एकजुट होना बीजेपी के लिए चिंता की वजह हो सकती है.
जिग्नेश मेवानी दलितों के साथ मुसलमानों को लाकर बीजेपी के लिए मुसीबत बनने की कोशिश में हैं. ऊना में दलित उत्पीड़न पूरे देश में दलितों को एक साथ लाने में मदद कर रहा है. सहारनपुर में भीम आर्मी का मजबूत होना भी बीजेपी के लिए बुरे संकेत की तरह है.
इन सबके बीच गुजरात विधानसभा का चुनाव इसी साल के अंत में होना है. ऐसे में 150 सीटें हासिल करने के लिए जरूरी है कि गुजरात में हिंदू एकता का बीजेपी का आधार मजबूत बना रहे. इसके लिए पिछड़े वर्ग से आने वाले प्रधानमंत्री के साथ दलित का राष्ट्रपति बनना बीजेपी के लिए सोने पर सुहागा जैसा दिखता है.
रामनाथ कोविंद बिहार के राज्यपाल हैं. उम्मीदवारी घोषित होने के बाद जिस तरह नीतीश कुमार की प्रतिक्रिया दिखी है, उसमें जेडीयू का साथ आना लगभग तय है. चंद्रबाबू नायडू, के चंद्रशेखर राव, रामविलास पासवान पूर्ण समर्थन दे चुके हैं. मुलायम सिंह यादव भी मोदी के उम्मीदवार के साथ ही रहेंगे.
कोविंद उत्तर प्रदेश के कानपुर से और कोली समाज से आते हैं, इसलिए मायावती के सामने भी विरोध का विकल्प बचता नहीं है. पहली प्रतिक्रिया में मायावती ने भी समर्थन के संकेत दे दिए हैं. कुल मिलाकर, सीपीएम महासचिव सीतीराम येचुरी को छोड़कर अब तक आई सारी प्रतिक्रियाएं सकारात्मक रही हैं.
दलितों के बीच और बढ़ेगी आरएसएस की पैठ
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी अपना आधार मजबूत करने के लिए रायसीना पहाड़ी पर किसी दलित के पक्ष में खड़ा है. आरएसएस के सरसंघचालक मोहनराव भागवत लगातार हिंदुओं के लिए 'एक कुंआ, एक मंदिर, एक श्मशान' की बात कर रहे हैं. अब एक दलित के रायसीना पहाड़ी पर विराजमान होने के संघ और मोदी के फैसले से संघ की बात का वजन दलितों में और बढ़ेगा.
अब संघ के लिए हिंदू एकता का आधार और मजबूत होगा. मोदी-शाह यूं ही नहीं, आज की तारीख की सबसे ताकतवर राजनीतिक जोड़ी है.
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(हर्षवर्धन त्रिपाठी वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने हिंदी ब्लॉगर हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)
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