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मोदी सरकार के कामकाज पर आम जनता का अपना-अपना ‘सच’, अलग-अलग आवाज

पीएम मोदी के काम पर इंसान बन रहे हैं ‘लाउडस्पीकर’ और फैल रहा है अलग-अलग ‘सच’

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पक्ष-अरे! नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हर गांव में मोटरसाइकिल, चार पहिया वाहन बढ़ गए हैं.

-मोदीजी जबसे सत्ता में आए हैं चीन, अमेरिका भी भारत से घबराने लगे हैं

-ये जो हजारों फर्जी कंपनियां बंद हुई है न! सिर्फ नोटबंदी से ही इनपर लगाम लगी है.

विपक्ष-नरेंद्र मोदी के आने के बाद नौकरी-वौकरी सब खत्म हो गई है, देखो! गांव के लड़के गांव में नहीं है?

-सत्ता में आने के बाद धीरे-धीरे ये लोग हिंदूओं को मजबूत कर रहे हैं, दूसरे धर्म के लोगों को भगा दिया जाएगा.

-ये जीएसटी दुनिया में सबसे महंगा टैक्स सिस्टम है, जबरदस्ती लागू हुआ है कोई चाह नहीं रहा था.

दिन - 15 अक्तूबर

जगह - यूपी रोडवेज बस (सफर- 60 किलोमीटर)

ये ऊपर जो 6 बातें लिखी गई हैं, इसे आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी की सरकार के पक्ष और विपक्ष के तौर पर देख सकते हैं. ये गहन 'चर्चा-परिचर्चा' 6-8 लोगों में हुई है, जो गोरखपुर से महाराजगंज की रोडवेज बस में सफर कर रहे थे.

60 किलोमीटर के इस सफर में अमूमन 2.15 से 2.30 घंटे लगते हैं. रास्ता टूट-फूट से भरपूर है. बस भगवा रंग की तो नहीं थी लेकिन हालात यूपी की आम बसों के जैसे ही नासाज थे. इस ओवरलोडेड बस में चर्चा शुरू हुई एक मोटरसाइकिल को देखकर और खत्म हुई चीन-अमेरिका से भारत की तुलना पर.
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छोटी-मोटी बातें यहां नहीं होती, ये भारत है!

ये चर्चा इसलिए भी खास थी क्योंकि इस क्षेत्र में अहम समस्या है इंसेफेलाइटिस, बिजली, सड़क, पानी. इन मूलभूत सुविधाओं पर आपको कम बहस सुनने को मिलेगी लेकिन देश की राजनीति, विदेश नीति, पाकिस्तान-चीन-अमेरिका के साथ मजबूत या जर्जर हो रहे भारत के संबंधों पर भरपूर चर्चा आप देख सकते हैं.


आसपास भी नजर डालिए जनाब!

ये माहौल सिर्फ यहीं नहीं है. आप अपने आसपास देखिए. ट्रेन, बस चाय की दुकानों पर आजकल लोग आपको 'आंकड़ों और तर्कों' के जरिए अपनी बातों को रखते हुए दिख जाएंगे. लोकतंत्र में बहस, वाद-विवाद को जगह मिलनी चाहिए, लेकिन ये आंकड़े और तर्क लोगों के पास पहुंच कैसे रहे हैं? ये आंकड़े कौन से हैं? कहां से लाए जा रहे हैं ये तर्क? आपका जवाब है टीवी और अखबार. आप आधे सही हैं. दिमाग पर जोर डालेंगे तो ये समझ आएगा कि आंकड़े अब सोशल मीडिया यानी फेसबुक, वॉट्सअप, ट्विटर के जरिए भी आने लगे हैं.

  • हजारों फर्जी कंपनियां नोटबंदी की वजह से बंद हो गई हैं!
  • हिंदूओं के अलावा दूसरे धर्मों पर देश में संकट है भाई!
  • भारत से चीन-अमेरिका डरने लगे हैं!

अगर आप गूगल करेंगे तो ऐसे ही फेक पोस्ट आपको जरूर दिख जाएंगे. रही सही कसर ये 'ओपिनयिन लीडर' पूरा कर देते हैं.

अब ये ओपिनियन लीडर कौन हैं?

पत्रकारिता में एक सिद्धांत बताया जाता है बुलेट या हाइपोडर्मिक नीडल थ्योरी. बुलेट थ्योरी का मतलब है कि किसी भी संचार माध्यम मसलन टीवी, अखबार, न्यूज वेबसाइट (लोगों को समझ में तो आए कि कौन सी न्यूज वेबसाइट है और कौन सी घर-घर से चलने वाली वेबसाइट) से मिलने वाली खबर का सीधा असर, उसे जस का तस एबसॉर्ब कर लेना या ग्रहण कर लेना.

आपने सुना होगा कि सोशल मीडिया पर एक तस्वीर अपलो़ड हुई और दंगे हो गए, ये इसी थ्योरी का उदाहरण हो सकता है.

अब एक थ्योरी है टू-स्टेप फ्लो थ्योरी, जिसमें जानकारी या संदेश को पहले स्टेप पर ओपिनियन लीडर ग्रहण करता है फिर वो उसे अपनी तरह इंटरप्रेट करके दूसरों तक पहुंचाता है.

इस रोडवेज बस में भी एक ओपिनियन लीडर थे, जिन्होंने तमाम ‘स्वदेशी इंडिया’, ‘जीत जाएगा इंडिया’ (फेक न्यूज) टाइप फेसबुक पेज से ज्ञान हासिल कर लोगों को 'आंकड़ों और तर्कों' के जरिए अपनी बात समझा रहे थे.

उदाहरण के तौर पर उन्होंने बताया कि जैसे ही जापान से बुलेट की टेक्नोलॉजी भारत के हाथ लगेगी, भारत खुद इसका इस्तेमाल कर और बेचकर, ट्रेन के मामले में सबसे शक्तिशाली और समृद्ध बन जाएगा.

इस बातचीत के बीच लगातार वो स्वयंभू ओपिनियन लीडर 'खबर पढ़े थे, कहीं छपा था, टीवी में आया था' जैसे लाइनों का इस्तेमाल तर्कों पर जोर देने के लिए भी कर रहे थे.

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जीत 'तर्क' की हुई

अंत में 6-8 लोगों की टोली के ज्यादातर सदस्य इस बात पर सहमत होने लगे कि देश जल्द ही महाशक्ति बनने जा रहा है. इसके लिए एकदम उच्चकोटि के काम हो रहे हैं और जल्द ही सबकुछ मंगलमय होगा.

एक जगह रास्ते में भीड़ दिखी. बस 40 मिनट तक रूकी रही, लोगों ने कहा- यहां अतिक्रमण की वजह से ई सब होता है. पीछे से आवाज आई- कुछ दिन रूक जाइए मोदीजी इहो सब ठिकाने लगा देंगे.

मतलब साफ है कि सोशल मीडिया, वेबसाइट्स और चिल्लाते हुए टीवी के ‘मानवीय’ लाउडस्पीकरों के दौर में जो पार्टी-मत-ग्रुप लोगों को ये समझा ले कि उसका 'सच' ही 'सच' है, सामने वाले का 'सच' झूठ वही विजेता है, जनता उसी 'सच' को सच मानने लगती है. बाकी तो ये पब्लिक है सब 'कैसे' जान सकती है?

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