ADVERTISEMENTREMOVE AD

फिराक गोरखपुरीः नई-नई सी है कुछ उसकी रहगुजर फिर भी...

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

हिंदुस्तान की गंगा-जमुनी तहजीब के बेहतरीन शायर रघुपति सहाय उर्फ फिराक ‘गोरखपुरी’. वो शायर जिन्होंने उर्दू शायरी के जज्बाती मिजाज को महफूज रखा और उसे भारत की आम-अवाम से जोड़कर उर्दू को एक नया रंग और मिजाज दिया.

रघुपति सहाय, यानी फिराक गोरखपुरी का जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में आज ही के दिन 28 अगस्त 1896 को हुआ था.

शुरुआत में उन्हें अंग्रेजी, उर्दू और फारसी सिखाई गई. कॉलेज में अंग्रेजी तालीम हासिल करने के बाद उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा भी पास कर ली. लेकिन स्वराज आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए उन्होंने देश की सबसे ऊंची यह नौकरी छोड़ दी. उन्हेें जेल में भी काफी वक्त बिताना पड़ा.

और इस सब के बीच चल रहा था लेखन. उन्होंने उर्दू को अपने लेखन की भाषा के तौर पर चुना और अपनी गजलों, नज्मों और दोहों में जिंदगी के कई पहलुओं पर लिखा. उनके संग्रह ‘गुल-ए-नगमा’ के लिए उन्हें 1960 में साहित्य अकादमी और 1969 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी नवाजा गया.

फिराक उर्दू के उन चंद शायरों में से हैं, जिन्होंने सिर्फ हुस्न और इश्क पर ही नहीं, जिंदगी और उसके बाकी पहलुओं पर भी लिखा है. जैसा कि फैज अहमद फैज ने भी कभी कहा था,

“और भी गम हैं जमाने में मुहब्बत के सिवा”

यहां फिराक के कुछ चुनिंदा अशार पेश किए गए हैं.

जिंदगी की कीमत और, खुदा या धर्म के अलावा इंसानियत की कीमत के बारे में बहुत कुछ कह जाती हैं, फिराक की ये पंक्तियां.

पहले शेर में जहां शायर नजरिए की बात कर रहा है कि, कुछ चीजें शायद कभी पुरानी नहीं पड़तीं. चाहे पहले उन पर कितना भी काम कर लिया गया हो, लेकिन फिर भी वो एक शख्स के लिए उतनी ही नई रहती हैं, जितनी 100 साल पहले किसी दूसरे शख्स के लिए रही होंगी. वो क्या चीजें हो सकती हैं, मुझे यकीन है कि आप अब तक उन्हें अपनी उंगलियों पर गिन चुके होंगे.

इसी तरह दूसरे शेर में फिराक घर लौटने की कशिश के बारे में लिखते हैं, कि जन्नत तक पहुंच कर भी इंसान अगर कहीं और जाना चाहता है, तो वो उसका घर ही हो सकता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इन अशआर में शायर ने जिंदगी और दुनिया की गुत्थियों में उलझे इंसान के दिल का हाल सामने रखा है. यकीनन, ये कुछ ऐसे मसले हैं जो कभी न कभी हम सभी के सामने सर उठाते हैं.

साफ है कि इन अशआर में फिराक उस खास शख्स की अहमियत की बात करते हैं, जो हम सब की जिंदगी में होता है, सुकून भरे एक साए की तरह.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

नई जमीन, नया आसमां... जब हम अपनी रोज की जिंदगी से उकता जाते हैं, तो उस नई दुनिया के बारे में जरूर सोचते हैं जहां, सबकुछ वैसा होगा जैसा हम चाहते हैं.

और कई बार खयालों की इस दुनिया मेें पहुंचकर भी हम कुछ कमी महसूस करने लगते हैं. उस शख्स की कमी, जिसके साथ हम इस दुनिया में जीना चाहते हैं. कुछ ऐसा ही तो कहा है शायर ने दूसरे शेर में.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

यहां फिर एक इंसान की अंदरूनी कशमकश, यकीन-गुमान और हकीकत की लड़ाइयां... फिराक ने हर जद्दोजहद को बड़ी खूबसूरती से शब्दों में उतार दिया है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इंसान को दुनिया का खुदा बताना बहुतों के ब्लेसफेमस लग सकता है, लेकिन आखिर इस दुनिया में क्या होगा, क्या नहीं, उसे तय तो कहीं न कहीं इसान ही करता है. और इंसान में बुराइयां हैं, तो अच्छाइयां भी हैं. कुछ ऐसा ही तो फरमाया है शायर साहब ने भी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

और आखिर में ये खूबसूरत गजल, जिसे चित्रा सिंह ने अपनी खूबसूरत आवाज में गाया भी है. जिंदगी और उसके प्राइम-टाइम यानी जवानी पर किसी ने इतनी साफगोई से लिखा हो, याद नहीं आता.

किसी ने कहा है, कि शायर की कलम एक तहजीब का आईना होती है. मुझे यकीन है कि फिराक की कलम में आपको वो तहजीब जरूर नजर आई होगी.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×