अन्ना लोकपाल नियुक्ति, किसानों के मुद्दे और चुनाव सुधार को लेकर 23 मार्च से अनशन कर रहे हैं. अन्ना के इस आंदोलन की तुलना साल 2011 में हुए उनके ही आंदोलन से की जा रही है. तब के मुकाबले इस बार भीड़ काफी कम है.
“आप भीड़ से किसी की आंदोलन के कामयाबी की तुलना नहीं कर सकते हैं, भीड़ तो आतंकी बुरहान वानी के जनाजे में थी.” ये कहते हुए हरियाणा के जींद में फ्री में गरीब बच्चों को एसएससी की कोचिंग देने वाले राणा विक्रम सिंह अन्ना की झलक पाने के लिए आगे बढ़ जाते हैं.
अन्ना की इस रैली में भीड़ कम है ये बात बार-बार मीडिया से लेकर सत्ता पक्ष पार्टी के लोग कह रहे हैं. अब ऐसे में सवाल उठता है कि कौन हैं ये थोड़े से लोग? कहीं ये लोग किराए पर तो नहीं लाए गए हैं? क्यों ये लोग अन्ना के पीछे फिर से चल दिए हैं. क्विंट ने इस अनशन में आए ऐसे ही कुछ लोगों से जानने की कोशिश की अन्ना के साथ आने के उनके मकसद के बारे में. आइए मिलवाते हैं आपको अन्ना के इस आंदोलन का झंडा उठाने वाले आम लोगों से.
“अन्ना नहीं है आंधी है - देश का दूसरा गांधी है”
नाम- प्रियांशु
उम्र- 7 साल
7 साल के प्रियांशु के पिता बताते हैं कि वो 2011 में भी अन्ना की रैली में आये थे.
2011 में जब अन्ना इसी रामलीला में आए थे, तब प्रियांशु इस दुनिया में नहीं आया था. प्रियांशु उस वक्त मां के पेट में था. लेकिन मैं और उसकी मां इस रैली में आये थे. हम इसलिए 2011 की रैली में आये थे ताकि हमारे आने वाले बच्चे के अंदर देशभक्ति की भावना हो. आज मैं प्रियांशु को इस लिए लेकर आया हूं ताकि वो भी इस इतिहास का हिस्सा बन सके. कल को वो मुझे ये ना कहे कि पापा आप ने मुझे भ्रष्टाचार से आजादी की लड़ाई में क्यों नहीं शामिल किया था.
प्रियांशु के पिता एक प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं, रोज शाम वो यहां आते हैं.
“हम नरेंद्र मोदी के उम्मीद में जीते रहे, लेकिन नाउम्मीदी मिली”
नाम- इनामदार
उम्र- 80 साल
जगह- पुणतांबा, महारष्ट्र
80 साल के इनामदार, गांधी टोपी पहने रामलीला मैदान में बिछे हरे रंग की दरी पर लेटे हुए. पूछने पर कि यहां क्यों आएं हैं, इनामदार एक सांस में बताते हैं,
हम तो अपनी जिंदगी जी चुके, लेकिन आने वाली पीढ़ी का क्या? 2014 में इलेक्शन से पहले मोदी ने बहुत से आश्वासन दिए थे, हम लोग उसी उम्मीद पर जीते रहे, लेकिन महंगाई इतनी बढ़ गई कि घर चलाना मुश्किल हो गया. मेरी बीमारी, बच्चों की नौकरी ये सब परेशानी है. हम लोग इसलिए अन्ना के साथ आये हैं, ताकि किसानों को अपनी फसल का डेढ़ गुना ज्यादा दाम मिल सके.
क्या भीड़ ही रैली की कामयाबी का पैमाना है?
नाम- राणा विक्रम सिंह
उम्र- 32 साल
जगह- उत्तर प्रदेश
राणा विक्रम सिंह हरियाणा के जींद में गरीब बच्चों को फ्री में एसएससी की कोचिंग देते हैं. कुछ साल पहले बच्चों को पढ़ाकर जींद से दिल्ली आने के वक्त राणा का एक्सीडेंट हो गया था. जिसके बाद डॉक्टर ने उनका एक पांव काट दिया. राणा बताते हैं कि अन्ना के साथ अगर पांच लोग भी हैं, तो वो सच के साथ हैं.
बार-बार मीडिया और बाकी लोग भीड़ कम है कह रहे हैं, लेकिन आप भीड़ से किसी की आंदोलन के कामयाबी की तुलना नहीं कर सकते हैं, भीड़ तो आतंकी बुरहान वानी के जनाजे में भी थी. तो क्या वो सही था?
अन्ना पड़ गए अकेले
नाम- मनोहर आनंद राव पाटिल
उम्र- 49 साल
जगह- लातूर, महाराष्ट्र
गांधी जी की तरह दिखने वाले पूर्व सैनिक मनोहर आनंद राव पाटिल पिछले कई सालों से लोगों को शांति का संदेश दे रहे हैं. मनोहर अन्ना के सहारे सत्ता में आने वालों से काफी नाराज है. मनोहर कहते हैं,
कृषि प्रधान देश का किसान ही मजबूर है, सरकार सुन नहीं रही है. इसलिए एना की मांग में हम सहयोग करने आये हैं. सरकार से मांग है कि वो स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को माने. 2011 में जो लोग अन्ना के साथ थे उन्हें सत्ता में आना था, उनका स्वार्थ पूरा हो गया तो वो लोग छोड़कर चल दिए. चाहे अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, बाबा राम देव हो या नरेंद्र मोदी सब ने सत्ता हासिल करने के लिए अन्ना का सहारा लिया. अन्ना आज भी देश के साथ खड़े हैं.
कितना पैसा मिला है रैली में आने के लिए?
नाम-कौशल्या देवी
उम्र- 50 साल
जगह- सीतापुर, उत्तर प्रदेश
कौशल्या हाथ में तिरंगा लिए खड़ी हैं. उमंग थिएटर ग्रुप के गानों पर जोर-जोर से तिरंगा लहराती हैं. पूछने पर कि यहां कौन लाया है? क्या किसी ने पैसा दिया है तो गुस्से में कहती हैं हम 23 तारीख से अन्ना के साथ हैं.
अपना हक लेने आये हैं, किसान खेती नहीं करेगा तो लोग भूखे मर जाएंगे और आप पूछते हैं कि कितने पैसे मिले हैं. हम ट्रेन से आये हैं, अपने पैसे से. मंत्री संत्री से काहे नहीं पूछते हो कि ऊ लोग किसके पैसे पर घूमते हैं.
यहां आए लोगों को इस बात की उम्मीद है कि भले ही इस बार अन्ना के साथ केजरीवाल, किरण बेदी, कुमार विश्वास जैसे लोग साथ नहीं हैं, लेकिन इस बार अन्ना खाली हाथ नहीं जाएंगे.
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