'साक़ी' शब्द का अर्थ बारटेंडर, या कोई व्यक्ति जो शराब सर्व करता है. ये लफ्ज़ अक्सर शायरों द्वारा अलग-अलग तरीकों से इस्तेमाल किया जाता है. उदाहरण के लिए जिगर मुरादाबादी की इस ग़ज़ल में 'साकी' शब्द का प्रयोग किसी नेता या 'इमाम' के लिए किया गया है:
ये है मय-कदा यहां रिंद हैं यहां सब का साक़ी इमाम है
ये हरम नहीं है ऐ शैख़ जी यहां पारसाई हराम है
जो ज़रा सी पी के बहक गया उसे मय-कदे से निकाल दो
यहां तंग-नज़र का गुज़र नहीं यहां अहल-ए-ज़र्फ़ का काम है
कोई मस्त है कोई तिश्ना-लब तो किसी के हाथ में जाम है
मगर इस पे कोई करे भी क्या ये तो मय-कदे का निज़ाम है
ये जनाब-ए-शैख़ का फ़ल्सफ़ा है अजीब सारे जहान से
जो वहाँ पियो तो हलाल है जो यहां पियो तो हराम है
इसी काएनात में ऐ 'जिगर' कोई इंक़लाब उठेगा फिर
कि बुलंद हो के भी आदमी अभी ख़्वाहिशों का ग़ुलाम है
इस हफ्ते उर्दूनामा में, हम उर्दू शायरी में अक्सर इस्तेमाल होने वाले शब्द - 'साक़ी' के हवाले से शायरी में मदहोशी के विषय को समझने की कोशिश करेंगे. इस पॉडकास्ट में एक शायर ही से सुनिए कि 'साक़ी' असल में है कौन?
इस पॉडकास्ट में द क्विंट की फबेहा सय्यद के साथ शामिल हुए हैं उर्दू के मशहूर शायर, अजहर इकबाल.
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