दिलीप कुमार को 'किंग ऑफ ट्रेजेडी' का खिताब अगर उनकी एक्टिंग के अलावा दूसरी किसी वजह से मिला है, तो वो है उनके लिए प्लेबैक सिंगिंग करती हुई 'किंग ऑफ गजल' की आवाज. चाहे 1951 में बनी फिल्म तराना के गाने हो या 1950 में आई आरजू फिल्म का गाना 'ए दिल मुझे ऐसी जगह ले चल' हो, तलत महमूद की मखमली आवाज की अफ्सुर्दगी और नरमी मानो दिलीप कुमार के रोल में फिट बैठ जाती थी.
न सिर्फ बतौर बेहतरीन गायक तलत महमूद ने उस जमाने की सभी टॉप फीमेल सिंगर्स के साथ डुएट गाय, बल्कि अपने डैशिंग लुक्स की वजह से एक्टिंग में भी हाथ आजमाया और नूतन और सुरैय्या जैसी कामयाब एक्ट्रेस के साथ फिल्म में बतौर हीरो भी काम किया. शहंशाह -ए-गजल तलत महमूद ने 1940 और 50 के दशक में हिंदी फिल्मों में अपनी मखमली आवाज से एक ऐसा मकाम हासिल किया है जो उनके गानो और स्टाइल की तरह जरा अलग है. आज के दौर में तलत महमूद के गाने और उनका आर्ट अपने आप में म्यूजिक की मास्टरक्लास हैं.
आज उर्दूनामा के इस एपिसोड में, क्विंट की फबेहा सय्यद ने बात की तलत महमूद की नातिन और जर्नलिस्ट, सहर जमां से, जो बता रही हैं कैसे वो तलत साहब का तार्रुफ कराती है मिलनिअल से. तलत साहब की म्यूजिक को सेलिब्रेट करेंगे आज इस पॉडकास्ट में.
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