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साहिर: रिश्तों की ‘तल्खियों’ को ‘खूबसूरत मोड़’ पर छोड़ने के कायल

आज इस पॉडकास्ट में, सुनिए साहिर के कुछ खयालात के बारे में क्विंट की फबेहा सय्यद से.

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साउंड डिज़ाइन, स्क्रिप्ट और होस्ट: फबेहा सय्यद

गायक: विक्रम वेंकटेश्वरन

एडिटर: शैली वालिया

"साढ़े पांच फुट का कद, जो किसी तरह सीधा किया जा सके तो छह फुट का हो जाए, लंबी-लंबी लचकीली टांगें, पतली सी कमर, चौड़ा सीना,चेहरे पर चेचक के दाग, सरकश नाक, खूबसूरत आंखें, आंखों से झींपा –झींपा सा तफक्कुर, बड़े-बड़े बाल, जिस्म पर कमीज, मुड़ी हुई पतलून और हाथ में सिगरेट का टिन."

ये ख्याल कैफी आजमी का है अपने दोस्त साहिर लुधियानवी के बारे में. लेकिन साहिर के कुछ खयालात ऐसे हैं, जो हर दौर में पढ़े जाने चाहिए - चाहे उनकी नज्म 'परछाइयां हो, या हो 'ताज महल'. चाहे चित्रलेखा का गाना 'मन रे तू काहे न धीर धरे' हो, या प्यासा फिल्म का 'तंग आ चुके हैं कश्मकश-ए-जिंदगी से हम' गाना हो. साहिर मुश्किल जज्बात को आसानी से बयान करते हैं.

आज इस पॉडकास्ट में, सुनिए साहिर के कुछ खयालात के बारे में क्विंट की फबेहा सय्यद से.

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