गेस्ट: नोमान शौक
होस्ट, राइटर, साउंड डिज़ाइनर: फबेहा सय्यद
एडिटर: शैली वालिया
म्यूजिक: बिग बैंग फज
ये सच है कि मोहब्बतों को कुर्बतों यानी नजदीकियों से नापा जाता है. महबूब से फासला होने की इस कैफियत को 'हिज्र' यानी जुदाई के हवाले से खूब लिखा गया है. 'हिज्र' की बात करते हुए हमेशा 'याद' का पहलू आता है. मिसाल के तौर पर फैज अहमद फैज की ये लाइनें.
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नो-बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले
लेकिन अगर कोई ये कहे कि थोड़े वक्त के लिए जुदा रहना भी जरूरी है, तो? अगर कोई कहे कि नजदीकियों के बोझ से रिश्ते दब भी सकते हैं, तो ?
उर्दू के कई शायर इसी बात से आगाह कर रहे हैं. आज उर्दूनामा में शायर और पत्रकार, नोमान शौक, उन्ही शायरों की इस बात को याद कर रहे हैं.
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