होस्ट, राइटर, ऑडियो एडिटर: फबेहा सय्यद
एडिटर: शैली वालिया
म्यूजिक: बिग बैंग फज
हसरत, उन ख्वाहिशों को कहते हैं जो अधूरी रह जाती हैं. जो रह-रह कर एक टीस की तरह दिल में उठती रहती हैं. ये कैफियत बिलकुल वैसी होती है, जैसे अपने खूबसूरत माजी यानी अतीत के बारे में हम महसूस करते हैं, और जिसे परवीन शाकिर के एक शेर से खूब अच्छे से समझा जा सकता है.
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तेरा ख़्याल भी
दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी
मलाल, दर्द, गम, घबराहट, बेचैनी, संदेह, मायूसी - ये सभी भावनाएं हमारे जिंदा होने का सबूत हैं.
अफसोस, इन्हीं तमाम भावनाओं की गिरफ्त में आज-कल आप और हम खुद को महसूस कर रहे हैं. कभी दरिया में तैरती लाशों की तसवीरें दिनों तक नींद, भूख, प्यास खत्म कर देती हैं, तो कभी अपनों के गुजरने की खबरें दिल को जकड़ लेती हैं. हमारे कितने ऐसे अपने गुजरे हैं, जिनकी बे-वक्त और बे-उम्र मौत का अभी तक यकीन ही नहीं आता. और ये भी समझ नहीं आता की इस सदमे को किस तरह झेलें. किस तरह खुद को इस बात का यकीन दिलाएं की हर घनी रात के बाद सुबह होती है.
तो समझ यही आता है की ऐसे वक्त में जब जीते जी इंसान को दवा नहीं मिल पा रही, और मरने के बाद जगह नहीं मिल रही, यही सही होगा की अपने दिलों में नरमी लाएं. अपनी हसरतों पर यकीन रखें ये सोचते हुए की दुनिया वाकई ‘फानी’ है.
उर्दूनामा के इस पॉडकास्ट में सुनिए शायरों की कुछ मासूम हसरतों पर लिखे कसीदे. साथ ही सुनिए अहमद फ़राज़ की ख्वाबों के ना-मुकम्मल होने पर सलाह.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)