बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही पॉक्सो एक्ट और सेक्सुअल असॉल्ट को लेकर एक आदेश दिया है जिससे ऐसे 'विचित्र' सवाल दिमाग में आ रहे हैं. आदेश में कहा गया है कि किसी नाबालिग के ब्रेस्ट को बिना ‘स्किन टू स्किन’ कॉन्टैक्ट के छूना POCSO यानि Protection of Children from Sexual Offences एक्ट के तहत सेक्सुअल असॉल्ट की श्रेणी में नहीं आएगा. हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जज पुष्पा गनेडीवाला ने आदेश में कहा है कि किसी भी छेड़छाड़ की घटना को यौन शोषण की श्रेणी में रखने के लिए घटना में ‘यौन इरादे से किया गया स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट’ होना चाहिए.
ट्रायल कोर्ट ने एक 39 साल के शख्स को 12 साल की बच्ची का यौन शोषण करने के अपराध में 3 साल की सजा सुनाई थी, जिसे को हाईकोर्ट ने संशोधित किया है. आरोपी बच्ची को कुछ खिलाने का लालच देकर अपने घर ले गया था जहां उसने बच्ची का ब्रेस्ट छुआ और उसकी सलवार उतारने की कोशिश की. हाईकोर्ट ने उसे पॉक्सो एक्ट से बरी कर बस IPC के सेक्शन 354 के तहत सजा बरकरार रखी है. सेक्शन 354 के तहत दोषी को एक साल की सजा होती है, वहीं POCSO एक्ट 3 साल की सजा का प्रावधान करता है...तो इस मामले में कोर्ट के आदेश के मुताबिक आरोपी की सजा कम होती है.
इस आदेश ने लोगों को शॉक कर दिया है. सोशल मीडिया पर लोग नाराजगी के साथ सवाल पूछ रहे हैं- क्या सिर्फ ग्रोपिंग सेक्सुअल असॉल्ट नहीं है? क्या किसी बालिग या नाबालिग को कंसेंट के बिना उसे छूना सेक्सुअल असॉल्ट नहीं है? ये युवा, बड़ी हो रही बच्चियों को ये संदेश देता है कि अगर अगर कोई आपको सहमति के बिना छूता है तो ये गलत तो है लेकिन गंभीर नहीं है जब तक आपके कपड़े न उतारे गए हो.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)