साल 2012 में मुलायम सिंह यादव ने बेटे अखिलेश यादव को सूबे का सीएम बनाया. फिर 30 दिसंबर 2016 को अखिलेश को पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया. इसके बाद अगले ही दिन मुलायम ने उनका निष्कासन रद्द कर दिया. इससे पहले 23 अक्टूबर को पार्टी के महासचिव रामगोपाल यादव को नेताजी ने छह साल के लिए पार्टी से निकाला और 26 दिन बाद फिर रामगोपाल को पार्टी में वापस ले लिया. फिर दिसंबर महीने में एक बार फिर रामगोपाल का निष्कासन हुआ...अगले दिन निष्कासन रद्द हुआ और फिर दो दिन बाद एक और बार निष्कासन हो गया.
क्या फिर पलटी मारेंगे मुलायम?
तिनका-तिनका जोड़कर मुलायम की बनाई सपा पर संकट बना हुआ है. नेताजी को खुद उनका बेटा ही चुनौती दे रहा है. पार्टी टूटने की स्थिति देखकर नेताजी ‘मुलायम’ हो गए हैं. यही वजह है कि नेताजी ने हाल ही में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि अगले चुनाव में पार्टी की ओर से अखिलेश ही सीएम कैंडिडेट होंगे.
अब संकट पार्टी सिंबल ‘साइकिल’ पर बना हुआ है. बेटा अखिलेश झुकने के मूड में नहीं है. अगर मुलायम और अखिलेश दोनों ने साइकिल पर दावा ठोंका, तो संभव है कि चुनाव आयोग ‘साइकिल’ को फ्रीज कर दे. ऐसे में संभव है कि नेताजी एक बार फिर पलटी मारेंगे और मुलायम को पार्टी सिंबल बचाने के लिए बेटे के सामने झुकना पड़ेगा.
समाजवादी पार्टी का चुनाव चिह्न ‘साइकिल’ है. साइकिल की खासियत होती है कि वह कम से कम समय और जगह में ज्यादा से ज्यादा यू-टर्न ले सकती है. साइकिल की इसी खासियत ने मुलायम को तीन बार देश के सबसे बड़े सूबे का सीएम बनाया और एक बार देश का रक्षा मंत्री बनाया.
पहला यू-टर्नः मिनिस्टर बनने के लिए
यूपी की राजनीति में मुलायम पहली बार साल 1977 में चमके. प्रदेश में जनता पार्टी और समाजवादियों की मिली-जुली सरकार थी. रामनरेश यादव सरकार में मुलायम पहली बार राज्य मंत्री बने. हालांकि यह सरकार ज्यादा दिन तक नहीं चली.
इसके कुछ ही दिन बाद मुलायम की राजनीतिक उठापटक का पहला नमूना देखने को मिला. मुलायम सिंह यादव ने 1980 में उस दौर के समाजवादी नेता राजनारायण का साथ छोड़कर चौधरी चरण सिंह का हाथ थाम लिया.
मुलायम के करीबी रहे यूपी के एक दिग्गज नेता की मानें तो, ‘चरण सिंह न तो विचारधारा से जुड़े थे, न ही वे समाजवाद के खांचे में फिट होते थे. वे मूलत: जमींदार और जाति विशेष के नेता थे. यह बात समाजवाद के खिलाफ थी. लेकिन मुलायम सिंह ने समाजवादी नेता राजनारायण के विरोध के बावजूद चरण सिंह का हाथ थाम लिया.’
दूसरा यू-टर्नः चीफ मिनिस्टर बनने के लिए
अस्सी के दशक में मुलायम समाजवाद की नई परिभाषा गढ़ रहे थे. उस दौरान बोफोर्स मामले की वजह से तत्कालीन पीएम राजीव गांधी को अपनी गद्दी गंवानी पड़ी. देश की कमान वीपी सिंह के हाथ आ गई. बस, मुलायम ने भी मौका देखकर राजीव गांधी को मात देने के लिए जन मोर्चा, जनता पार्टी, लोकदल और कांग्रेस(सोशलिस्ट) के एकजुट होकर बने जनता दल का दामन थाम लिया.
जनता दल (नेशनल फ्रंट) के नेता वीपी सिंह 2 दिसंबर 1989 को देश के प्रधानमंत्री बने और ठीक तीन दिन बाद 5 दिसंबर 1989 को मुलायम पहली बार यूपी के सीएम चुने गए. बाद में जनता दल के समर्थन वापस लेने की वजह से केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिर गई.
लेकिन यूपी में जनता दल का साथ छूटने के बावजूद मुलायम की गद्दी सुरक्षित रही, क्योंकि मुलायम ने मौका देखते ही पैंतरा बदला और चंद्रशेखर की समाजवादी जनता पार्टी के साथ हो लिए. लिहाजा मुलायम एक साल 181 दिनों तक कांग्रेस के समर्थन से यूपी के सीएम बने रहे. वहीं दिल्ली में समाजवादी जनता पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई और चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने.
तीसरा यू-टर्नः सोनिया हुई थीं शिकार
साल 1999 में तमिलनाडु की सीएम रही जयललिता ने कांग्रेस चीफ सोनिया गांधी के कहने पर बीजेपी से समर्थन वापस ले लिया. लिहाजा, केंद्र में तेरह महीने पुरानी अटल बिहारी वाजेपयी सरकार गिर गई.
अटल सरकार पर संकट आया तो कांग्रेस चीफ सोनिया गांधी तमाम विपक्षियों के समर्थन की चिट्ठी लेकर राष्ट्रपति भवन पहुंची. इसमें मुलायम सिंह के समर्थन की चिट्ठी भी शामिल थी. इस समय मुलायम ने एक विचित्र कारनामा कर दिखाया. राष्ट्रपति भवन के बाहर सोनिया, मुलायम के समर्थन की चिट्ठी लहरा रहीं थीं और मुलायम प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कांग्रेस को समर्थन न देने का ऐलान कर रहे थे.
चौथा यू-र्टनः परमाणु करार पर लेफ्ट को दगा, कांग्रेस का साथ
साल 1989 और 1996 में मुलायम ने लेफ्ट के साथ मिलकर केंद्र में सरकार बनवाई और साल 2008 में परमाणु करार के मुद्दे पर मुलायम ने लेफ्ट का ही विरोध कर कांग्रेस सरकार का साथ दिया. इससे पहले तक मुलायम खुद भी परमाणु करार का जमकर विरोध कर रहे थे.
पांचवा यू-टर्नः कल्याण सिंह का इन-आउट
साल 2009 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मुलायम ने बाबरी मस्जिद विवाद के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले बीजेपी नेता कल्याण सिंह को सपा में शामिल कर लिया. चुनाव में पार्टी को इसका खमियाजा चुकाना पड़ा और सपा 39 से 22 सीटों पर आ गई. सपा के सारे मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव हार गए.
मुलायम को जब मुस्लिम-यादव समीकरण पर संकट नजर आया, तो उन्होंने बिना देर के किए हिंदू नेता की छवि रखने वाले कल्याण सिंह को अलविदा कहकर आजम खां को गले लगा लिया.
छठा यू-टर्नः राष्ट्रपति चुनाव में ममता को दे दिया गच्चा
साल 2012 में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ममता बनर्जी ने कांग्रेस कैंडिडेट प्रणब मुखर्जी का विरोध किया. ममता चाहती थी कि डॉ. एपीजे कलाम निर्विरोध राष्ट्रपति बनें. मुलायम ने भी इस मुद्दे पर ममता का साथ दिया और फिर अगले ही दिन वह पलट गए.
मुलायम ने ममता के विरोध के बावजूद प्रणब मुखर्जी को अपना समर्थन दे दिया. ममता ने इसे राजनीतिक धोखा माना और तब से ही वह मुलायम से नाराज हैं.
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