यूपी समेत 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव की घंटी बजते ही लोगों के जेहन में कई सवाल घूम रहे हैं. सबसे अहम सवाल यह है कि क्या इन चुनावों के बाद गठित होने वाली विधानसभाओं में भी धनबली और बाहुबली विधायकों का जोर नजर आएगा?
इस बारे में द क्विंट हाल में चुनाव वाले 5 राज्यों- यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा का लेखा-जोखा पेश कर रहा है. आंकड़ों के जरिए यह दिखाया गया है कि किस राज्य में बाहुबली और धनबली विधायकों की अभी क्या स्थिति है.
दागी विधायकों के मामले में यूपी 'नंबर वन'
साल 2012 के विधानसभा चुनाव के आंकड़ों के मुताबिक, क्रिमिनल केस वाले विधायकों के मामले में उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर है. कुल विधायकों के प्रतिशत के लिहाज से गोवा, उत्तराखंड व पंजाब क्रमश: दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान पर काबिज हैं. मणिपुर के किसी विधायक ने हलफनामे में अपने खिलाफ क्रिमिनल केस पेंडिंग होने की बात नहीं बताई है.
आगे दिए गए इन्फोग्राफ में दागी विधायकों की तादाद और उनका प्रतिशत देखा जा सकता है.
गोवा में करोड़पति MLA का प्रतिशत सबसे ज्यादा
सियासी पार्टियां धनबलियों को टिकट बांटने में भी ज्यादा उदार रही हैं. आज के दौर में चुनाव काफी हद तक पैसे का खेल बनता जा रहा है. यही वजह है कि चुनाव आयोग प्रचार के दौरान प्रत्याशियों के खर्च पर कड़ी नजर रखता है.
जहां तक चुनाव वाले 5 राज्यों के करोड़पति विधायकों की बात है, इनकी तादाद सबसे ज्यादा यूपी में है. प्रदेश में सर्वाधिक 271 करोड़पति विधायक हैं. लेकिन सदन के कुल विधायकों के बीच प्रतिशत (67 फीसदी) के लिहाज से यह प्रदेश लिस्ट में तीसरे स्थान पर है.
अगर इन 5 राज्यों में करोड़पति विधायकों के प्रतिशत की बात करें, तो इसमें गोवा 93 फीसदी के आंकड़े के साथ पर टॉप है. पंजाब, यूपी, उत्तराखंड और मणिपुर क्रमश: दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवें नंबर पर हैं. इन्फोग्राफ देखें:
'दागी' मतलब जीत की गारंटी!
दरअसल, पिछले 10 साल के आंकड़ों पर आधारित एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि बेदाग उम्मीदवारों की तुलना में दागी उम्मीदवारों के जीत की संभावना 2.37 गुना तक बढ़ जाती है.
अगर पूरे देश की बात करें, तो 2004 के लोकसभा चुनाव में इस तरह की संभावना का प्रतिशत 3 था, जो कि 2014 के चुनाव तक 2.6 हो गया. यही वजह है कि राजनीतिक पार्टियां बाहुबलियों और धनबलियों पर अपना दांव लगाना पसंद करती हैं.
गौर करने वाली बात यह है कि बिहार और असम जैसे राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि वहां मनी पावर और मसल पावर का जोर घटा है. चुनाव वाले 5 राज्यों में भी यह ट्रेंड जारी रहता है या नहीं, इसका मुकम्मल जवाब 11 मार्च को चुनाव परिणाम आने के बाद ही मिल सकेगा.
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