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BSP में अंसारी के आने से मायावती की छवि को कितना नुकसान होगा?

मायावती ने किया है मुख्तार अंसारी का बचाव, कहा है - दूसरी पार्टियों में हैं बड़े गुंडे. 

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सुबह की चाय के साथ अखबार पढ़ते हुए कानपुर के 32 साल के पुरुषोत्तम , अब अंसारी परिवार के बीएसपी के साथ जाने पर थोड़े असहज महसूस कर रहे हैं. पुरुषोत्तम होजिरी की छोटी सी दुकान चलाते हैं. अपराध के प्रति मायावती के सख्त रवैये ने उन्हें बहन जीका प्रशंसक बनाया था. लेकिन कौमी एकता दल के बीएसपी में शामिल होने के घटनाक्रम ने उन्हें परेशान कर दिया है.

वे कहते हैं कि अगर सभी लोग एक जैसे हो जाएंगे, तो हम किसे चुनेंगे, बहन जी ने भी गुंडों को अपना लिया है.

मायावती ने उत्तर प्रदेश के दलित मतदाताओं से लेकर मध्य-वर्ग और ऊंची जातियों में पहुंच अपनी छवि से ही बनाई थी. ये छवि थी किसी की न सुनने वाली बहन जी की, जो लुटेरों, शोहदो, अपहरणकर्ताओं और अपराधियों के लिए ‘काल’ थीं. मुख्यमंत्री का नाम सुनकर भ्रष्ट अधिकारियों के पसीने छूटना आम बात थी. अखबार उड़नदस्ते के साथ सीएम के औचक निरीक्षण वाली खबरों से भरे रहते थे.

मायावती की इस छवि ने ही उन्हें देश के राजनीतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण राज्य का मुख्यमंत्री बनाया था. लेकिन बीएसपी सरकार ने भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की वजह से जनता के बीच अपनी साख गंवा दी और इस दौरान यूपी को अखिलेश यादव के रूप में उम्मीद की एक किरण नजर आ गई है. अखिलेश अपने चुनाव प्रचार में भी जाति और सांप्रदायिकता की राजनीति से ऊपर उठकर विकास की बात कर रहे हैं.

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क्या अपराधियों के प्रति नरम पड़ रही हैं मायावती?

बीएसपी अपने चुनाव प्रचार में महिलाओं समेत प्रदेशवासियों को गुंडागर्दी से सुरक्षा देने का वादा कर रही हैं. लेकिन आगरा जेल में बंद मुख्तार अंसारी और उनके परिवार को पार्टी में शामिल करके क्या उन्होंने अपनी इस सुशासन वाली छवि को नुकसान पहुंचाया है?

अंसारी परिवार समाजवादी पार्टी द्वारा दुत्कारे जाने के बाद बीएसपी में शामिल हुआ है. अखिलेश यादव ने अंसारी परिवार को उनकी आपराधिक छवि के चलते ही उनकी पार्टी को सपा में शामिल नहीं होने दिया था.

क्या गुंडा चढ़ गया हाथी पर?

अंसारी परिवार के बीएसपी में शामिल होते ही बीजेपी ने उस पर जोरदार हमला बोला है. बीजेपी ने कहा है, ‘गुंडा चढ़ गया हाथी पर, गोली लगेगी छाती पर’. बीजेपी ने सोची-समझी रणनीति के तहत इस नारे का प्रयोग किया है.

मायावती ने साल 2007 में नारा दिया था, ‘चढ़ गुंडों की छाती पर, मुहर लगाओ हाथी पर’. मायावती इस चुनाव में दंगों और दूसरे बड़े अपराधों से जुड़े अपराधियों पर लगाम लगाने की बात कह रही हैं.

लेकिन मुख्तार अंसारी पर राजनीतिक हत्या से लेकर कब्जों-फिरौती और गुंडा-टैक्स के रैकेट से जुड़े होने का आरोप है.

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क्या विकास और सुशासन पर से डिगा मायावती का भरोसा?

मायावती की चुनावी रणनीति को देखें, तो वे मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने की पूरी कोशिश करती नजर आ रही हैं.

अंसारी परिवार ने भी बीएसपी में शामिल होते हुए कहा है कि उन्हें मुलायम सिंह यादव ने कहा है कि अखिलेश यादव को मुस्लिम पसंद नहीं हैं. ऐसे में समाजवादी पार्टी में रहते हुए हमें बेइज्जती महसूस हुई. मायावती ने अपने इस कदम का बचाव करते हुए कहा है कि मुख्तार अंसारी पर लगाए गए आरोप फर्जी हैं और उनके खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं.

मायावती भले ही अपनी चुनावी रणनीति को पुराने अंदाज में पेश करने की कोशिश करें, लेकिन इस बार वे सारे चुनावी हथकंडों को अपना रही हैं.

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