उत्तर प्रदेश और पंजाब समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की खुमारी अभी उतरी भी नहीं कि राष्ट्रपति चुनाव की उठापटक ने रफ्तार पकड़ ली है. मौजूदा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल 24 जुलाई को खत्म हो रहा है यानी उससे पहले ही देश के नए प्रथम नागरिक का चुनाव होना है. सरकार को वॉकओवर ना देने के इरादे से विपक्ष साझा उम्मीदवार उतारने की गोलबंदी कर रहा है लेकिन हाल में हुई कुछ सियासी हलचलों के बाद माहौल एनडीए के पक्ष में है.
तो क्या अब ये तय है कि-
- देश का अगला राष्ट्रपति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंद का ही होगा?
- बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए ने रायसीना हिल्स की जंग जीत ली है?
- साझा उम्मीदवार उतारने की विपक्षी कोशिशों में कोई दम नहीं?
- विपक्ष का साझा उम्मीदवार हुआ भी तो वो हारी हुई लड़ाई लड़ेगा?
10 मई को हुई इस मुलाकात के बाद जगन ने राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए के उम्मीदवार को खुला समर्थन देने का एलान कर दिया था. उधर तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) भी एनडीए उम्मीदवार के समर्थन का इशारा कर चुकी है. पार्टी के लोकसभा सांसद जितेंद्र रेड्डी ने हाल में कहा था कि बात तेलंगाना के फायदे की हो तो टीआरएस हमेशा एनडीए के साथ रहा है.
एनडीए के हाथ में मैजिक फिगर
फिलहाल राष्ट्रपति चुनाव की जोड़तोड़ में एनडीए बहुमत के आंकड़े से थोड़ा पीछे है. लेकिन वाइएसआर कांग्रेस के समर्थन और टीआरएस के इशारे के बाद तस्वीर बदल गई है. हम आपको समझाते हैं कैसे-
एनडीए के मौजूदा वोट में वाईएसआर कांग्रेस और टीआरएस की ताकत जोड़ दी जाए तो आंकड़ा पहुंच जाता है (5,32,037+16,848+22,048)= 5,70,933. और ये जीत के आंकड़े यानी मैजिक फिगर से 21,491 वोट ज्यादा है.
शिवसेना फैक्टर
इस चर्चा में शिवसेना फैक्टर पर बात करना भी जरूरी है. शिवसेना का एनडीए धड़े की कमजोर कड़ी माना जा रहा है. यानी विपक्षी उम्मीदवार की ‘काबिलियत’ पर शिवसेना की निष्ठा बदल सकती है.
साल 2007 में शिवसेना ने यूपीए की उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल और 2012 में प्रणब मुखर्जी को वोट दिया था. इस बार भी अगर विपक्ष ने एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार जैसे किसी उम्मीदवार को मैदान में उतारा तो ‘मराठी अस्मिता’ शिवसेना की ‘वफादारी’ के आड़े आ जाएगी. लेकिन सवाल ये कि ताजा माहौल में शिवसेना कितनी जरूरी है और कितनी मजबूरी है.
अगर शिवसेना ने दगा दे दी तो एनडीए जीत के आंकड़े (5,49,441) से महज 4,401 वोट दूर होगा जो आसानी से जुटाए जा सकते हैं.
कौन हैं एनडीए के फ्रंट रनर?
यूं तो एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, और मणिपुर की गवर्नर नजमा हेपतुल्ला के नाम चर्चा में हैं. लेकिन बीजेपी सूत्रों की मानें तो सबसे आगे झारखंड की गवर्नर द्रौपदी मुर्मू और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज दौड़ में सबसे आगे हैं.
दोनों नाम पीएम मोदी के ‘महिला हितैषी’ खांचे में फिट बैठते हैं. लेकिन इन दोनों में भी एडवांटेज मुर्मू को है. मुर्मू उड़ीसा की आदिवासी हैं. बीजेपी और आरएसएस के आदिवासी कल्याण एजेंडे को पूरा करने के अलावा उड़ीसा की होने के नाते उन्हें बीजू जनता दल (32,892 वोट) का समर्थन मिल सकता है.
इसके अलावा आदिवासी राजनीति करने वाली पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (5,116 वोट) को भी मुर्मू के समर्थन में आना पड़ेगा. एक आदिवासी महिला का विरोध विपक्ष के लिए भी आसान नहीं होगा.
सुषमा स्वराज के मामले में उनकी खराब तबियत एक मुद्दा है लेकिन पार्टी सूत्रों का कहना है कि यही उनकी ताकत भी बन सकता है. उन्हें इस नाम पर राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जा सकता है कि वो वहां केंद्रीय मंत्री से ज्यादा अपनी तबियत का ख्याल रख सकती हैं. इसके अलावा सुषमा की पैठ तमाम पार्टियों में है जो एनडीए के पाले में ज्यादा पार्टियों की सहमति ला सकता है.
विपक्ष की लड़ाई नाम की
विपक्षी कोशिशों के बीच पूर्व राजनयिक और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे गोपालकृष्ण गांधी का नाम चर्चा में है. महात्मा गांधी के सबसे छोटे पौत्र गोपालकृष्ण गांधी ने इसे शुरुआती बातचीत बताते हुए माना है कि उनसे संपर्क साधा गया है. विपक्ष को लगता है कि गांधी के नाम पर एआईडीएमके, बीजेडी, आम आदमी पार्टी, आईएनएलडी जैसी वो पार्टियां पाले में आ सकती हैं जिनका झुकाव अब तक ना एनडीए की तरफ है ना यूपीए की तरफ. इसके अलावा यूपीए सरकार में लोकसभा अध्यक्ष रहीं मीरा कुमार और पूर्व जेडीयू अध्यक्ष शरद पवार के नाम भी चर्चा में है.
लेकिन विपक्ष अगर एकजुट हो भी गया तो भी वो अपने उम्मीदवार को जिता नहीं पाएगा. हां, 2019 लोकसभा चुनावों के लिए ये विपक्षी महागठबंधन का एक ड्राई रन जरूर हो सकता है.
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