मोदी सरकार अपने तीसरे कैबिनेट फेरबदल के लिए तैयार है. मंत्रिमंडल में ये बदलाव 11 अगस्त के फौरन बाद हो सकता है. दरअसल उसी दिन संसद का मॉनसूम सत्र खत्म हो रहा है. रवायत रही है कि पहले से तय बिल, चर्चा, बैठकों और सवालों के चलते संसद सत्र के दौरान कैबिनेट में बदलाव नहीं किया जाता.
अतिरिक्त मंत्रालयों का बोझ
मोदी कैबिनेट में ऐसे मंत्रियों की लिस्ट लंबी होती जा रही है, जिनके पास एक से ज्यादा अहम मंत्रालय हैं. हाल में एम वेंकैया नायडू को एनडीए का उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद सूचना-प्रसारण मंत्रालय और शहरी विकास मंत्रालय खाली हुए. सूचना प्रसारण का एडिशनल चार्ज कपड़ा मंत्री स्मृति इरानी को मिला, तो शहरी विकास मंत्रालय नरेंद्र सिंह तोमर को. नई जिम्मेदारी के साथ तोमर के पास पांच मंत्रालय हैं.
इससे पहले 18 मई, 2017 को अनिल दवे के निधन के बाद पर्यावरण मंत्रालय का अतिरिक्त भार हर्षवर्धन को सौंपा गया था. मनोहर पर्रिकर के गोवा का मुख्यमंत्री बनने के बाद अरुण जेटली के पास तो वित्त और रक्षा जैसे दो भारी-भरकम मंत्रालय हैं ही.
हाल में जीएसटी और चीन से सीमा विवाद जैसे मुद्दों की सुर्खियों के बीच विपक्ष ने ये सवाल उठाया था कि अकेले जेटली दोनों मंत्रालयों से इंसाफ कैसे कर सकते हैं. खुद जेटली भी रक्षा मंत्रालय के साथ सकून में नहीं हैं. वो जब-तब ये इशारा देते रहे हैं कि उन्हें रक्षा मंत्री बनाना एक मेक-शिफ्ट इंतजाम है, जो आज न कल बदला जाना है. वैसे भी राष्ट्रवाद के नाम पर बीजेपी और केंद्र सरकार का दांव इतना बड़ा है कि रक्षा मंत्रालय को तो हलके में लिया ही नहीं जा सकता.
यूं तो एक मंत्री के पास एक से ज्यादा मंत्रालय होना की खास बात, नहीं लेकिन वो मंत्रालय आमतौर पर एक दूसरे से जुड़े होते हैं. जैसे फाइनेंस और कॉर्पोरेट अफेयर या फिर शिपिंग और रोड ट्रांसपोर्ट. लेकिन वित्त, रक्षा जैसे महत्वपूर्ण और कपड़ा, सूचना-प्रसारण जैसे बेमेल विभाग एक ही मंत्री के पास हों, तो खास मौकों पर विपक्ष को सवाल उठाने का मौका मिल ही जाता है.
क्या हो सकते हैं बदलाव?
पुराने मंत्रियों की छुट्टी के कयासों में सबसे आगे कलराज मिश्रा का नाम है. 75 साल की उम्र पार कर चुके मिश्रा फिलहाल सूक्ष्म एवं लघु उद्योग मंत्री हैं. मोदी सरकार के तीन साल पूरे होने के मौके पर करवाई गई मंत्रियों की रैंकिंग में भी मिश्रा का रिकॉर्ड खास नहीं रहा था. इसके अलावा इस साल के आखिर में हिमाचल प्रदेश में चुनाव होने हैं. स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को बीजेपी मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश सकती है. ऐसा हुआ, तो उन्हें मंत्रिमंडल में अपनी कुर्सी खाली करनी पड़ सकती है.
खाली पदों को भरने के लिए बीजेपी के कुछ पदाधिकारियों के सरकार में आने की चर्चा आम है. नॉर्थ-ईस्ट के चुनावों में पार्टी की कमान संभालने वाले राम माधव और राज्यसभा में कुछ अहम कमेटियों में शामिल भूपेंद्र यादव के नाम इस दौड़ में आगे हैं.
राजस्थान में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. पार्टी में मचे भीतरी घमासान के मद्देनजर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को केंद्र में लाने की भी अटकलें हैं. हालांकि पिछले हफ्ते बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के जयपुर दौरे के बाद ये चर्चा थोड़ी मद्धिम पड़ गई है.
दक्षिण में कमल!
अगले दो साल के भीतर ओडिशा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक जैसे राज्यों में चुनाव होने हैं. बीजेपी की इस बंजर सियासी जमीन पर कमल खिलाने के नजरिये से दक्षिण के कुछ चेहरे पीएम मोदी के दिल्ली दरबार में जगह पा सकते हैं.
वैसे भी बीजेपी का दक्षिण का सबसे मजबूत चेहरा यानी वेंकैया नायडू उपराष्ट्रपति की दौड़ में शामिल होकर पार्टी को विदा कह चुके हैं.
2019 चुनावों से पहले का आखिरी बदलाव!
इससे पहले नवंबर 2014 और जुलाई 2016 में मंत्रिमंडल दो बदलाव देख चुका है. माना जा रहा है कि अगले महीने होने वाला तीसरा बदलाव साल 2019 के आम चुनावों से पहले का आखिरी बड़ा बदलाव होगा. सरकार का आखिरी साल तो चुनावी तैयारियों में ही बीतता है. यानी नए विभाग संभालने वाले मंत्रियों के पास अपना काम दिखाने के लिए एक साल से भी कम का वक्त होगा.
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