एक परिवार में कई सदस्य होते हैं और उन सभी का संबंध आपस में रिश्तों के मधुर तार से जुड़ा होता है. रिश्तों में ताजगी की वजह से ही परिवार का हर सदस्य आगे बढ़ता है और सफलता हासिल करता है. सभी सदस्य एक दूसरे का सहयोग करते हैं और रिश्ते की मधुरता को बनाये रखते हैं. अगर रिश्ते मधुर होते हैं तो जीवन संगीतमय और खुशहाल बन जाता है लेकिन जब रिश्तों में अविश्वास आ जाता है तो जिंदगी में खटास भर जाती है. इससे सदस्य और और परिवार दोनों टूटने लगते हैं.
कभी-कभी व्यवहार में ये पाया जाता हैं कि कुछ सदस्य अपने परिवार के सदस्यों की दूसरों से बुराई करने लगते हैं और उसके संबंधों को खराब करने की कोशिश करते हैं, और ऐसा वो किसी दूसरे का विश्वास जितने और अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए करते हैं.
इसके बाद रिश्ते टूटने लगते हैं, एक सदस्य के गलत व्यवहार की वजह से बाकि के सदस्य अपने को ठगा सा महसूस करते हैं. उन्हें पता ही नहीं चलता की कब किसी अपने ने उसके संबंधों को खराब करना शुरू कर दिया. आइए इस मनोदशा को एक कविता के जरिए समझने की कोशिश करते हैं.
जब भी किसी ने गैरों के लिए अपने घर में आग लगाई है,
मानो या न मानो जग में उसकी ही रुस्वाई हुई है.
क्षण भर के लिए झूठ की चादर जितनी भी फैला लो,
निकली जब कड़क धूप तो दिखता सब साफ दिखाई है.
हैं मस्त बड़ी इस दुनिया की रीत,
जिंदा रहे तो कदर न करे, मर जाओ तो दिखती तब अच्छाई है.
सोचा आज कह ही दूं कि लाख बना लो गैरों को अपना,
कह सको कहो जो भी कहना,
मैंने भी अपनी सच्चाई को अपनी ढाल बनाई है.
जब लोग तुम्हें ठगने लगें,
अब तुम भी थोड़ा थकने लगे,
आ मिलना तुम हमसे हम अभी भी तेरी परछाई हैं.
जब भी किसी ने गैरों के लिए अपने घर में आग लगाई है.
डॉ.बानी आनंद, देवेंद्र पी जी कॉलेज (बेल्थरा रोड, बलिया) में मनोविज्ञान की असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. वो @banivinayanand हैंडल से ट्वीट करती हैं.
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