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इरफान के लिए एक फैन का खत-’हमें दर्द देकर, तुम दर्द से छूट गए’  

बॉलीवुड एक्टर इरफान खान कैंसर बिमारी से ग्रसित थे और 29 अप्रैल को उनका निधन हो गया.

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आखिर वो दिन आ ही गया जिसे मैं कभी नहीं देखना चाहती थी. कल रात तुम्हारी तबियत बिगड़ी और अजीब सा डर बैठ गया दिल में. पिछले दो साल से जिसे दूर रखा था, जिसे दिमाग, ख्याल, दिल के नजदीक भी नहीं आने दिया, वो डर अचानक से बहोत करीब आ गया था.

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तुम्हें तुम कह रही हूं क्यों की बहोत करीब लगते थे तुम. मेरे अपने लगते थे. शाम से मैं तुम्हारे इंस्टाग्राम प्रोफाइल में पचास बार जा चुकी थी. तुम्हारी पुरानी फोटोज और उसपे मेरे दो साल पुराने कमेंट्स वापस पढ़ रही थी. पागल थी मैं. तुम्हें लंबे-लंबे मैसेज भेजती थी. तुम्हें कुछ नहीं होगा, स्टे स्ट्रांग, तुम वापस आओगे और पता नहीं क्या क्या! आज भी पागल हूं. आज भी तुम्हारे जाने को एक्सेप्ट नहीं कर पा रही. और शायद कभी न कर सकूं.

जादुई लगती थी तुम्हारी और दीपिका की केमेस्ट्री

अजीब सा चार्म था तुम में. 'पीकू' में दीपिका और तुम्हारी केमेस्ट्री मुझे जादुई लगती थी. रोमांटिक हीरो के डेफिनेशन में तुम बैठने वाले एक्टर थे ही नहीं लेकिन फिर भी मुझे बहोत रोमांटिक लगते थे. कितनी आसानी से तुम गहरी बातें कह देते थे. आधी एक्टिंग तो तुम्हारी वो बड़ी बड़ी मेंढक जैसी आखें ही कर देती थी. बॉलीवुड के हीरो के डेफिनेशन को ही तुमने बदल दिया था. हीरो हट्टा कट्टा, सिक्स पैक एब्स वाला, लम्बा, जुल्फे उड़ाने वाला हो, इन सब बातों को पीछे छोड़ तुमने हिंदी सिनेमा को एक नया चेहरा दिया. सिंपल, तुम्हारे मेरे जैसे दिखने वाला, हम में रहने वाला, हम में से निकलने वाला इरफान हम सब के जीवन का हिस्सा बन गया. रोजमर्रा की जिंदगी के टॉपिक्स को तुम कितने बखूबी से निभाते थे. अलग-अलग विषय पर सिनेमा बनाते थे. मुझ जैसे कई लोग ऐसे थे जो ये मान कर फिल्म देखते थे कि 'इरफान है तो ये मूवी अच्छी होगी'.

तुमने कभी हमें निराश नहीं किया. कितना सिखाया, कितना कुछ समझाया, जिंदगी को देखने का नया नजरिया दिया तुमने. कुछ लोगों को देख कर ही अपने भारतीय होने पर गर्व महसूस होता है, उन लोगों में से एक थे तुम. जुरासिक पार्क में तुम्हें देख कर अजीब सा गर्व होता था. हॉलीवुड में किसी भी मूवी में बस एक छोटा सीन मिल जाए इसके लिए जहां बॉलीवुड के कलाकार मरते थे, वहीं तुम हॉलीवुड में मेन रोल करने लगे थे. कभी किसी विवाद का हिस्सा नहीं, कभी हिंदू-मुस्लिम का डिबेट नहीं. खान हो कर खान के रेस से दूर थे तुम. क्योंकि तुम्हें जरूरत ही नहीं थी उस रेस की. तुम अलग थे. तुम न हिन्दू थे, न मुसलमान. तुम बस एक कलाकार थे.

2018 में पहली बार तुमने अपनी बीमारी के बारे में लिखा था. लंदन में अस्पताल में जाने के दौरान एक इमोशनल पोस्ट में तुमने लिखा था,

‘क्या अजीब है ज़िंदगी. जिस लॉर्ड्स क्रिकेट मैदान को बचपन से टीवी पर देख के बड़ा हुआ उसी मैदान के सामने मेरा अस्पताल है. कभी लगा नहीं था इस जगह आने से मैं दुखी भी हो सकता हूं. यहां आने की कोई खुशी नहीं होती. बहुत दर्द है, जो बढ़ता है. और तब लगता है इस दर्द के अलावा मैं कुछ नहीं. लॉर्ड्स के सामने इस अस्पताल में इस दर्द के बीच में विवियन रिचर्ड्स का हंसता चेहरा सामने लाता हूं. लेकिन अब ऐसा लगता है कि वो दुनिया मेरी रही नहीं. मैं एक सफर में हूं. रफतार से जा रहा हूं, बहोत बड़े सपने, उम्मीदें ले कर भाग रहा हूं. मेरा स्टेशन दूर है अभी. मैं खुश हूं. लेकिन अचानक से TC ने आ कर मुझे ट्रेन से उतरने को कहा है. मैं हैरान हूं. मुझे पता नहीं क्या हो रहा है. TC ने कहा है कि मेरा डेस्टिनेशन आ गया है.’

‘तुम्हारे मैसेज में दिखती थी जीने की चाह’

उस दिन भी मैं बहुत रोयी थी. तुम लिखते ही कुछ ऐसा थे. तुमने कभी भी अपने बीमारी के बारे में ज्यादा कुछ कहा नहीं. कम बोलते थे तुम पर तुम्हारा काम बोलता था. अस्पताल के बेड से तुमने 2018 में और एक पोस्ट लिखी थी. दीवार पर परछाई बनी अपनी चेहरे की तस्वीर की फोटो तुमने इंस्टाग्राम पर शेअर की थी. तुम लड़ना जानते थे. तुम अंत तक लड़ते रहे. जीने की चाह तुम्हारे हर मेसेज में दिखती थी. महसूस होती थी. मैं भगवान में विश्वास नहीं रखती, लेकिन अगर ये सब उन्हीं के हाथ में है तो काश कुछ ले दे कर भगवान तुम्हें तुम्हारी अपनी जिंदगी वापस दे देते.

किसी अभिनेता के जाने पर मैं अब तक इतना नहीं रोई जितना तुमने रुलाया है. शायद इसके बाद भी कभी किसी के जाने का इतना गम न हो.

तुम्हारी कॉमर्शियल एड भी मैं दिल से देखती थी. वो नहीं थी, सिस्का लाइट्स वाली. अब उसमें अमिताभ बच्चन आते हैं. कभी कभार तुम रैम्प वॉक कर लेते थे किसी फैशन डिजाइनर के लिए. हैंडसम, बॉडी वाले मॉडल्स के सामने भी तुम सब से ज्यादा चार्मिंग लगते थे. एक छोटे गांव से आया लड़का, जिसमें ना हीरो के लुक्स थे, ना बड़ा बाप. बाकी एक्टर्स के मुकाबले तुम्हें बॉलीवुड में सेटल होने में ही बहुत वक्त लग गया. लेकिन बहुत कम वक्त में तुमने हॉलीवुड तक का सफर सफाई से तय किया. आंख बंद कर भी तुम्हारी आवाज पहचान जाते थे लोग. अलग जादुई आवाज थी तुम्हारी. अभी कहां तो तुमने सफर का मजा लेना शुरू ही किया था और उस TC ने सच में तुम्हें ट्रेन से उतार दिया. बहुत क्रूर बहुत बुरा है वो TC.

'तुम अब नहीं आओगे ये समझ नहीं पाऊंगी'

तुम जा चुके हो, नहीं हो, अब तुम्हारी फिल्मों के लिए इंतजार नहीं करना है, गहरी बातें आसानी से बताने अब तुम नहीं आओगे, ये मैं नहीं समझ पाऊंगी. ये समझना, मानना और मनाना आसान नहीं. मैं ये नहीं कर पाऊंगी. मैं ये करना भी नहीं चाहती. शायद ही ये कमी कभी कोई भर पाए. हिंदी सिनेमा में शायद ही वापस कोई इरफान बन पाए. तुमने सिनेमा का मतलब ही बदल दिया था हमारे लिए. अब ऐसे बीच में ही छोड़ कर निकल गए हो तुम.

कुछ दिन पहले तुमने कहा था, wait for me! मैंने वेट किया तुम्हारा इरफान. हम सब ने किया. और करते रहेंगे. क्या पता अगले किसी स्टेशन पर तुम वापस ट्रेन में चढ़ जाओ! मैं इसी उम्मीद को जिंदा रखना चाहती हूं.

ये सब लिखते हुए आखों से आंसू नहीं रुक रहे. मुझे ये सब कभी नहीं लिखना था. कभी नहीं! मीडिया में काम करते वक्त बहुत एक्टर्स को मिलने का मौका मिला. लेकिन मैंने किसी के साथ फोटो नहीं खींची. सोचा था तुम्हे मिलूंगी और एक सुन्दर फोटो लूंगी. शायद तब मिल लेना चाहिए था. हम चीजों को बहुत ग्रांटेड ले लेते हैं. तुम्हारे जाने के बाद लगा है कि शायद हम जिंदगी को भी बहुत ग्रांटेड लेते हैं. तुम्हें और जीना था. ये कोई उम्र नहीं थी जाने की. अभी तो देखा था तुम्हें अंग्रेजी मीडियम में. तुम्हें बूढ़ा होते देखना था. अजीब लगते तुम उन बड़ी मेंढक जैसी आंखों के साथ, लेकिन फिर भी बहुत गहरे और चार्मिंग लगते! कुछ याद आया है अभी तुम्हारे लिए,

दरिया भी मैं, दरख्त भी मैं, झेलम भी मैं, चिनार भी मैं, दैर हूं, हराम भी हूं, शिया भी हूं, सुन्नी भी हूं, मैं हूँ पंडित, मैं था, मैं हूं, मैं रहूंगा!

अमृता प्रीतम और साहिर लुधियानवी की लव स्टोरी पर एक मूवी आने वाली थी, जिसमें तुम और दीपिका वापस एकसाथ दिखोगे ऐसा कुछ पढ़ने में आया था. मैं बेहद खुश हो गयी थी वो पढ़ कर. तुम बहुत जल्दी चले गए इरफ़ान, मुश्किल है, बहुत मुश्किल है इस बात को मान लेना. तुम जहां हो खुश रहो. हमें ये दर्द दे कर तुम दर्द से छूट गए... अब ये दिल दुबारा नहीं जुड़ेगा...

(लेखक- अमृता शेडगे स्वतंत्र पत्रकार और स्तंभकार हैं, कई टीवी चैनलों में काम कर चुकी हैं. इस ब्लॉग में लेखक के अपने विचार है. इससे क्विंट का किसी तरह का सरोकार नहीं है.)

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