मैंने साल 2007 में एक फिल्म पत्रकार के रूप में करियर की शुरुआत की थी. तब से मनोरंजन (Entertainment) की दुनिया में काफी बदलाव आया है. मैं इस बारे में बात नहीं कर रही हूं कि बीते वर्षों में कंटेंट किस तरह बदला है या फिर कैसे ओटीटी (OTT) का तेजी से उदय हुआ है. बल्कि, मैं उन लोगों के बारे में बात कर रहा हूं जिन्होंने इंडस्ट्री को बनाया है. उन्हें हम सेलिब्रिटीज कह कर बुलाते हैं.
यह वो लोग हैं जो अपनी फिल्म और अपने शोज में परफॉर्म कर हमें इंटरटेन करते हैं. ये जिस किरदार को निभाते हैं वो घरों में किसी का नाम हो जाता है. इनके लाखों फैंस हैं जो यह उम्मीद करते हैं कि ये हमारी अपेक्षाओं पर खड़े उतरने के लिए हमेशा तैयार रहें.
लेकिन जिस वक्त ये बहुसंख्यकवादी सोच से हटकर कुछ बोलने का फैसला लेते हैं, तो हम अचानक इन्हें इंसान के रूप में देखने में विफल हो जाते हैं.
मेरा सवाल यह है कि ऐसा क्यों? इन्हें भी हर इंसान की तरह अपनी राय रखने का अधिकार है. ये जो चाहें पहन सकते हैं, जो चाहें खा सकते हैं. इनकी सीमाओं का भी हमें सम्मान करना चाहिए.
केवल अपने मन की बात कहने के लिए मशहूर हस्तियों को निशाना क्यों बनाया जाए?
अभी हाल ही में बॉलीवुड अभिनेत्री काजोल के साथ मेरा एक इंटरव्यू काफी वायरल हुआ. ऐसा क्यों? क्योंकि काजोल ने अपने मन की बात कही और कहा-
आपके पास ऐसे राजनीतिक नेता हैं जिनके पास एजुकेशनल सिस्टम का बैकग्राउंड नहीं है. आप पर ऐसे कई नेताओं द्वारा शासन किया जा रहा है, जिनके पास वह दृष्टिकोण नहीं है.काजोल, बॉलीवुड अभिनेत्री
काजोल ने किसी राजनेता का नाम नहीं लिया. वह केवल शिक्षा के महत्व पर जोर दे रही थीं.
कुछ ही समय बाद काजोल पर बेहद घिनौने हमले हुए. मीडिया में कुछ लोगों ने उनकी टिप्पणियों को गलत तरीके से पेश किया. जिससे लोगों के बीच आक्रोश पैदा हो गया. अफसोस इस बात का है कि हम हालिया समय में ऐसे माहौल में रह रहे हैं जहां क्लिक-बेट्स का बोलबाला है. तर्क से की गई बातें पीछे छूट जाती हैं.
काजोल ने पूरी ईमानदारी से सामने आकर स्पष्टीकरण जारी किया. क्या आज के समय में इनके जैसे लोग बचे हैं? मुझे शक है. अपने मन की बात कहने पर अगर प्रतिक्रिया का डर घेर ले तो ये खतरनाक है.
मैं कई मशहूर हस्तियों से मिली हूं. बड़े लोगों के इंटरव्यू के लिए घंटों इंतजार किया है और अनगिनत प्रेरक बातचीत की है, लेकिन जो चीज मेरे दिल के सबसे करीब है, वह है शाहरुख खान के साथ बिताए गए 10 मिनट. फिल्म रिलीज के दौरान उनसे बातें करना मैं काफी मिस करती हूं, क्योंकि उनके जैसा कोई नहीं है. वह काफी बुद्धिमान और सम्मानित व्यक्ति हैं. ओह! दोबारा उनके सामने बैठने का मौका पाने के लिए मैं क्या करूंगा? यह दूर का सपना लगता है क्योंकि वह अब इंटरव्यू नहीं देते. इस सूची में सिर्फ वो नहीं हैं, बल्कि कई मशहूर हस्तियां शामिल हैं. लेकिन आपको क्या लगता है वे अब इंटरव्यू क्यों नहीं देते हैं?
मुझे लगता है कि इसका संबंध हमारे आस-पास की चीजों से है. इनमें सोशल मीडिया व मेनस्ट्रीम मीडिया पर फैला जहर और बोलने से पहले अपने शब्दों को तौलने की निरंतर चिंता मुख्य रूप से शामिल है. अगर सार्वजनिक हस्तियां सेक्सिस्ट, होमोफोबिक या अपने शब्दों से लोगों को ठेस पहुंचाने वाले कमेंट करते हैं तो उनकी आलोचना करने में कोई हर्ज नहीं है, लेकिन समस्या तब पैदा होती है जब उन्हें और उनके फैमली मेंबर को उनकी अपनी किसी राय के लिए धमकाया जाता है. खासकर जब बात हमारे देश की राजनीति या अपने विश्वासों के लिए खड़े होने की आती है.
परिवारों पर हमला - क्या हम इतना नीचे गिर गए हैं?
हममें से कोई भी आर्यन खान की दुर्दशा को नहीं भूल सकता जब उन्हें अक्टूबर 2021 में गिरफ्तार किया गया और तीन सप्ताह से अधिक समय तक सलाखों के पीछे रखा गया. ताक-झांक करने वाले गिद्ध उसे नोच रहे थे, सिर्फ इसलिए क्योंकि वह शाहरुख खान के बेटे हैं. 24 वर्षीय आर्यन की गिरफ्तारी और उसके बाद हुआ मीडिया ट्रायल की पहले से ही अशोभनीय आचरण पुस्तक में एक और शर्मनाक चैप्टर है.
अगर शाहरुख ने मीडिया से बात करने से परहेज किया है तो क्या हम उन्हें दोषी ठहरा सकते हैं? मैं समझती हूं कि अपने पोजीशन से मशहूर हस्तियों ने आलोचना के लिए साइन अप किया है, लेकिन बोलने या न बोलने के लिए उन पर हमला करना बेहद असंवेदनशील है.
अपने इंटरव्यू में मैं आमतौर पर सेलेब्रेटी से सोशल मीडिया पर उनके विचारों के बारे में पूछती हूं. वे सभी इस बात से सहमत हैं कि फायदे तो हैं लेकिन नुकसान भी बहुत हैं. हालांकि, अनुराग कश्यप, अनुभव सिन्हा, स्वरा भास्कर जैसे लोग देश को परेशान करने वाले मुद्दों के बारे में बोलने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते थे. वो अब या तो सोशल मीडिया से दूर हो गए हैं या अब बमुश्किल कुछ भी पोस्ट कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें और उनके परिवारों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है.
पहले इंटरव्यू से मशहूर हस्तियों की टीम का कोई भी पीआर पेशेवर अनुरोध नहीं करता था कि "कृपया यह सवाल न पूछें", लेकिन अब इसकी जरूरत क्यों पड़ी? क्योंकि हमारी सीमाएं धुंधली ही नहीं हुई हैं, वे मिट गई हैं. मैं चाहती हूं कि अधिक से अधिक मीडिया घराने और पत्रकार अधिक संयम और गरिमा दिखाएं.
रेखाओं का यह धुंधलापन मुझे एक घटना की याद दिलाता है. पिछले साल एक सेलिब्रिटी का इंटरव्यू लेने से पहले उनकी टीम ने अनुरोध किया था कि "कृपया उनके तलाक के बारे में न पूछें." ऐसा सवाल मेरे दिमाग में भी नहीं था. क्यों? क्योंकि कल्पना करें कि आप अपने जीवन में एक कठिन दौर से गुजर रहे हैं और कोई अजनबी आपके चेहरे पर कैमरा घुमाता है और पूछता है, "हमें अपने तलाक के बारे में बताएं." क्या आप कभी उस जगह खुद को देखना चाहेंगे?
धर्म कार्ड - लगातार सेलेब्स को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है
और सबसे महत्वपूर्ण धर्म के मुद्दे के बारे में नहीं भूलना चाहिए. हर दूसरे दिन हम अल्पसंख्यकों पर हमलों के बारे में पढ़ते हैं. और अगर आप एक सार्वजनिक व्यक्ति हैं, तो आप लगातार निशाने पर हैं.
शाहरुख हमेशा देश में राजनीतिक स्थिति के बारे में मुखर रहते थे. जनवरी 2013 में शाहरुख ने द न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार के सहयोग से प्रकाशित 'आउटलुक टर्निंग पॉइंट्स' पत्रिका में लिखा था-
मैं उन राजनीतिक नेताओं का अनजाने टारगेट बन गया हूं जो मुझे उन सभी चीजों का प्रतीक बनाना चाहते हैं, जो वे भारत में मुसलमानों के बारे में गलत और गैर-देशभक्तिपूर्ण (अनपैट्रिऑटिक) सोचते हैं.शाहरुख खान, बॉलीवुड अभिनेता
उन्होंने यह भी लिखा कि उन पर "अपने देश के बजाय हमारे पड़ोसी देश के प्रति निष्ठा रखने का आरोप लगाया गया था. भले ही मैं एक भारतीय हूं जिसके पिता ने भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी."
उनके शब्दों के गलत अर्थ निकाले गए. बाद में उन्हें स्पष्टीकरण देते हुए कहना पड़ा, "मैंने कभी नहीं कहा कि मैं असुरक्षित हूं. मैं अपने देश में सुरक्षित हूं. हम सभी अपने देश में सुरक्षित हैं."
26/11 मुंबई हमले के एक साल बाद की बात करें तो शाहरुख खान से एक मीडिया हाउस ने टिप्पणी मांगी तो उन्होंने कहा-
"आतंकवाद के बारे में किसी के भी दो दृष्टिकोण नहीं हो सकते. आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता. मुझसे अक्सर इस पर मेरा दृष्टिकोण पूछा जाता है, शायद इसलिए कि मैं एक मुस्लिम हूं और मुझे मुस्लिम होने पर बहुत गर्व है."
क्या इसी तरह लोगों को निशाना बनाया जाना चाहिए? क्या हम इतना नीचे गिर गये हैं?
वहीं, हाल ही में सारा अली खान को केदारनाथ के दर्शन को लेकर ट्रोल किया गया था. क्या हम अब भी धर्म पर लड़ रहे हैं?
एक झटके में फिल्मों के बहिष्कार का आह्वान
यह मुझे क्रोधित करता है. ट्विटर ट्रेंड #BoycottBollywood पिछले कुछ वर्षों में तेजी पकड़ रहा है. क्या आप जानते हैं कि एक फिल्म की रिलीज पर कितने लोगों की आजीविका निर्भर होती है? किसी फिल्म को उसकी कहानी या राजनीति के कारण अस्वीकार करना एक बात है, लेकिन केवल इसलिए बहिष्कार का आह्वान करना क्योंकि आप निर्माता के विचारों से सहमत नहीं हैं. यह बेतुकेपन से कम नहीं है.
मुझे ब्रह्मास्त्र का प्रेस शो याद है. मैं वहां दूसरे पब्लिकेशन के सहकर्मियों के साथ बैठी थी और मुझे महसूस हुआ कि स्क्रीनिंग से पहले हमसे बात करते समय फिल्म के डायरेक्टर अयान मुखर्जी किस दबाव से गुजर रहे थे.
2011 में रॉकस्टार के प्रमोशन के दौरान रणबीर कपूर ने कहा था-
मेरा परिवार पेशावर से है, इसलिए उनके साथ ढेर सारा पेशावरी खाना आया है. मैं मटन, पाया और बीफ का शौकीन हूं. हां, मैं बीफ़ का बहुत बड़ा फैन हूं.रणबीर कपूर, बॉलीवुड अभिनेता
उनकी टिप्पणी से कितना हंगामा मच गया! मुझे याद है कि जब एक एक्टर के खाने की पसंद को लेकर उसकी फिल्म का बहिष्कार करने की मांग की गई थी तो मैं अवाक रह गयी थी!
जब 2016 के उरी हमलों के बाद भारत-पाकिस्तान संबंध न्यूनतम स्तर पर थे. उस समय करण जौहर की 'ऐ दिल है मुश्किल' एक बड़े विवाद में आ गई क्योंकि फिल्म कलाकारों में पाकिस्तानी एक्टर फवाद खान भी शामिल थे. धमकियों के बाद करण को फवाद के कई दृश्यों को एडिट करने के लिए मजबूर होना पड़ा.
आखिर में करण जौहर को एक वीडियो जारी कर कहना पड़ा कि मेरे लिए मेरा देश सबसे पहले है.
तब से कई फिल्में सबसे विचित्र कारणों से आलोचना का शिकार हुई हैं. माई नेम इज खान किसी फिल्म के कंटेंट के कारण नहीं, बल्कि इंडियन प्रीमियर लीग से पाकिस्तानी क्रिकेटरों को बाहर किए जाने पर शाहरुख द्वारा निराशा व्यक्त करने के कारण विवाद में फंस गई.
शाहरुख ने बाद में ट्वीट कर कहा-
दुख की बात है कि मेरे बयानों को मेरे और मेरे व्यक्तित्व के पक्ष के बजाय एक समूह के खिलाफ एक रुख के रूप में देखा जाता है. विचारधारा में अंतर बहस और चर्चा का आधार होना चाहिए. विचार की स्वतंत्रता के लिए जरूरी है. इसे किसी अन्य तरीके से देखना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है.
संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत की रिलीज से ठीक पहले सेट पर तोड़फोड़ की गई. विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया. फिल्म में दीपिका पादुकोण मुख्य भूमिका में थीं. फिल्म की आलोचना कथित तौर पर एक स्वप्न दृश्य को दिखाने के लिए की जा रही थी जिसमें मुस्लिम शासक अलाउद्दीन खिलजी एक हिंदू महारानी पद्मावती के साथ नजर आता है. जबकि भंसाली ने स्पष्ट किया था कि फिल्म में ऐसा कोई दृश्य नहीं है. बीजेपी के एक मंत्री ने फिल्म निर्माता, दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह का सिर कलम करने वाले को भारी इनाम देने की भी घोषणा की.
साल 2015 में आमिर खान की तब की पत्नी किरण राव ने अल्पसंख्यकों के प्रति बढ़ती असहिष्णुता के कारण भारत में असुरक्षित महसूस करने का डर व्यक्त किया और आमिर ने सहमति व्यक्त की. इसके चलते लोगों ने दंगल और लाल सिंह चड्ढा के बहिष्कार का आह्वान किया.
साल 2020 में आदिपुरुष में रावण का किरदार निभा रहे सैफ आली खान ने मीडिया बात करते हुए कहा कि फिल्म रावण के 'मानवीय' पक्ष को दिखाएगा. उन्हें इतनी नफरत और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा कि उन्हें माफी मांगते हुए कहना पड़ा, "मुझे पता चला है कि एक इंटरव्यू के दौरान मेरे एक बयान से विवाद पैदा हो गया है और लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंची है. यह मेरा इरादा कभी नहीं था या इसका ऐसा कोई मतलब नहीं था. मैं सभी से ईमानदारी से माफी मांगना चाहता हूं और अपना बयान वापस लेना चाहता हूं. भगवान राम हमेशा मेरे लिए धार्मिकता और वीरता के प्रतीक रहे हैं. आदिपुरुष बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाने के बारे में है और पूरी टीम इस महाकाव्य को पेश करने के लिए मिलकर काम कर रही है."
हम मशहूर हस्तियों से महत्वपूर्ण मुद्दों पर बोलने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं जब बलात्कार और सिर काटने की धमकियां बिना सोचे-समझे दी जा रही हैं?
मुझे वह समय याद आता है जब कैमरे घूमते थे और एक्टर अपने मन की बात कहते थे. वे अपने परिवार की सुरक्षा, अपने मानसिक स्वास्थ्य की चिंता किए बिना अपनी राय देते थे. अब समय आ गया है कि हम इसे ठीक करें. आज वे निशाने पर हैं, कल हम में से कोई भी हो सकता है.
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