सच और झूठ के बीच में कहीं पाया जाता है मिथक. आप इस पर सच की तरह विश्वास भी नहीं कर सकते और इसे झूठ की तरह नकार भी नहीं सकते. जैसे, अगर मैं आपसे कहूं, कि आने वाले समय मे हमारे देश का हर व्यक्ति आत्मनिर्भर बन जाएगा, चाहे आज उसके पास रोजगार हो या ना हो. तो, आप लोग थोड़े असमंजस्य में पड़ जाओगे और सोचोगे कि क्या ये हो सकता है ? या ये कैसे हो सकता है ? बस, इस असमंजस्य में अगर बढ़िया सा प्रचार मिला कर, आत्मविश्वास से बोलने का छोंका लगा दिया जाए तो जो बनेगा वो होगा मिथक.
आप ये मत समझिये कि मिथक कोई बुरी चीज है, नहीं बिलकुल नहीं. बल्कि मैंने तो एक किताब में पढ़ा था कि हम होमोसेपियंस (जिसमें सभी देश, धर्म,जाती ,वर्ण के लोग आते हैं) हमारे प्रतिद्धन्दियों को इसलिए हरा पाए क्योंकि हमारे पास मिथक थे, जिसने हमें जोड़े रखा और उनके पास नहीं. तो मिथक में ताकत तो बहुत है , ये जोड़ भी सकता है और तोड़ भी, बस इसकी एक कीमत होती है, वो है सच और सच जब तक साबित ना हो, वो खुद एक मिथक है.
अब आप वर्तमान में ही देख लीजिये. कैसे कोरोना महामारी के दौर में क्या सच है, क्या मिथक, ये समझना किसी गुत्थी सुलझाने से कम नहीं. कभी खबर आती है कि ये चीन के किसी चमगादड़ से मनुष्यों मे आया है, कभी खबर आती है कि ये किसी लैब में बना है.
सुबह डब्लूएचओ कहता है कि वैक्सीन आने में कम से कम दो साल का समय लगेगा, शाम तक कोई देश दावा कर देता है कि उसने वैक्सीन ढूंढ ली है . नेताजी ये प्रचार करते हैं कि देश में हालात सुधर रहे हैं, और उनकी ही सरकार के आकड़ें बताते है कि रोज हजार से ज्यादा लोग मर रहे हैं.
इस दौर में न सिर्फ सच और मिथक के बीच की रेखा सिमट रही है, बल्कि कई सर्वमान्य सच भी मिथक बन रहे हैं. जैसे, वैश्वीकरण का लाभ सभी देशों को हुआ पर हकीकत ये है कि इसका सारा लाभ एक ही देश ले गया इसलिए अब बाकी देश आत्मनिर्भर बनने की बात कर रहे हैं. हम ये समझते थे कि देश की सरकारों की पहली जिम्मेदारी लोगों के प्रति बनती है, पर अब समझे कि सबसे जरूरी चुनाव जीतना और सरकार बनाना है. क्योंकि अगर चुनाव ही हार गए तो फिर कैसी जिम्मेदारी और काहे की हिस्सेदारी? हमारी जनरेशन जो खुद को बहुत टेक सेवी, विज्ञान पर भरोसे करने वाली दिखाती थी, वो आपदा के समय थाली बजाती और दीया जलाती नजर आई.
अब सवाल ये है कि ऐसी स्थिति में हम लोग करें तो करें क्या? अरे, इसमें सोचना क्या है, वही करते हैं जो हम अब तक करते आये हैं अर्थात उस सच को अपनाएं जो खुद को भाए ,वरना ऊपर दी गयी रेसिपी से एक बढ़िया सा सुन्दर दिखने वाला मिथक बनाएं और व्हाट्सएप से उसे फैलाएं . क्योंकि न किसी को सच की पड़ी है, और ना उस तक पहुंचना मिथक बनाने जितना आसान है, तो फिर इस झंझट में पड़ना ही क्यों? और रही बात कोरोना की गुत्थी सुलझाने की तो उसमें तो बड़े-बड़े विद्वान फेल हो गए हैं. मैं आपको तुलसीदास जी की चौपाई से प्रेरित एक चौपाई के साथ छोड़ जाता हूं, जो आपको कुछ समझाए या नहीं, पर अच्छी लगेगी.
जाकी रहे भावना जैसी ।
कोरोना तिन्ह देखिहि वैसी।।
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