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गुरु-शिष्य के रिश्ते को समझाती अशफाकउल्लाह खां की कहानी

Teachers Day 2020: जब अशफाकउल्लाह को फांसी की खबर सुन शिक्षक रोने लगे

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आमतौर पर हमारे पैतृक शहर प्रयागराज में लोग प्रातःकाल घूमने और ताजी हवा के लिए ऐतिहासिक चंद्रशेखर आाद पार्क (कंपनी बाग ) जाना पसंद करते हैं. कुछ लोग तो इसे शहर का फेफड़ा ही मानते हैं. कोरोना के चलते मैं भी इन दिनों प्रयागराज से ही ‘वर्क फ्रॉम होम’ कर रहा हूं और जॉगिंग के लिए सुबह ‘कंपनी बाग’ पहुंचने की कोशिश करता हूं. इस खूबसूरत, विशाल पार्क में कई दिशाओं में क्रमशः कुल 6 गेट हैं- जिनमें शहीद भगत सिंह गेट, शहीद राम प्रसाद बिस्मिल गेट, अमर चंद्रशेखर आजाद गेट, शहीद सुखदेव सिंह थापर गेट, शहीद राजगुरु गेट और शहीद अशफाकउल्लाह खां गेट है.

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हाल ही में, एक दिन मैंने पार्क के भीतर गेट नंबर तीन (अमर चंद्रशेखर आजाद गेट) से एंट्री ली. आदत के मुताबिक, पहले पूरे पार्क का लगभग ढ़ाई किलोमीटर लंबा एक चक्कर लगाया और उसके बाद अभी दूसरा राउंड पूरा भी नहीं कर पाया था कि शहीद अशफाकउल्लाह खां गेट (यानि गेट नंबर-6) के नजदीक मेरे स्कूल के एक मित्र, पुराने सहपाठी डॉ प्रदीप (जो कि वर्तमान में स्थानीय एक कॉलेज में संस्कृत के अध्यापक हैं) सामने मुझसे टकरा गए.

मित्र प्रदीप से उस दिन काफी अरसे बाद मुलाकात हुई थी, इसलिए हम दोनों ने जॉगिंग-वॉगिंग छोड़, कहीं बैठकर गप-शप करना अधिक बेहतर समझा. शहीद अशफाकउल्लाह खां गेट से ही निकलकर हम दोनों सामने एक छोटी सी चाय की दुकान में जाकर बैठ गए और अपने पुराने अध्यापकों और सहपाठियों की मीठी -खट्टी बातें याद कर स्कूल के स्वर्णिम दिनों की यादों में लगभग खो से गए.

हमारे संस्कृत के अध्यापक प्रमोद कुमार शुक्ला गुरूजी से मित्र प्रदीप बहुत प्रभावित रहते थे या यूं कहूं कि शुक्ला गुरूजी की शख्सियत ही ऐसी थी कि उनसे मिलने वाला हर व्यक्ति उनसे मुत्तासिर हुए बिना नहीं रह सकता था. शुक्ला गुरूजी हम सभी के प्रिय अध्यापक थे. मित्र प्रदीप पढ़ने में अच्छे होने के साथ-साथ, अच्छे, अनुशासित वक्ता भी थे. जिले में वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में स्कूल का प्रतिनिधित्व करने के लिए उनको जरूर भेजा जाता था. सम्भवतः शुक्ला गुरूजी को ही आदर्श मानते हुए मित्र प्रदीप ने अध्यापन को अपना करियर बनाया होगा.

खैर, चाय के कई कुल्हड़ अब तक सामने पड़े कूड़े-दान में समाहित चुके थे, पर हमारी बातों का दौर खत्म ही नहीं हो रहा था. तभी किसी बात पर मैंने मित्र प्रदीप से कहा कि तुम्हारे कॉलेज के बच्चे भाग्यशाली हैं, जिन्हें तुम्हारे जैसा योग्य और अनुशासित अध्यापक मिला है. इस पर वो मुस्कुराए और बोले कि जमाना बदल गया है, अपवादों को छोड़कर, दुर्भाग्यवश अब वैसे अध्यापकों और छात्रों का मिलना दुर्लभ है.

फिर, उन्होंने मुझसे उनके साथ घटित एक निजी अनुभव साझा किया. उन्होंने बताया कि पिछले साल कॉलेज के एक छात्र को उसकी किसी गलत हरकत के लिए प्रदीप ने उसको समझाना चाहा तो वो नाराज हो गया और कुछ ही देर बाद बाहरी युवकों के साथ स्कूल परिसर में घुसकर उसने इन पर ही हमला बोल दिया. इस घटना के संज्ञान पर मेरी आंखें जैसे कंपनी बाग के सामने वाले गेट पर लिखे शहीद अशफाकउल्लाह खां के नाम पर ठहर सी गईं.

एक ओर मेरे सामने, देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी के तख्ते पर चढ़ जाने वाले छात्र अशफाकउल्लाह खां का अमर नाम था, वहीं दूसरी ओर मित्र प्रदीप से उनके नादान शिष्य की कारगुजारी सुन रहा था. मैं इस विरोधाभास और संयोग पर हैरान था.
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अशफाकउल्लाह खां और गुरु का रिश्ता

गेट की कमान पर शहीद अशफाकउल्लाह का नाम देख मुझे 1997 में एक प्रमुख हिन्दी दैनिक (अमर-उजाला ) के लिए, स्वतंत्रताा सेनानी , विख्यात पत्रकार, पूर्व शिक्षा मंत्री और अशफाकउल्लाह खां के स्कूल में उनके सहपाठी रहे - स्वर्गीय पी. डी .टंडन (पुरुषोत्तमदास टंडन) साहब का मेरे द्वारा किया गया साक्षात्कार स्वतः स्मरण हो आया. साक्षात्कार के दौरान मैंने टंडन साहब से गुरु और शिक्षक के संबंधों पर रौशनी डालने का भी आग्रह किया. उस पर टंडन साहब ने अपने स्कूल की एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण घटना का जिक्र मुझसे किया था.

बता दें कि कि स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी अमर शहीद अशफाकउल्लाह खां और टंडन साहब दोनों शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश में स्थित ‘आबि रिच मिशन हाई स्कूल’ में पढ़ा करते थे. अशफाकउल्लाह स्कूल के छात्रों में बहुत लोकप्रिय थे और वह हॉकी के अच्छे खिलाड़ी भी थे. वहां के हेड मास्टर रूफस चरन भी निहायत जोरदार आदमी थे. एक दिन जब टंडन साहब किसी कार्यवश उनके कमरे में खड़े थे, तभी अशफाकउल्लाह शहर के कई रईस लोगों के साथ आज्ञा लेकर अंदर आ गए.

अशफाकउल्लाह के साथ आए लोगों ने हेड मास्टर साहब से बड़े ही अदब के साथ कहा , "हुजूर! अशफाकउल्लाह के साथ ज्यादती हुई है. इसको ठीक अंक नहीं दिए गए हैं. इसकी कॉपी आप दोबारा चेक करवा दें तो बड़ी मेहरबानी होगी." हेडमास्टर साहब ने कॉपियां मंगवाईं, स्वयं देखा और कॉपियां फिर से चेक करवाने की उन्हें कोई जरूरत महसूस न हुई. अंत में, गुस्से में आकर अशफाकउल्लाह से कहा, “बेहूदे ! पढ़ता-लिखता कुछ नहीं और ऊपर से शिकायत करता है!"

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इस प्रकार से, सबके सामने डांट खाने की वजह से वहां पर अशफाकउल्लाह को भी गुस्सा आ गया और उन्होंने अपनी जेब से भरा हुआ रिवाल्वर निकाल कर धीरे से हेडमास्टर साहब की मेज पर रख दिया और सिर झुकाकर दबी जबान में कहा कि अगर उस्ताद और शागिर्द का रिश्ता न होता तो अभी बता देता. इस पर उनके साथ आए लोगों ने उनको डपटा और हेडमास्टर साहब से उनकी गुस्ताखी की माफी मांगते हुए वहां से वे लोग रवाना हो गए.

इसके बाद टंडन साहब ने बताया, एक दिन खबर आई कि अशफाकउल्लाह काकोरी केस के लिए गिरफ्तार कर लिए गए हैं. आप सभी जानते हैं कि काकोरी कांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों द्वारा ब्रिटिश राज के विरुद्ध सरकारी खजाने को लूट लेने की एक ऐतिहासिक घटना थी जो 9 अगस्त 1925 को घटी थी. अशफाकउल्लाह की पिस्टल से ही खजाने का ताला टूटा था.

हेडमास्टर साहब को जब यह खबर हुई तो उन्होंने कहा, “अशफाकउल्लाह ने स्कूल का नाम डुबो दिया.”

कुछ समय बाद एक दिन अचानक खबर आई कि 19 दिसम्बर 1927 को अशफाकउल्लाह को फैजाबाद जेल में फांसी दे दी गयी. उस दिन हेडमास्टर साहब पढ़ाने तो आये पर उनके मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे. उन्होंने कक्षा की ओर अपनी पीठ कर ली और दीवार की तरफ देखते हुए कहा, “अशफाकउल्लाह शरारती था, परन्तु अपने उस्तादों की बड़ी इज्जत करता था. एक दिन तो उसने मेरी जान ही बख्श दी थी." यह कहते हुए उनके आंसू टपकने लगे और वह अपने रुमाल से आंसुओं को पोछते हुए कक्षा से बाहर चले गए.

यह वाक्या बताने के बाद, टंडन साहब ने बड़े विश्वास के साथ कहा, “गुरु-शिष्य के अजीम रिश्ते के प्रति अशफाकउल्लाह का सम्मान और हेडमास्टर साहब के आशीर्वाद ने ही शायद उनको सदा के लिए अमर बना दिया है. गुरु नारायण रूप है, गुरु ज्ञान को घाट, सतगुरू वचन प्रताप सो, मन के मिटे उचाट."

शिक्षक दिवस पर, विशेष कर, छात्रों तथा अभिवावकों को इस बात पर विचार अवश्य करना चाहिए.

(लेखक हैदराबाद स्थित एक आई.टी. व इंजीनियरिंग सर्विसेज कम्पनी में निदेशक व स्तम्भकार हैं )

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