जीवन का सबसे बड़ा उपहार एक महान जीवन का सपना है. उम्र या युवावस्था का कालक्रम से लेना देना नहीं है, हम उतने ही नौजवान या बूढ़े हैं जितना हम महसूस करते हैं. - डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन
5 सितंबर को जन्मे आजाद भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को शिक्षक दिवस (Teachers' Day) के रूप में मनाया जाना आज भी उनके उल्लास से भरे विचारों की अहमियत को बयां करता है. हमारे शिक्षक और शिक्षा किसी दिन विशेष पर ही नहीं बल्कि जीवन की अंधकारमय स्थितियों में प्रवेश से बचाने या प्रवेश कर जाने पर रोशनी की भूमिका निभाते हैं.
मां होती है पहली शिक्षक
अमूमन हमारी मां पहली शिक्षक और हमारा घर पहला विद्यालय होता है, जहां हमें बोलने–चालने से लेकर तमाम मूल्यों, संस्कृति और तहजीब के बारे में बताया जाता है. मां का प्यार, पिता का दुलार, नानी–नाना, दादी–दादा की लोरियां, कहानियां और पहेलियां आदि संतुलित रूप में हमारे जीवन का नक्शा तैयार करते हैं और हमारा विद्यालय व परिवेश थोड़े बहुत परिष्करण के साथ भविष्य की इमारत की नींव रखते हैं.
आधुनिक दुनिया के बदलते हुए वक्त में जहां राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय, निजी और सार्वजनिक के बीच रेखा खींचना कठिन होता जा रहा है, ऐसे में ये मार्गदर्शन और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है.
लेकिन विडंबना यह है कि मौजूदा वक्त में जहां कमजोर हो रही पारिवारिक संस्थाएं वो नक्शा तैयार करने में फेल होती दिख रही हैं वहीं दूसरी ओर विद्यालयी शिक्षण व शिक्षक–शिक्षार्थियों के संबंधों की गरमाहट में भी कमी देखी जा रही है.
सोशल मीडिया का बढ़ता असर
अगर हाल के बदलावों के पीछे की वजहें तलाश की जाएं तो एक तरफ कोरोना ने जहां सभी तरह के संस्थाओं को बंद करने के लिए मजबूर किया और लोगों की वास्तविक दुनिया से दूरी बनी. वहीं दूसरी ओर ऑनलाइन क्लासेज के इकलौते विकल्प ने बच्चों को फोन से मित्रता का अवसर निर्मित कर वर्चुअल वर्ल्ड से नजदीकियां बढ़ाने का काम किया है.
आलम यह देखने को मिल रहा है कि हमारी युवा पीढ़ी के लिए ऑनलाइन गेम, शॉर्ट वीडियोज व सोशल मीडिया के अन्य माध्यमों पर समय बिताना कर्तव्य और अधिकार का दूसरा नाम बनकर उभरा है और शिक्षा व अन्य संबंधों का स्थान गौण हो गया है.
दोस्त और दोस्ती की परिभाषा भी विपरीत अर्थ लिए हुए दिख रही है, जो लाइक, शेयर और कमेंट बढ़ाने का साधन मात्र बनकर रह गए हैं.
अतः हमें इस पहलू पर गहन विचार–विमर्श कर उपर्युक्त समस्याओं से निजात पाने की ओर बढ़ना होगा ताकि हम अपनी वर्षों से चली आ रही शिक्षा और शिक्षार्थ की स्वस्थ परंपरा को भावी पीढ़ी को सही रूप में सौंप सकें.
गौर करने वाली बात यह है कि पठन–पाठन के जरिए या किसी प्रशिक्षित अथवा पेशेवर शिक्षक से ही शिक्षा प्राप्त हो सकती है ऐसा कहना पूरी तरह से उचित नहीं होगा.
हमसे जुड़ी हर सख्शियत, हर रिश्ते, हमारे नित्य प्रति के खट्टे– मीठे अनुभव, दैनिक जीवन में आने वाली अलग–अलग परिस्थितियां और मुश्किलें भी हमें अमूल्य सीख देकर जाती हैं.
जैसा कि संयुक्त अरब अमीरात (UAE) से संबंध रखने वाले उर्दू शायर सय्यद सरोश आसिफ लिखते हैं...
“मेरे उस्ताद ने अक्सर ये कहा है मुझसे,
वक्त से बढ़कर कोई उस्ताद नहीं हो सकता.”
हमारे जीवन से जुड़े हर एक शख्स को, हर उस लम्हे को, हर स्थिति-परिस्थिती को... जिनसे हमने कुछ नया सीखा उन्हें शुक्रिया और शिक्षक दिवस की दिली मुबारकबाद!
हमारी कल्पनाओं को पंख लगाकर,
उचित अनुचित में फर्क बताकर.
मेहनत करना आगे बढ़ना,
कुछ भी हो पीछे न मुड़ना.
गिरकर उठना फिर से संभालना,
तुमको है आसमान में उड़ना.
अनगिनत अनमोल अनोखी, नई नई चीजें सिखाकर,
बना दिया इंसान हमें, कभी रुलाकर कभी हंसाकर!
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