B Sai Praneeth Retirement: भारत के बैडमिंटन स्टार बी साई प्रणीत (B. Sai Praneeth) ने सोमवार, 4 मार्च को अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन से संन्यास की घोषणा की. इसके साथ ही विश्व चैंपियनशिप के ब्रॉन्ज मेडल विजेता प्रणीत के एक सफल करियर का अंत हो गया. भारतीय शटलर ने अपने करियर में सिंगापुर ओपन जीता और साथ ही टोक्यो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया.
हैदराबाद के 31 वर्षीय बैडमिंटन खिलाड़ी ने इंस्टाग्राम पर लिखा, ‘‘मिले जुले जज्बात के साथ मैं इन शब्दों के जरिये उस खेल को अलविदा कह रहा हूं जो 24 से अधिक साल से मेरे लिये सब कुछ रहा है.’’
इसके साथ ही उन्होंने कहा, "आज मैं नये अध्याय की शुरूआत कर रहा हूं और अपने अब तक के सफर के लिये अभिभूत और कृतज्ञ हूं.’’ ‘‘ बैडमिंटन मेरा पहला प्यार और साथी रहा है. इसने मेरे वजूद को मायने दिये. जो यादें हमने साझा की, जो चुनौतियां हमने पार की, वे सदैव मेरे ह्र्दय में रहेंगी.’’
बी साई प्रणीत रिटायरमेंट के बाद कोच के रूप में नई पारी की शुरुआत करेंगे. वो अगले महीने अमेरिेका में ट्रायंगल बैडमिंटन अकादमी के मुख्य कोच के रूप में जुड़ेंगे.
उन्होंने पीटीआई से कहा, ''मैं अप्रैल के मध्य में शामिल होऊंगा. मैं क्लब का मुख्य कोच बनूंगा, इसलिए मैं वहां सभी खिलाड़ियों की देखरेख करूंगा. बेशक, एक बार जब मैं वहां पहुंचूंगा, तो हम इके बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे.''
बी साई प्रणीत का करियर
भारतीय शटलर बी साई प्रणीत का जन्म 10 अक्टूबर 1992 को हैदराबाद में हुआ. प्रणीत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में तब आए जब उन्होंने साल 2010 में 18 साल की उम्र में मैक्सिको में बीडब्ल्यूएफ जूनियर विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता. इसके बाद साल 2013 में उन्होंने थाईलैंड ओपन ग्रां प्री गोल्ड टूर्नामेंट के पहले राउंड में 2003 के ऑल इंग्लैंड चैम्पियन मलेशिया के मुहम्मद हाफिज हाशिम को हराया था.
वर्ल्ड चैम्पियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर इतिहास रचा था
इसके बाद साई प्रणीत ने 2019 के वर्ल्ड चैम्पियनशिप सीजन में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर इतिहास रचा था. और वह 36 साल बाद यह उपलब्धि हासिल करने वाले पहले भारतीय बने थे. इससे पहले साल 1983 में प्रकाश पादुकोण ने ब्रॉन्ज मेडल जीता था.
साल 2019 शटलर के लिए बेहद खास रहा था. उन्होंने इस साल ब्रॉन्ज मेडल भी जीता और उन्हें अर्जुन अवार्ड से भी सम्मानित किया गया.
अगले साल 2020 के एशियन चीम चैंपियनशिप में उन्होंने ब्रांज मेडल जीता. हालांकि इसके बाद वह कोई बड़ा मेडल जीतने में असफल रहे.
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