आज सायना नेहवाल का जन्मदिन है. सायना 30 की हो रही हैं. डेढ़ साल पहले ही वो अपनी जिंदगी के सबसे खूबसूरत सफर पर अपने हमसफर के साथ निकली थीं. ये हमसफर कोई और नहीं बल्कि बैडमिंटन कोर्ट के उनके पुराने साथी और भारतीय बैडमिंटन स्टार पी कश्यप थे. लेकिन अब वो अपनी जिंदगी के शायद सबसे निर्णायक मोड़ पर हैं.
जन्मदिन जश्न मनाने का मौका तो देता ही है, साथ ही अपने आने वाले कल के रास्ते को सही तरीके से तैयार करने के लिए सोचने का वक्त भी होता है.
हम कोई ना कोई ‘रेजोल्यूशन’ लेते हैं. अपनी पुरानी गलतियों को याद कर उन्हें दोबारा ना दोहराने का प्रण करते हैं. नई गलतियों से बचने की रणनीति बनाते हैं. आज सायना नेहवाल के दिलो-दिमाग से भी इन बातों का राब्ता होगा.
उन्हें अब हर वो सपना याद आ रहा होगा जो पूरा हुआ और जो नहीं पूरा हुआ. हाल ही में प्रतिष्ठित ऑल इंग्लैंड ओपन चैंपियनशिप में सायना नेहवाल पहले ही दौर में बाहर हो गई थीं.
पिछले कुछ महीनों में साइना की स्थिति कुछ ऐसी ही रही है. वो ज्यादातर टूर्नामेंट के पहले-दूसरे दौर से आगे बढ़ने के लिए संघर्ष करती रही हैं. उनके फैंस उनको जल्द ही अच्छी फॉर्म में लौटते हुए देखना चाहेंगे.
बीते करीब डेढ़ दशक के सायना नेहवाल के करियर में उन्होंने बड़ी ‘फैन फॉलोइंग’ हासिल की है. उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि लंदन ओलंपिक्स का ब्रॉन्ज मेडल है. अब एक बार फिर उनकी अगली मंजिल 2020 ओलंपिक ही है.
सायना की कामयाबी की उड़ान
दरअसल, सायना का अब तक का सफर सपनों के सच होने की कहानी है. वो सपना जो सायना नेहवाल ने देखा था. उनके माता-पिता ने देखा था. सायना के कोच पुलेला गोपीचंद ने देखा था. वो सपना जो हिंदुस्तान के करोड़ो खेल प्रेमियों ने देखा था.
एक वक्त था जब सायना नेहवाल हैदराबाद की पुलेला गोपीचंद एकेडमी में सुबह के 6 बजे पहुंच जाती थीं. इनडोर कोर्ट में सायना और उनके जैसे और भी कई खिलाड़ी पसीना बहाते थे. कोर्ट के चक्कर लगाने के बाद नेट पर प्रैक्टिस शुरू होती थी. गोपी की पैनी निगाहों से कोई बचता नहीं, जिससे गलती हुई गोपी अगले कुछ सेकेंड्स में उसके बगल में खड़े होते थे.
सायना नेहवाल ने इसी कोर्ट से निकलकर कामयाबी की उड़ान भरी है. शुरुआत बीजिंग ओलंपिक से हुई थी, जहां क्वार्टर फाइनल में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. हालाकिं इस मुकाम तक पहुंचने वाली भी वो देश की पहली खिलाड़ी थीं. हार के बाद सायना ने अपने कोच पुलेला गोपीचंद से कहा कि उन्हें तुरंत हिंदुस्तान लौटना है. 18 साल की सायना के दिल में ये नहीं आया कि पहली बार ओलंपिक्स में आई हैं, तो थोड़ा घूम-फिर लें. उन्हें हार का गम नहीं बल्कि गुस्सा था.
जब ओलंपिक जीत सायना ने रचा इतिहास
अगली बार लंदन ओलंपिक्स था. साल था 2012. सायना ने बहुत मेहनत की. बावजूद इसके वो गोल्ड और सिल्वर मेडल की रेस से बाहर हो गईं. 4 अगस्त 2012 की तारीख थी. ब्रॉन्ज मेडल जीतने का सायना का दावा बरकरार था. ब्रॉन्ज मेडल के लिए उनका मुकाबला चीन की वांग जिन से था. पहले गेम में सायना 21-18 से हार गईं.
लगा कि ओलंपिक का ब्रॉन्ज मेडल भी हाथ से फिसल जाएगा, लेकिन दूसरे गेम में स्कोरलाइन 1-0 ही थी जब चीन की खिलाड़ी कोर्ट में बैठ गईं. उन्हें पैर में जबरदस्त तकलीफ थी. उन्होंने मैच से बाहर होने का फैसला किया. उनके इस फैसले ने इतिहास रच दिया. भारतीय बैडमिंटन के इतिहास में सायना नेहवाल ओलंपिक मेडल जीतने वाली पहली खिलाड़ी बन गईं.
यही वो दिन था जब उनके कोच गोपीचंद ने मेरे साथ एक इंटरव्यू में कहा था कि,
“सायना ने वो सपना पूरा कर दिया जो उन्होंने अपने लिए देखा था. आज अगर मैं मर भी जाऊं तो मुझे कोई अफसोस नहीं होगा”
सायना ने उस रोज भी इच्छा जाहिर की थी कि आने वाले ओलंपिक में वो अपने मेडल का रंग बदलना चाहेंगी. रियो में उनकी ये ख्वाहिश पूरी नहीं हुई. हां, लेकिन रियो में पीवी सिंधु ने सिल्वर मेडल जीतकर देश का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया. मत भूलिए कि आज देश में बैडमिंटन को लेकर जो दीवानगी है उसका श्रेय सायना नेहवाल को जाता है.
किसी भी खेल की लोकप्रियता उसके स्टार्स से बनती है. सायना ने 2018 में एशियन गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीता जबकि कॉमनवेल्थ गेम्स का गोल्ड मेडल उनकी झोली में आया. हालांकि इसके बाद से उनके प्रदर्शन में निरंतरता नहीं रही है और चोट के कारण भी वो परेशान रही हैं.
इसके बावजूद अपने जुझारूपने के लिए प्रसिद्ध सायना टोक्यो ओलंपिक 2020 में इतिहास रचने पर नजरें जमाए हुए हैं.
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