बैडमिंटन की दुनिया का सबसे बड़ा इवेंट वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप स्विट्जरलैंड के बासेल में शुरू हो चुका है. एक हफ्ते तक चलने वाले इस टूर्नामेंट में पुरुष और महिला, दोनों वर्ग में दुनिया के दिग्गज शटलर नजर आएंगे.
1977 में शुरू हुई ये वर्ल्ड चैंपियनशिप सिर्फ ओलंपिक खेल वाले साल को छोड़कर हर साल आयोजित की जाती है. बासेल में हो रही चैंपियनशिप इस टूर्नामेंट का 25वां संस्करण है.
चीन का दबदबा
वर्ल्ड चैंपियनशिप में हमेशा से ही चीन का दबदबा रहा है. चैंपियनशिप के 42 साल के इतिहास में 182 मेडल के साथ चीन सबसे सफल देश रहा है. इनमें से चीन के शटलरों ने 65 गोल्ड हासिल किए हैं.
वहीं बैडमिंटन के महान खिलाड़ियों में शामिल चीन के लिन डैन इस चैंपियनशिप के सबसे सफल खिलाड़ियों में से हैं. डैन ने पुरुषों के सिंगल्स में 5 गोल्ड मेडल अपने नाम किए हैं. वहीं महिलाओं के सिंगल्स वर्ग में स्पेन की कैरोलिना मरीन 3 गोल्ड के साथ सबसे आगे हैं. जबकि चीन की झाओ युनलेई ने महिला डबल्स और मिक्स्ड डबल्स में सबसे ज्यादा 5 गोल्ड अपने नाम किए हैं.
अच्छा नहीं रहा भारत का इतिहास
भारत के लिए ये टूर्नामेंट कभी भी ज्यादा सफलता नहीं ला सका है और भारतीय खिलाड़ी आमतौर पर शुरुआती या बीच की स्टेज में आकर लड़खड़ाते रहे हैं. भारत ने इस टूर्नामेंट में अभी तक सिर्फ 8 मेडल अपने नाम किए हैं. इसमें भी किसी भी भारतीय खिलाड़ी ने अभी तक गोल्ड मेडल अपने नाम नहीं किया है.
भारत को पहला मेडल टूर्नामेंट के तीसरे संस्करण में मिला था. 1983 के कोपेनहेगेन वर्ल्ड चैंपियनशिप में भारत के सबसे बड़े बैडमिंटन स्टार प्रकाश पादुकोण ने पुरुष सिंगल्स का ब्रॉन्ज मेडल जीता था. हालांकि इसके बाद से आज तक भारत को पुरुष वर्ग में एक भी मेडल हासिल नहीं हुआ है. यानी भारत के 8 मेडल में से 7 महिलाओं ने हासिल किए हैं.
1983 के बाद मेडल के लिए भारत को लंबे वक्त तक इंतजार करना पड़ा. यहां तक कि ऑल इंग्लैंड जैसा टूर्नामेंट जीतने वाले पुलेला गोपीचंद जैसे दिग्गज भी इस टूर्नामेंट में सफल नहीं हो सके. 21वीं सदी के दूसरे दशक में भारत को इस टूर्नामेंट में ज्यादा सफलता मिली.
2011 की चैंपियनशिप में ज्वाला गुट्टा और अश्विनी पोनप्पा ने भारत को 28 साल बाद मेडल का स्वाद चखाया. इस जोड़ी ने महिलाओं के डबल्स में भारत को ब्रॉन्ज मेडल दिलवाया.
हालांकि इसके बाद भारत की दो सबसे बड़ी स्टार पीवी सिंधु और साइना नेहवाल ने भारत की ओर से चुनौती पेश की और कई बार मेडल के करीब आकर चूक गए.
पीवी सिंधु सबसे सफल भारतीय खिलाड़ी रही हैं. सिंधु ने 2013 और 2014 में महिलाओं के सिंगल्स का ब्रॉन्ज अपने नाम किया था. वहीं 2017 और 2018 में लगातार 2 साल सिंधु फाइनल में आकर गोल्ड से चूक गईं और सिल्वर से संतोष करना पड़ा.
सिंधु के अलावा भारत की दूसरी स्टार साइना नेहवाल भी चैंपियन बनने के बेहद करीब आई थीं. साइना इस टूर्नामेंट के इतिहास में पुरुष-महिला दोनों वर्ग मिलाकर भारत के लिए सिल्वर जीतने वाली पहली खिलाड़ी थीं. साइना को 2015 के फाइनल में स्पेन की कैरोलिना मरीन ने हराया था. वहीं 2017 में साइना को ब्रॉन्ज से संतोष करना पड़ा था.
फिर सिंधु-साइना से ही उम्मीदें
भारत की ओर से इस बार पुरुष सिंगल्स में 4 खिलाड़ी, जबकि महिला सिंगल्स में सिर्फ 2 ही खिलाड़ी हैं. डबल्स में भारतीय टीम की उम्मीदें न के बराबर ही हैं.
भारतीय अभियान की जिम्मेदारी उन्हीं बड़े चेहरों पर है जो पिछले कई सालों से बैडमिंटन की मशाल थामे हुए हैं. महिलाओं के सिंगल्स में एक बार फिर सारा दारोमदार पीवी सिंधु और साइना नेहवाल पर रहेगा.
वहीं पुरुषों में शीर्ष भारतीय खिलाड़ी किदांबी श्रीकांत से उम्मीदें रहेंगी. हालांकि ज्यादातर भारतीय खिलाड़ियों की तरह श्रीकांत के लिए भी 2019 अभी तक अच्छा नहीं गुजरा है और किसी भी बड़े टूर्नामेंट में वो मेडल जीतने में नाकाम रहे हैं.
उनके अलावा भारत की ओर से एचएस प्रणॉय, बी साई प्रणीत और समीर वर्मा प्रतियोगिता में उथरे हैं.
पीवी सिंधु
भारत की सबसे बेहतरीन बैडमिंटन खिलाड़ी और वर्ल्ड चैंपियनशिप में सबसे सफल शटलर. सिंधु ने इस चैंपियनशिप में भारत को सबसे ज्यादा 4 मेडल दिलाए हैं.
पिछले 5 चैंपियनशिप में से 4 में सिंधु ने ये मेडल हासिल किए हैं. इसमें भी लगातार पिछली 2 बार से फाइनल में उन्हें हार का सामना करना पड़ा है. ऐसे में सिंधु अपने प्रदर्शन को और बेहतर कर आखिरी बाधा को पार करना चाहेगी.
हालांकि ये इतना आसान नहीं होने वाला. इसका कारण है सिंधु की 2019 की फॉर्म. इस साल सिंधु अभी तक एक भी खिताब नहीं जीत सकी है.
ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन के पहले ही राउंड में सिंधु बाहर हो गई थीं. सिंधु सिर्फ इंडोनेशिया ओपन सुपर सीरीज के ही फाइनल में खेलने का मौका मिला, जिसमें उन्हें जापान की अकाने यामागुची ने हरा दिया था. इसके बाद जापान ओपन में भी क्वार्टर फाइनल में यामागुची ने ही सिंधु को हराकर बाहर कर दिया था.
हालांकि सिंधु को पहले राउंड में बाई मिली है और उनके सामने दूसरे राउंड में भी मजबूत खिलाड़ी नहीं है. ऐसे में सिंधु के पास मौका है कि वो 2019 की अभी तक की खराब फॉर्म को पीछे छोड़ते हुए इस टूर्नामेंट के आखिरी दौर तक पहुंचें.
साइना नेहवाल
सिंधु के बाद अगर भारत की कोई सबसे बड़ी उम्मीद है तो वो 2012 ओलंपिक की ब्रॉन्ज मेडलिस्ट साइना नेहवाल हैं. 2015 वर्ल्ड चैंपियनशिप की सिल्वर मेडलिस्ट साइना 2017 में तीसरे नंबर पर रही थीं.
हालांकि साइना ने इस साल की शुरुआत में इंडोनेशिया सुपर सीरीज का खिताब अपने नाम किया था जब चोट के कारण स्पेन की कैरोलिना मरीन फाइनल से बाहर हो गई थीं.
हालांकि सिंधु की ही तरह साइना के लिए भी 2019 बहुत अच्छा नहीं रहा है. साइना पिछले कुछ समय से चोट से परेशान रही हैं. 2018 में कॉमनवेल्थ का गोल्ड जीतने वाली साइना को 2019 में चोट से जूझना पड़ा है. इसके चलते साइना को कुछ बड़े टूर्नामेंट्स से अपना नाम वापस लेना पड़ा.
हालांकि चोट के बाद साइना ने थाईलैंड ओपन में वापसी जरूर की लेकिन उसमें भी वो पहले राउंड में ही बाहर हो गई. इस बार साइना को भी पहले राउंड में बाई मिली है. हालांकि अगर साइना और सिंधु इस बार आगे बढ़ती हैं तो दोनों सेमीफाइनल में एक-दूसरे के आमने-सामने होंगी.
किदांबी श्रीकांत
2017 में 4 सुपर सीरीज जीतकर हर भारतीय की जुबान पर छा चुके किदांबी श्रीकांत पुरुषों में भारत के सबसे ऊंची रैंकिंग वाले खिलाड़ी हैं. नंबर 1 की रैंकिंग तक पहुंचने वाले भारत के इकलौते पुरुष बैडमिंटन खिलाड़ी श्रीकांत के लिए पिछला डेढ़ साल बहुत अच्छा नहीं गुजरा है. खासतौर पर 2019 तो बिल्कुल भी उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा.
2017 में बैडमिंटन के कई दिग्गजों को हराने वाले किदांबी 2019 में कई नए और गैर-वरीयता वाले खिलाड़ियों से भी हारते दिखे हैं. किदांबी का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन इस दौरान मार्च में हुआ इंडिया ओपन था, जहां वो फाइनल तक तो पहुंचे लेकिन आखिर में विक्टर एक्सेलसन से हार कर खिताब से चूक गए.
किदांबी का वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है, और वो कभी भी क्वार्टर फाइनल से आगे नहीं पहुंच पाए हैं. ऐसे में मौजूदा फॉर्म और पिछला रिकॉर्ड तो उनके पक्ष में नहीं है, लेकिन भारत की उम्मीदों के झंडाबरदार वो ही रहेंगे. उन्होंने शुरुआत भी अच्छी की है और अपना पहला राउंड का मैच जीत लिया है.
बी साई प्रणीत
27 साल के प्रणीत भी श्रीकांत की तरह 2017 में सुपर सीरीज जीतकर सबकी नजरों में आए थे. हालांकि उसके बाद से वो भी बड़े मौकों पर नाकाम रहे हैं.
प्रणीत भले ही कोई भी खिताब नहीं जीत सके हों, लेकिन उन्होंने अपने से ज्यादा मजबूत प्रतिद्वंदियों के खिलाफ खेलते हुए बेहतरीन खेल दिखाया है. ये ही प्रणीत के लिए आत्मविश्वास का काम कर सकता है.
डबल्स में हालांकि भारत के लिए कोई खास उम्मीद नहीं है. हाल ही में थाईलैंड ओपन में पुरुषों का डबल्स खिताब जीतने वाले सात्विक रेड्डी और चिराग शेट्टी की जोड़ी को चोट के कारण टूर्नामेंट से बाहर होना पड़ा.
ऐसे में भारतीय उम्मीदों का दारोमदार इन्हीं खिलाड़ियों पर खास तौर पर होगा.
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