भारत की युवा बॉक्सर निकहत जरीन ने एक बार फिर ट्रायल का मुद्दा उठा दिया है. निकहत ने खेल मंत्री को चिट्ठी लिख निष्पक्ष ट्रायल की मांग की है. निकहत की इस चिट्ठी से एक बार फिर बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (बीएफआई) के तौर तरीकों पर सवाल उठने लगे हैं. सवाल उठ रहे हैं कि क्यों सबके लिए नियम एक से नहीं है? क्यों चुनिंदा खिलाड़ियों को ही तवज्जो दी जा रही है? और सबसे बड़ा सवाल- नए खिलाड़ियों को लेकर ऐसे रुख से कैसे भविष्य में मैरी कॉम जैसे चैंपियन मिल पाएंगे?
क्या है विवाद?
हाल ही में हुई महिला वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप से पहले फेडरेशन ने तय किया था कि जो भी बॉक्सर चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचेगा, उसे फरवरी 2020 में चीन में होने वाले ओलंपिक क्वालीफायर के लिए सीधे एंट्री मिलेगी. इस लिहाज से उलान उदे में सिल्वर जीतने वाली 19 साल की मंजू रानी को सीधी एंट्री मिल गई है.
लेकिन अब फेडरेशन ने नियम बदल दिया है. नई रिपोर्ट्स के मुताबिक और खुद निकहत ने जो दावा किया है उसके मुताबिक नए नियम के तहत चैंपियनशिप में कोई भी मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों को ट्रायल नहीं देना होगा. इसका फायदा 6 बार की वर्ल्ड चैंपियन मैरी कॉम, जमुना बोरो और लवलीना बोरगोहेन को पहुंचता है, जिन्होंने चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल जीते.
निकहत जरीन ने नियम में अचानक हुए इस बदलाव पर ही सवाल उठाया है. निकहत 51 किलोग्राम कैटेगरी में बॉक्सिंग करती है. इसी कैटेगरी में भारत की दिग्गज बॉक्सर मैरी कॉम भी हैं. जरीन की मांग है कि उन्हें ट्रायल के जरिए खुद को साबित करने का मौका दिया जाए.
दरअसल पिछले 2 महीने के भीतर ये दूसरी बार है, जब निकहत ने ट्रायल की मांग को लेकर सवाल खड़े किए हैं. इससे पहले अगस्त में जब वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए फेडरेशन ने ट्रायल आय़ोजित किए थे, तो 51 किलो कैटेगरी के ट्रायल को ठीक उसी दिन रद्द कर दिया और मैरी कॉम को सीधी एंट्री दे दी.
तब निकहत का मुकाबला मैरी कॉम से होना था. इस तरह अचानक ट्रायल रद्द करने पर निकहत ने फेडरेशन से सफाई मांगी थी
सभी के लिए एक नियम क्यों नहीं?
सबसे पहला सवाल तो ये ही है कि सभी खिलाड़ियों पर एक सा नियम क्यों लागू नहीं होता? अगर अगस्त में हुए ट्रायल में बाकी सभी कैटेगरी में बाउट्स हुई थीं, तो सिर्फ 51 किलो और 69 किलो की बाउट क्यों रद्द की गई? इस पर निकहत ने उस वक्त भी सवाल उठाया था. फेडरेशन ने अपनी सफाई में और निकहत के जवाब में दो बातें कहीं-
पहला, दोनों कैटेगरी में बॉक्सर मैरी और लवलीना का हालिया प्रदर्शन और फ़ॉर्म शानदार थी. साथ ही मैरी ने इस कैटेगरी में निकहत समेत सभी ब़ॉक्सरों को बीते महीनों में हराया था. दूसरा, निकहत अभी युवा बॉक्सर हैं. उनके साथ उनकी उम्र है इसलिए वो उसको ‘बचाने’ (प्रोटेक्ट) के लिए ये सब कर रहे हैं.
इसके अलावा एक और बात है जो बराबरी का मुद्दा उठाती है. फेडरेशन ने जो नियम बनाया था उसके तहत पुरुष बॉक्सिंग में वर्ल्ड चैंपियनशिप में कोई भी मेडल जीतने वाले बॉक्सरों को क्वालीफाइंग इवेंट में सीधी जगह मिलेगी.
ऐसे में ये सवाल खड़ा होता है कि क्यों नहीं पहले से ही ये नियम महिला और पुरुष बॉक्सरों के लिए एक सा बनाया गया? अगर पहले से ही नियमों में स्पष्टता होती तो ये विवाद नहीं होता.
ट्रायल से परहेज क्यों?
इस ट्रायल विवाद में एक बात जो सबसे ज्यादा कही गई और जिसका जिक्र खुद निकहत ने अपनी चिट्ठी में भी किया, वो ये कि बड़े से बड़े चैंपियन खिलाड़ियों को भी ट्रायल से गुजरना पड़ा है. ओलंपिक में दर्जनों गोल्ड मेडल जीत चुकी अमेरिका के पूर्व तैराक माइकल फेल्प्स को भी ओलंपिक में हिस्सा लेने के लिए ट्रायल देना पड़ा.
इतना दूर जाने के बजाए अपने देश में ही देखें. 2 बार के ओलंपिक मेडलिस्ट और एक बार वर्ल्ड चैंपियन रह चुके पहलवान सुशील कुमार को भी हर बार ट्रायल से गुजरना पड़ा.
भले ही अपने अलग कारणों से सुशील के ट्रायल विवादास्पद रहे हों, लेकिन उन्होंने इस प्रक्रिया का पालन किया. यहां तक कि सुशील ने कहा भी कि जो नियम बनाए गए हैं, वो उनसे पार नहीं जा सकते.
ऐसे में मैरी कॉम या अन्य किसी खिलाड़ी को विशेष तवज्जो दिए जाने का क्या मतलब? मैरी की काबिलियत, उनके रिकॉर्ड्स और उनकी महानता पर कोई संदेह नहीं है, लेकिन कोई भी खिलाड़ी कभी भी खेल से बड़ा नहीं हो सकता.
यहां तक कि वर्ल्ड चैंपियन रह चुकी बॉक्सर सरिता देवी भी उसी तरह ट्रायल की प्रक्रिया से गुजरी थीं, जैसे बाकी बॉक्सर.
पुराने रिकॉर्ड सफलता की गारंटी नहीं
इसमें कोई दोराय नहीं, कि अगर मैरी ओलंपिक में जाती हैं, तो भारत की मेडल उम्मीदों में उनका नाम भी निश्चित तौर पर होगा. उनका अनुभव और उनकी प्रतिभा किसी से छुपी नहीं है.
वर्ल्ड चैंपियनशिप में 6 गोल्ड समेत 8 मेडल, ओलंपिक में ब्रॉन्ज, एशियन और कॉमनवेल्थ गेम्स में भी मेडल. ये मैरी कॉम का मोटा-मोटा करियर है, जो अपने-आप में उनकी सफलता की कहानी बताता है. लेकिन जब भी कभी कोई खिलाड़ी रिंग में, मैदान में या मैट में उतरता है तो ये रिकॉर्ड जीत की गांरटी नहीं बनते.
इस बारे में भारत के इकलौते ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट (इंडिविजुअल इवेंट) अभिनव बिंद्रा ने जरूरी बात कही. उन्होंने कहा-
“मैं मैरी कॉम का बेहद सम्मान करता हूं. सच ये है कि एक एथलीट का जीवन खुद को साबित करना है. ये साबित करना कि हम आज भी उतने ही अच्छे हैं, जितने कल थे. कल से भी बेहतर हैं. भविष्य के खिलाड़ियों से भी बेहतर हैं. खेल में बीता हुआ कल कोई मायने नहीं रखता.”अभिनव बिंद्रा
ये बात इसलिए भी अहम है क्योंकि हमने देखा है कि कैसे अनुभवी और अच्छी फॉर्म वाले खिलाड़ी भी बड़े स्टेज पर नाकाम हो सकते हैं. 2012 के ओलंपिक ब्रॉन्ज मेडलिस्ट पहलवान योगेश्वर दत्त 2016 ओलंपिक के पहले ही दौर में बाहर हो गए थे.
इसी तरह सुशील कुमार 2018 के कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने के महज 4 महीने के भीतर ही एशियन गेम्स में सिर्फ 80 सेकेंड में हारकर पहले दौर में ही बाहर हो गए.
खुद मैरी का ही उदाहरण है. 2012 में ओलंपिक का ब्रॉन्ज और 2014 एशियन गेम्स का गोल्ड जीतने वाली मैरी 2016 ओलंपिक के लिए क्वालीफाई तक नहीं कर पाई.
कैसे मिलेगी नई मैरी?
अगर 22 साल की लड़की को ये कहकर मौका नहीं दिया जाएगा कि वो अभी युवा है और उसे बचाया जा रहा है, तो आने वाले साल में भारत को अगला चैंपियन कैसे मिलेगा?
मैरी ने जब पहली बार वर्ल्ड चैंपियनशिप में हिस्सा लिया था तो वो सिर्फ 18 साल की थीं और उन्होंने सिल्वर जीता. यहां तक कि 22 की होने से पहले ही मैरी ने एक गोल्ड और एक सिल्वर भी जीत लिया था.
ऐसे में अगर मैरी जैसे अनुभवी बॉक्सर के खिलाफ युवा बॉक्सर को भिड़ने का मौका मिले, तो ये नए बॉक्सर के लिए ही बेहतर है. किसी भी खिलाड़ी को अपनी कमियों और अपनी मजबूतियों का पता तब ही चल पाएगा, जब वो अपने से बेहतर खिलाड़ी से टकराएगा.
ये स्थिति नए और अनुभवी दोनों बॉक्सरों के प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए अहम है. साथ ही भारतीय बॉक्सिंग आने वाले वक्त के लिए नए खिलाड़ियों परखने और तैयार करने का मौका मिलेगा, जो भारतीय बॉक्सिंग के लिए बेहतर रहेगा.
यहां पर निशानेबाजी का उदाहरण एकदम फिट बैठता है. रियो ओलंपिक में भारतीय निशानेबाजों के बेहद खराब प्रदर्शन के बाद सिस्टम में बड़ा बदलाव हुआ और युवा निशानेबाजों को भी सीनियर निशानेबाजों के साथ टकराने का मौका मिला.
इसका ही नतीजा है कि पिछले करीब 2 साल से दुनियाभर के अलग-अलग इवेंट्स में भारतीय निशानेबाजों ने शानदार प्रदर्शन किया है और इसमें नए और युवा निशानेबाजों का भी बड़ा योगदान है.
मैरी नहीं, फेडरेशन है जिम्मेदार
मौजूदा विवाद के पीछे मैरी कॉम नहीं बल्कि बॉक्सिंग फेडरेशन जिम्मेदार है. ये फेडरेशन की गलती है कि वो एक बॉक्सर पर जरूरत से ज्यादा निर्भर है और इसके चलते नए खिलाड़ियों को मौका नहीं दे रहा है.
मैरी कॉम को मेडल की गारंटी मानकर फेडरेशन उनको फिट करने के लिए मनमुताबिक नियमों में बदलाव कर रही है. अगर फेडरेशन ने पहले ही नियमों को स्पष्ट करके खुद उनका सही से पालन किया होता, तो मैरी कॉम समेत बाकी बॉक्सरों इन सब सवाल-जवाबों में नहीं पड़ते.
वरिष्ठ खेल पत्रकार जी राजारमन के मुताबिक मौजूदा विवाद में फेडरेशन के प्रमुख अजय सिंह बहुत हद तक जिम्मेदार हैं, क्योंकि पिछले कुछ महीनों में किसी भी सेलेक्शन बैठकों में मौजूद नहीं रहे. ऐसे में पुरुष और महिला बॉक्सरों को ओलंपिक क्वालीफाइंग इवेंट में भेजे जाने के लिए अलग अलग नियम होने की उन्हें जानकारी नहीं रही और अब वो नियमों को बदलने की बात कर रहे हैं.
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