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Mbappe, Vini Jr ...फुटबॉल में फिसड्डी अफ्रीका ने फ्रांस और यूरोप को बनाया ताकतवर

FIFA World Cup 2022: फ्रांस के 61% प्लेयर्स अफ्रीकी मूल के,टैलेंट का पलायन कैसे हो रहा?

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कतर में शुरू फीफा वर्ल्ड कप (FIFA World Cup 2022) अपने उफान पर है. अबतक के मुकाबलों में हमने कई बड़े उलटफेर देखें वहीं ब्राजील, फ्रांस और पुर्तगाल जैसी टॉप टीमें अपना दबदबा भी दिखा रही हैं. भारतीय दर्शक भी एक-एक मैच को करीब से फॉलो कर रहे हैं. हालांकि एक कसक और एक चाह दिल में जरूर रहती है कि भारतीय टीम भी कभी इस टूर्नामेंट का भाग बने.

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आपको यह जानकार हैरानी होगी कि कोई भी अफ्रीकी देश फीफा वर्ल्ड कप के इतिहास में आजतक सेमीफाइनल तक नहीं पहुंचा है. इससे पहले केवल सेनेगल, कैमरून और घाना ही क्वार्टर फाइनल में पहुंचे हैं. जबकि अफ्रीकी मूल के कई खिलाड़ी ऐसे हैं जो चैंपियन टीमों का हिस्सा रहे हैं. 2018 वर्ल्ड कप जीतने वाली फ्रांस की टीम में 23 प्लेयर्स में से 14 प्लेयर्स अफ्रीकी मूल के थे जबकि इस बार फ्रांस के 26 प्लेयर्स के स्क्वाड में ऐसे 16 प्लेयर हैं.

यहां हम आपको एक-एक बताते है कि अफ्रीकी मूल के ये प्लेयर्स यूरोपीय देशों की नेशनल टीम का हिस्सा कैसे बनते हैं और क्या इस पूरे स्ट्रक्चर में अफ्रीकी देशों के बेस्ट टैलेंट का पलायन हो रहा है?

FIFA का नियम

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फुटबॉल की गवर्निंग बॉडी FIFA एक प्लयेर को किसी भी ऐसे देश की ओर से खेलने की अनुमति देती है, जिससे उसका सीधा संबंध है- यानी कोई भी एक प्लेयर उन देशों से खेल सकता है जहां वो या उनके माता-पिता या उसके दादा-दादी/नाना-नानी पैदा हुए हों. प्लेयर जिस देश के लिए खेलना चाहता है, उसके पास उस देश की नागरिकता होनी चाहिए.

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FIFA ने 2020 में नियमों में संशोधन करके प्लेयर्स के एक देश से दूसरे देश की टीम में ट्रांसफर को आसान कर दिया. अब एक प्लेयर के लिए अपनी नेशनल टीम को बदलना संभव है, भले ही उसने किसी और देश के लिए सीनियर लेवल पर मैच खेले हों. अगर कोई प्लेयर टीम A में खेलने के बाद टीम B के लिए खेलना चाहता है तो, इसके लिए 4 शर्त हैं:

  1. उस प्लेयर ने जब टीम A के लिए ऑफिसियल मैच खेला हो तब उसके पास टीम B वाले देश की नागरिकता हो.

  2. प्लेयर ने 21 वर्ष की आयु से पहले टीम A के लिए तीन से अधिक कॉम्पिटिटिव सीनियर मैच नहीं खेले हों

  3. प्लेयर ने वर्ल्ड कप, यूरोपीय चैम्पियनशिप, कोपा अमेरिका जैसे किसी आधिकारिक टूर्नामेंट के फाइनल स्टेज में टीम A की ओर से न खेला हो.

  4. टीम A के लिए सीनियर लेवल पर मैच खेले कम से कम 3 साल का वक्त गुजर गया हो.

फीफा का यह नियम अफ्रीकी मूल के उस खिलाड़ियों के लिए यूरोपीय देशों के लिए खेलना का अच्छा मौका होता है, जहां की नागरिकता उनके पास होती है. यह स्थिति उन खिलाड़ियों के पास होती है जो कई साल से यूरोपीय लीग में खेल रहे होते हैं और इस दौरान वे उस देश की नागरिकता ले लेते हैं.

इसके उलट फीफा का यह नियम उन खिलाडियों के लिए अपने मूल अफ्रीकी देश की ओर से भी खेलने का मौका देता है जो यूरोपीय देशों की सीनियर टीम में जगह नहीं बना पाते. इसी नियम की मदद से फ्रांस के 37 प्लेयर अफ्रीका के 8 देशों की ओर से वर्ल्ड कप 2022 में शिरकत कर रहे हैं. ट्यूनीशिया, सेनेगल और कैमरून में क्रमशः 10, 9 और 8 फ्रांसीसी प्लेयर खेल रहे हैं जो असल में अफ्रीकी मूल के ही हैं.

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माता-पिता ने किया पलायन, बच्चों को मिली नागरिकता

दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोपीय देशों की इंफ्रास्ट्रक्चर बड़े स्तर पर तबाह हो चुकी थी और ऐसे में यहां की सरकारों ने पुनर्निर्माण के लिए अफ्रीकी देशों में मौजूद अपने उपनिवेशों से कामगारों को बुलाना शुरू किया. ऐसा करने में फ्रांस किसी भी ने यूरोपीय देश से आगे था और इसके बाद जर्मनी का नम्बर था. आगे जब आर्थिक विकास हुआ तब फिर इन देशों को अफ्रीकी कामगारों की जरूरत हुई.

ये अफ्रीकी कामगार इन देशों के बड़े शहरों के बाहरी इलाके में बसे (सब-अर्बन एरिया) और धीरे धीरे यहां के नागरिक बन गए. इनके बच्चे और फिर उनके भी बच्चों ने फिर फुटबॉल के पिच पर इन देशों का प्रतिनिधित्व किया.

यूरोपीय देशों में अच्छी सुविधा और स्काउट की भूमिका

इंग्लिश प्रीमियर लीग, ला-लीगा, बुंडेसलीगा और लीग-1 जैसे यूरोपीय लीग की बड़ी क्लब टीमें अफ्रीकी देशों में अपने स्काउट भेजती हैं. गरीब देशों के इन उभरते खिलाड़ियों के पास ऐसे में मौका होता है कि वे इन देशों में अपनी कबिलियत को दिखा सके, बड़ी टीमों के लिए खेल सके. छोटी उम्र में क्लब एकेडमी में खेलने आये ये अफ्रीकी बच्चे आगे कई मामलों में उसी देश की नागरिकता ले लेते हैं और इंटरनेशनल लेवल पर उस यूरोपीय देश का प्रतिनिधित्व करते हैं.

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लेकिन….

अब सोचिए कि फ्रांस के धाकड़ स्ट्राइकर किलियन एम्बाप्पे के पिता विल्फ्रेड एम्बाप्पे कभी अपने जन्म के देश कैमरून को छोड़कर फ्रांस आते ही नहीं. ऐसी स्थिति में शायद कैमरून के पास शायद एक परिवार से 2 शानदार फुटबॉलर होते. लेकिन यूरोपीय देशों की अच्छी सुविधाएं, टैलेंट को अमल में लाने के अच्छे मौके, आर्थिक सहूलियतें और नौकरी की तलाश में मां-बाप के सामने पलायन की मजबूरी- कई ऐसे फैक्टर हैं जिसके कारण अफ्रीकी फुटबॉल टैलेंट को दशकों से यूरोप की ओर मोड़ रहे हैं.

लेकिन अफ्रीका से यूरोप पहुंचे कई खिलाड़ियों के सामने मुश्किलें भी हजार होती हैं. नॉर्वेजियन खोजी पत्रकार, लार्स मैडसेन और जेन्स जोहानसन ने 2009 में अफ्रीका से फुटबॉल टैलेंट की ‘ट्रैफिकिंग’ से जुड़े कई खतरनाक तथ्य सामने लाये थे.

युवा अफ्रीकी खिलाड़ियों की ‘ट्रैफिकिंग’ में मैडसेन और जोहानसन ने अपने व्यापक रिसर्च में पाया था कि प्रमुख यूरोपीय क्लब अफ्रीकी महाद्वीप से युवा खिलाड़ियों को क्लब में शामिल करने के लिए FIFA के नियमों में लूपहोल का उपयोग करते हैं. इसमें से कुछ खिलाड़ी तो इन क्लब में जगह बना लेते हैं लेकिन हजारों फुटबॉल खिलाड़ी, जो असफल होते हैं, वे यूरोपीय शहरों की सड़कों पर जीने को मजबूर होते हैं.

इस रिपोर्ट के अनुसार इन युवा अफ्रीकी खिलाड़ियों में से अधिकतर को उन एजेंट द्वारा यूरोप का लालच दिया गया था जो यूरोपीय फुटबॉल में अपने कनेक्शन के बारे में शेखी बघारते थे और जिन्होंने एक उज्ज्वल भविष्य, एक नया जीवन और दुख-गरीबी से बाहर निकलने का वादा किया था.

टैलेंट के इस पलायन का एक बड़ा दुष्परिणाम यह भी है कि अफ्रीकी देश वर्ल्ड कप जैसे टूर्नामेंट में कभी आगे तक नहीं पहुंच पाते और उनकी स्थित अंडरडॉग की बनी रहती है.

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