पिछले डेढ साल में भारत के कई युवा निशानेबाजों ने वर्ल्ड कप, कॉमनवेल्थ खेल, एशियाई खेल और युवा ओलंपिक जैसी बड़ी प्रतियोगिताओं में गोल्ड मेडल समेत कई मेडल भारत की झोली में डाले हैं. इन युवा निशानेबाजों को यहां तक पहुंचाने में बड़ा हाथ रहा है जसपाल राणा का.
भारत के जूनियर पिस्टल कैटेगरी के राष्ट्रीय कोच राणा इन दिनों चर्चा में हैं. राणा को इस साल दिए जाने वाले खेल पुरस्कारों में द्रोणाचार्य पुरस्कार के लिए नहीं चुना गया. इस पर काफी बवाल मचा हुआ है.
अब जसपाल राणा ने कहा है कि सेलेक्शन कमेटी को सही जानकारी नहीं दी गई और उन्हें गुमराह किया गया है.
द क्विंट ने जसपाल राणा से बात की और उनका पक्ष जाना. राणा इस वक्त ब्राजील में निशानेबाजी टीम के साथ हैं, जो वर्ल्ड कप के लिए वहां मौजूद है.
राणा ने कहा कि ये कोई पहला मौका नहीं है जब उनको इस तरह अजीबो-गरीब कारण से अवॉर्ड के लिए अनदेखा किया गया हो.
“आप अवॉर्ड देना चाहते हो तो दो, नहीं देना चाहतेतो मत दो. पिछले साल ये बहाना था कि मैं द्रोणाचार्य अवॉर्ड के लिए बिल्कुल नया हूं. कह रहे थे कि मैं सिर्फ 2 साल से कोचिंग दे रहा हूं. हर साल वही झूठे कारण?”जसपाल राणा
जसपाल राणा ने सेलेक्शन कमेटी को सीधे तौर पर दोष नहीं दिया, लेकिन कमेटी के सदस्यों की दलीलों पर सवाल उठाए और कहा कि उन तक सही तथ्य नहीं पहुंचाए गए.
“मुझे सेलेक्शन कमेटी से कोई शिकायत नहीं है. सेलेक्शन कमेटी को जो जानकारी दी गई होगी. उसके आधार पर ही उन्होंने अपने कारण बताए होंगे.मेरा सवाल ये है कि उन्हें क्या जानकारी दी गई? किसी ने उन्हें गुमराह किया है.”जसपाल राणा
राणा ने सेलेक्शन कमेटी के दावों की खोली पोल
जसपाल राणा ने द क्विंट से बात करते हुए सेलेक्शन कमेटी के सदस्यों के बताए कारणों पर भी स्थिति साफ की.
1. राणा ने लगातार 180 दिन तक निशानेबाजों को ट्रेन नहीं किया
दरअसल सेलेक्शन कमेटी की सदस्य और पूर्व एथलीट अंजू बॉबी जॉर्ज ने कहा था कि राणा ने लगातार 180 दिन तक निशानेबाजों को कोचिंग नहीं दी, जो कि अवॉर्ड के लिए मानदंड है.
इसके जवाब में राणा ने कहा,
“हम सुबह 4 बजे से रात 10 बजे तकशूटरों के साथ रहते हैं. ये 180 दिन का क्राइटीरिया क्या है? जिस-जिस कोच को अब तक अवॉर्ड मिला है, वो उसके हकदार हैं, लेकिन क्या उनके मामलेमें ये क्राइटीरिया देखा गया?”
2. निशानेबाजों ने राणा का नाम निजी कोच की जगह नहीं लिखा
पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, 12 सदस्यीय सेलेक्शन कमेटी के एक सदस्य ने कहा कि राणा के अंतर्गत कोचिंग ले रहे किसी भी निशानेबाज ने टारगेट ओलंपिक पोडियम (टॉप) स्कीम के फॉर्म में उनका नाम अपने निजी कोच के तौर पर नहीं लिखा था.
इस पर राणा ने कहा कि उनको इसकी जरूरत ही नहीं क्योंकि वो नेशनल कोच हैं.
“मैंने पर्सनल कोच कैटेगरी के तहतआवेदन नहीं किया था. मैं उस कैटेगरी नहीं आता क्योंकि मैं पर्सनलकोचिंग देता ही नहीं. नेशनल कोच होने के नाते मुझे ये अधिकार नहींकि मैं किसी का पर्सनल कोच बनूं.”जसपाल राणा
राणा ने इस पर भी सवाल उठाया कि टॉप स्कीम कब सेलेक्शन कमेटी के लिए अहम हो गया?
“मेरा नाम नेशनल कोच कैटेगरी में गया था, तो किसने उन्हें ये बता दिया कि मैंने पर्सनल कोच कैटेगरी में आवेदन किया था और मनु भाकर, अनीश और सौरभ चौधरी ने TOP Scheme में मेरा नाम नहीं लिखा. और ये किसने कह दिया कि TOP Scheme कमेटी के क्राइटीरिया के लिए अहम है?”
3. जब मनु भाकर की पिस्टल खराब हुई, राणा वहां नहीं थे
पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक म्यूनिख वर्ल्ड कप के दौरान फाइनल में मनु भाकर की पिस्टल में खराबी आ गई, लेकिन उस वक्त राणा वहां मौजूद नहीं थे. इसलिए उन्हें अपनी अनुशासनहीनता का खामियाजा भुगतना पड़ा.
लेकिन राणा ने बताया कि वो मौके पर थे, लेकिन ऐसे मामलों में कोच कुछ नहीं कर सकता.
“मैं वहीं था, लेकिन शूटर केपीछे नहीं बैठा था क्योंकि वहां सिर्फ एक कोच बैठसकता है. उस वक्त कोच गंगाधर वहां थे. वो एक सीनियर कोच हैं. वैसे भी फाइनल पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि इवेंट के दौरान कोच शूटर से बात नहीं कर सकता. भाकर की पिस्टल खराब होने को लेकर किसी ने कमेटी को गुमराह किया.”जसपाल राणा
राणा ने आगे कहा- हां उसकी पिस्टल खराब हो गई थी और वहां पर रेंज ऑफिसर आए थे. उन्होंने इसे चेक किया और भाकर को एक और मौका दिया. उसके पास एक और पिस्टल थी, लेकिन ये किसी को नहीं पता. इस सबके बारे में कोच कुछ नहीं कर सकता.
जसपाल राणा के मुताबिक मनु के पास अपनी दूसरी पिस्टल इस्तेमाल करने का विकल्प था, लेकिन अनुभव की कमी के कारण वो ये नहीं कर पाई.
“वो अपनी दूसरी पिस्टल का इस्तेमाल कर सकती थी. अगर उसकी जगह किसी अनुभवी शूटर के साथ ऐसा होता, तो वो ऐसा कर सकती थी. लेकिन भाकर अभी सिर्फ 17 साल की नई लड़की है. लेकिन सेलेक्शन कमेटी को किसी ने बता दिया होगा कि ये कोच वहां मौजूद नहीं था.”
इसके साथ ही राणा ने इस बात से भी पर्दा उठाया कि उन्होंने अवॉर्ड के लिए आवेदन की आखिरी तारीख 30 अप्रैल से पहले ही अपना नाम भेज दिया था, जबकि म्यूनिख का मामला मई में हुआ था.
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