देवेंद्र झझारिया(Devendra Jhajharia) भारत के एकमात्र पैरालंपिक(Paralympic) एथलीट हैं जिनके नाम एथलेटिक्स (पुरुष भाला फेंक) में दो स्वर्ण पदक(Gold medal) जीत हैं. उन्होंने अपना पहला स्वर्ण 2004 में एथेंस पैरालिंपिक में और दूसरा 2016 में रियो पैरालिंपिक में जीता था.
उनके नाम 62.15 मीटर भाला फेंक का रिकॉर्ड है और यह पहले पैरा-एथलीट है, जिन्हें पद्म श्री सम्मान से नवाजा गया हैं.
यह इसलिए और भी अधिक प्रभावशाली हैं क्योंकि देवेंद्र झझारिया( ने यह सब सिर्फ एक हाथ से हासिल किया है.
झाझरिया का जन्म
झाझरिया का जन्म राजस्थान के चुरू जिले में एक किसान परिवार में हुआ था, लेकिन महज 8 साल की उम्र में उनका जीवन एक बड़ा मोड़ ले लिया.
जब वह पड़ोसी बच्चों के साथ लुका-छिपी खेल रहे थे, तो छुपने के चक्कर में एक पेड़ पर चढ़ गये, जहां उन्होंने गलती से 11, 000 वोल्ट के करंट वाले एक तार को छू लिया. जिसके बाद बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े थे. डॉक्टरों ने उनकी जान तो बचा ली, लेकिन, उनका बायां हाथ तुरंत काटना पड़ा.
झाझरिया इस बात से निराश नहीं हुए. एक सच्चे खिलाड़ी की तरह, उनकी आत्मा मजबूत बनी रही और उन्होंने एक ऐसा खेल अपनाने का फैसला किया, जिसमें "केवल एक हाथ लगेगा". उपहास और आलोचना का सामना करने के बावजूद, वह पीछे नहीं हटे और भाला फेंकना शुरू किया और यहां तक कि बांस से अपना पहला भाला भी बनाया.
झाझरिया ने द हिंदू के साथ बातचीत में कहा कि
"आप कोशिश कर सकते हैं और कल्पना कर सकते हैं कि जब कोई अपने बच्चे के बारे में ऐसा कहता है तो माता-पिता कैसा महसूस करेंगे. लेकिन मेरे माता-पिता ने मुझे कभी इसका एहसास नहीं होने दिया... मैं कोशिश कर रहा था कि मैं खुद को दुनिया में कमजोर न दिखाऊं, और इसे हासिल करने का एकमात्र तरीका सफल होना और चैंपियन बनना था. एक चैंपियन बनने के लिए, आपको एक खिलाड़ी बनना होगा, इसलिए, मैंने खेल पर अधिक ध्यान देना शुरू कर दिया. कक्षा 10 में, मैंने हर दिन अभ्यास करना शुरू किया और जल्द ही ओपन कैटेगरी में जिला चैंपियन बन गया. मैंने अंतर-महाविद्यालय, जिला और राज्य के कार्यक्रमों में पदक जीतना जारी रखा,
तीसरे पैरालंपिक स्वर्ण पर नजर
झाझरिया टोक्यो में आगामी पैरालिंपिक में प्रतिस्पर्धा करेंगे और अपने तीसरे पैरालंपिक स्वर्ण के लिए लक्ष्य रखेंगे. उनका कहना है कि उन्हें भरोसा है और वह एक और सोना घर ले जाने में सक्षम होंगे.
देवेंद्र झाझरिया ने अतीत में कई कठिनाइयों का सामना किया है. जिसमें उन्होंने अपना तप, दृढ़ संकल्प की अटूट भावना दिखाई है और पैरालिंपिक के प्रति लोगों के रवैये में बदलाव लाने में मदद की है.
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